कोलकाता : पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस में अपनी ‘उपेक्षा’ से खफा होकर पार्टी और सरकार से शुभेंदु अधिकारी के किनारा कर लेने के बाद ममता बनर्जी काफी कमजोर हो गयीं हैं. शुभेंदु ने मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद अब विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर अपने कड़े तेवर दिखा दिये हैं. कई और नेता पार्टी छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं. इस हालिया घटनाक्रम ने तृणमूल को सांसत में डाल दिया है.
दरअसल, शुभेंदु अधिकारी तृणमूल कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे हैं और संगठन पर उनकी अच्छी पकड़ है. पूर्वी मेदिनीपुर, पश्चिमी मेदिनीपुर, बांकुरा और पुरुलिया समेत आसपास के जिलों की 60 से अधिक सीटों पर शुभेंदु अधिकारी और उनके परिवार का प्रभाव है. संगठन चलाने की उनकी क्षमता गजब की है. अब तक शुभेंदु ने तृणमूल कांग्रेस की सदस्यता नहीं छोड़ी है. यदि वह पार्टी छोड़ देते हैं और भाजपा में शामिल हो जाते हैं, तो इसके दूरगामी प्रभाव होंगे.
जानकार बताते हैं कि जंगलमहल में भाजपा मजबूत होगी और तृणमूल कांग्रेस, जो पहले से ही अंतर्कलह से जूझ रही है, और कमजोर हो जायेगी. इसका असर बंगाल चुनाव 2021 में देखने को मिलेगा. शुभेंदु अधिकारी और उनके परिवार का ही असर था कि वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिमी मेदिनीपुर की सभी 19 विधानसभा सीटें जीत लीं थीं. पूर्वी विधानसभा की भी 16 में से 13 सीटें टीएमसी के खाते में गयी थी.
पूर्वी मेदिनीपुर की 3 सीटें वामदलों ने जीतीं थीं. इस जिले की अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित दो सीटों में एक सीट माकपा ने जीती, जबकि दूसरी सीट पर तृणमूल के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की. भाकपा ने भी इस जिले की एक सीट पर विजयश्री हासिल की थी. बांकुरा जिले की 12 में से 7 सीटें यदि तृणमूल ने जीतीं, तो यह शुभेंदु और उनके परिवार की मेहनत का ही नतीजा था. वहीं, पुरुलिया जिले की कुल 9 विधानसभा सीटों में 7 पर ममता के उम्मीदवार जीते थे.
पूर्वी मेदिनीपुर, जिसके अंतर्गत 16 विधानसभा सीटें हैं, के साथ-साथ पड़ोस के पश्चिमी मेदिनीपुर, बांकुरा और पुरुलिया आदि जिलों की करीब पांच दर्जन विधानसभा सीटों पर इस परिवार का प्रभाव है. बताया जाता है कि नंदीग्राम आंदोलन में शुभेंदु के रणनीतिक कौशल को देखते हुए ममता बनर्जी ने उन्हें जंगलमहल, जिसके अंतर्गत मेदिनीपुर, बांकुरा और पुरुलिया आदि जिले आते हैं, में तृणमूल के विस्तार का काम सौंपा था.
वाम मोर्चा का गढ़ कहे जाने वाले इन जिलों में शुभेंदु ने पार्टी की पकड़ को मजबूत बनाया. इसके अलावा उन्होंने मुर्शिदाबाद और मालदा में भी तृणमूल को बढ़त दिलाने में अहम भूमिका निभायी. संगठन पर बेहतर पकड़ के बूते ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने वर्ष 2011 के बाद वर्ष 2016 में भी शानदार प्रदर्शन किया. हालांकि, इन अच्छे परिणामों को तृणमूल वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बरकरार नहीं रख सकी. यदि शुभेंदु पार्टी से अलग हो जाते हैं, तो पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 में तृणमूल और ममता को नुकसान उठाना पड़ सकता है.
Posted By : Mithilesh Jha