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सोशल मीडिया पर शास्त्रीय संगीत के लाइव परफॉर्मेेंस पर उठे सवाल, पहले ही नहीं मिलते थे प्रायोजक, अब होगी और मुश्किल

सोशल प्लेटफार्म पर शास्त्रीय संगीत (Classical Music) के कलाकारों (Artists) के लाइव प्रदर्शनों की बाढ़ आ गयी है. नामी-गिरामी कलाकारों से लेकर उभरते हुए कलाकार लगातार सोशल मीडिया जैसे- फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब आदि पर अपने वीडियो पोस्ट कर रहे हैं और लाइव फरफार्मेंस दे रहे हैं, लेकिन अब कलाकारों के एक वर्ग में इसकी आलोचना होने लगी है.

कोलकाता : कोरोना महामारी (Corona Pandemic) की वजह से हुई लॉकडाउन (Lockdown) से ऑनलाइन (Online) व सोशल प्लेटफार्म पर शास्त्रीय संगीत (Classical Music) के कलाकारों (Artists) के लाइव प्रदर्शनों की बाढ़ आ गयी है. नामी-गिरामी कलाकारों से लेकर उभरते हुए कलाकार लगातार सोशल मीडिया जैसे- फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब आदि पर अपने वीडियो पोस्ट कर रहे हैं और लाइव फरफार्मेंस दे रहे हैं, लेकिन अब कलाकारों के एक वर्ग में इसकी आलोचना होने लगी है. पढ़िए अजय विद्यार्थी की यह रिपोर्ट.

ग्वालियर घराने के प्रसिद्ध गिटारवादक पंडित दीपक काशिरसागर (Deepak Kashirsagar) ने प्रभात खबर से बातचीत करते हुए कहा कि लॉकडाउन (Lockdown) में आर्टिस्ट कम्युनिटी थोड़े से बेचैन दिखायी दे रहे हैं. उनको कहीं न कहीं परफॉर्म ही करना ही है. मेरा विचार था कि इतने अच्छे अवसर मिले हैं, जब आपके पास फिलहाल कार्यक्रम नहीं हैं. बच्चे भी सीखने के लिए नहीं आ पा रहे हैं. खुद को अपग्रेड करना चाहिए. अपना रियाज इतना बढ़ाना देना चाहिए था, ताकि बारीक खामियों पर नियंत्रण लाकर खुद को और भी अपग्रेड कर पाते, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा. आर्टिस्ट दिनभर लाइव कार्यक्रम व सोशल प्लेटफार्म पर वीडियो अपलोड करने में अपना समय बीता रहे हैं.

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उन्होंने कहा कि ऐसे मेरी ड्यूटी बनती है कि मैं इस बारे में बात करूं. अब प्रायोजकों को पता चल गया है कि बड़े व लीजेंड माने जाने वाले कलाकार भी अब बिना पैसे के गा और बजा रहे हैं, क्योंकि वे बिना कार्यक्रम के नहीं रह सकते हैं, तो इससे आने वाले समय में मध्यम वर्ग के अच्छे कलाकार और अपकमिंग कलाकार को काफी फर्क पड़ेगा. शास्त्रीय संगीत के लिए पहले से ही प्रायोजक मिलना मुश्किल होता था. अब और भी मुश्किल हो जायेगा.

प्रायोजक पैसा देने में आनाकानी करना शुरू कर देगा. इससे कलाकारों की निगेटिव इमेज भी सामने आयी है. यदि कलाकार प्रोफेशनल हैं, तो कुछ मापदंड तय करने चाहिए थे. सारे कलाकारों में सुबह से शाम तक लाइव कार्यक्रम की होड़ लग गयी है. उन्होंने सवाल किया कि कलाकार फिर रियाज कब कर रहे हैं, जब दिनभर रिकार्डिंग कर रहे हैं और लाइव कार्यक्रम में लगे हुए हैं. कलाकारों ने खुद को आसानी से उपलब्ध करा दिया है. अब इतना सारा मेटेरियल आ गया है. इससे कलाकारों के सामने ‘सर्वाइवल’ का प्रश्न खड़ा हो गया है?

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उन्होंने स्वीकार किया कि दो महीने में कोई कलाकार भूखा नहीं मर रहा है. स्थापित कलाकार अच्छा कमा रहे हैं. लाखों में कमा रहे हैं. मूलत: असुरक्षा की भावना के कारण ऐसा कर रहे हैं, लेकिन अच्छा होता यदि वे ऐसा सोचते कि अगली बार आऊंगा तो कुछ नया लेकर आऊंगा, जो आज तक सुना ही नहीं है. लेकिन, कलाकारों की बेचैनी ने आनेवाली पीढ़ी के कलाकारों के लिए समस्या खड़ी कर दी है. अब बड़े-बड़े व लीजेंड कलाकार सोशल मीडिया पर आसानी से उपलब्ध हैं. ऐसे में मध्यम दर्जे के कलाकारों के लिए और भी समस्या उत्पन्न हो गयी है.

पंडित दीपक काशिरसागर ने कहा कि यदि दो महीने के बाद यह शुरू होता है, तो लोग कह सकते थे कि परफार्मेंस की आदत रहनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि अब एक और समस्या आयेगी. पुराने कलाकार बहुत ज्यादा ‘टेक्नोसेवी’ नहीं हैं, हालांकि उनके पास हुनर है, विद्या है. अच्छे परफार्मर हैं. अब खुद को बचाये रखना उनके लिए बड़ी चुनौती बन गयी है. वर्तमान को बचाने के लिए नये चैलेंज को स्वीकार करना होगा.

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उन्होंने कहा कि हालांकि मैंने भी दो लाइव परफार्मेंस दिये हैं, लेकिन जो स्टेज पर बैठ कर बजाने में आनंद आता है, वह सोशल साइट के लाइव कार्यक्रम में नहीं आता है. दर्शक नहीं दिखायी देते हैं. मुझे न तो दर्शक के भाव की फीलिंग हो रही थी और न ही वातावरण ही समझ में आ रहा था. रवींद्र सदन में आयोजित कार्यक्रम आप दो माह तक नहीं भूलेंगे, लेकिन लाइव कार्यक्रम में शायद ही किसी रस की अनुभूति हो.

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