कोलकाता : पश्चिम बंगाल सरकार (West Bengal Goverment) और राजभवन (Rajbhawan) के बीच तनातनी शुक्रवार को तब और बढ़ गयी, जब राज्यपाल जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankar) ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (CM Mamta Banerjee) पर अल्पसंख्यक समुदाय का ‘‘खुल्लम खुल्ला तुष्टीकरण” करने का आरोप लगाया. श्री धनखड़ ने सुश्री बनर्जी के गुरुवार (Thursday) को उन्हें लिखे पत्र का जिक्र किया, जिसमें मुख्यमंत्री ने राज्यपाल पर सरकार के कामकाज में ‘‘लगातार दखल” देने का आरोप लगाया था.
श्री धनखड़ ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कुल 37 बिंदु उठाये हैं. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री का गुस्सा राज्य में कोविड-19 वैश्विक महामारी (Covid-19 Global Epidemic) से निपटने में ‘‘बड़ी विफलताओं” पर पर्दा डालने की एक रणनीति है. टीएमसी सुप्रीमो से ‘‘राजनीति और टकराव का रुख खत्म” करने का अनुरोध करते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि उनका व्यवहार राज्य के लोगों की परेशानियों को केवल बढ़ा रहा है. राज्यपाल ने सुश्री बनर्जी के गुरुवार को लिखे पत्र के बाद उन्हें लिखे पत्र में कहा कि आपका पत्र इस चुनौतीपूर्ण समय में भयंकर गलतियां करने से जो भारी विफलता सामने आयी है, उस पर बहानेबाजी की रणनीति के जरिये परदा डालने के लिए किये जा रहे प्रयासों का हिस्सा है.
उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय का आपका तुष्टीकरण निजामुद्दीन मरकज घटना पर बेहद खुल्लम- खुल्ला और अनुपयुक्त था. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है तथा इसका समर्थन नहीं किया जा सकता. राज्यपाल उस कार्यक्रम का जिक्र कर रहे थे, जहां सुश्री बनर्जी को राष्ट्रीय राजधानी में तबलीगी जमात के धार्मिक आयोजन पर टिप्पणी करने के लिए कहा गया था. राज्यपाल ने कहा कि मुख्यमंत्री के रूप में आपको संविधान के अनुसार कार्य करना है और राज्यपाल के रूप में मुझे संविधान की रक्षा और संरक्षण करना है और राज्य के लोगों की सेवा करनी है. आपके लिए संवैधानिक नुस्खे हैं, जो दायित्वों के अनिवार्य निर्वहन के लिए राज्यपाल को योग्य बनाते हैं, लेकिन उसी की पूर्ण अवहेलना से निराशा हुई है.
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राज्यपाल ने मुख्यमंत्री द्वारा नागरिकता संशोधन विधेयक पर जनमत संग्रह की बात को याद दिलाते हुए कहा कि देश की जनता कभी भी इसे स्वीकार नहीं करेगी. मुख्यमंत्री द्वारा राज्यपाल को मनोनीत कहने पर कटाक्ष करते हुए राज्यपाल ने कहा कि यह भारतीय संविधान व भारतीय संविधान के निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर की भावना के खिलाफ है. उन्होंने कहा कि राज्यपाल मनोनीत नहीं होता है, वरन नियुक्त किया जाता है. वह न तो रबर स्टांप है और न ही पोस्ट ऑफिस है. उसे संविधान द्वारा प्रदत्त अपने कर्तव्य का इस्तेमाल करना होता है. आप राज्यपाल या केंद्र सरकार पर दोषारोपण कर कोविड-19 को संभालने में अपनी विफलता को छिपाना चाहती हैं.
मुख्यमंत्री ममता के अहंकार से राज्य की जनता का जीवन असुरक्षित : कैलाश विजयवर्गीय
राज्यपाल जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankar) और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Cm Mamta Banerjee) के बीच वाकयुद्ध में भाजपा के महासचिव व प्रदेश भाजपा के केंद्रीय प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय (Kailash Vijayvargiya) ने राज्यपाल का पक्ष लेते हुए मुख्यमंत्री को कटघरे में खड़ा किया है. उन्होंने कहा कि हम हमेशा चुनी हुई सरकारों को अधिकार देने के पक्ष में रहे हैं. लेकिन, ऐसा लगता है यदि ममता जी ने अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन उचित तरीके से नहीं किया, जनता को इसी प्रकार आतंक के साये में मरने के लिए मजबूर किया, तो हम जरूर राज्यपाल से निवेदन करेंगे कि वर्तमान सरकार की मुख्यमंत्री का अहंकार जनता के जीवन को असुरक्षित बना रहा है. अत: धारा 356 का उपयोग करना चाहिए.
श्री विजयवर्गीय ने प्रभात खबर से बातचीत में कहा कि भारत के संविधान में राज्यपाल की भूमिका संवैधानिक प्रमुख की है. राज्यपाल की भूमिका ही यही है कि चुनी हुई सरकार अपने संवैधानिक कर्तव्यों को निर्वहन करें. यदि चुनी हुई सरकार अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन नहीं करती है, तो राज्यपाल का अधिकार है कि वह चुनी हुई सरकार को समय-समय पर इंगित करें. उन्होंने कहा कि ममता जी को राज्यपाल को पत्र लिखने के पहले अपने संवैधानिक कर्तव्यों को भी पढ़ लेना चाहिए था. यदि वह अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करती, तो राज्यपाल को पत्र नहीं लिखना पड़ता.
उन्होंने सवाल किया : क्या किसी राज्य में सत्ताधारी दल के कार्यकर्ता सड़क पर घूमें और चुने हुए सांसद को सरकार अपने सत्ता बल से काम करने से रोके, ममता जी क्या यह उचित है? केंद्र द्वारा गरीबों के हिस्से का अनाज टीएमसी के कार्यकर्ता आपस में बंदरबाट करे और वह खाना गरीब की थाली तक नहीं पहुंचे, क्या यह ममता जी उचित है? कोरोना जैसी महामारी में प्रदेश के नागरिकों को उचित स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिले. यहां तक कि जो लोग इस महामारी से ग्रसित हैं, वे इलाज के अभाव में मर जाते हैं. उन्हें चुपचाप दफनाने का काम कोर्ई सरकार करे, क्या यह उचित है? उनके परिवार के लोगों को मिलने और देखने का मौका नहीं मिले. क्या यह इस सरकार की इंसानियत है?
श्री विजयवर्गीय ने कहा, इसलिए राज्यपाल ने जो भी किया है, वह अपने संवैधानिक मर्यादा को ध्यान में रखकर किया है और ममता जी की भूमिका गैर संवैधानिक और अपनी प्रदेश की जनता के प्रति जिम्मेदारी भरा नहीं है. उसका निर्वहन नहीं करते हुए सिर्फ अपने अहंकारी व्यवहार से राज्य से चलाना यह असंवैधानिक है. संविधान ने किसी भी व्यक्ति को अहंकार वहन करने का अधिकार नहीं है.