14.5 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

विधानसभा चुनाव के पहले पश्चिम बंगाल में बंगाली अस्मिता का उभार, स्थानीय निवासी बनाम बाहरी की लड़ाई होगी तेज

West Bengal News, West Bengal Assembly Election 2021, Mamata Banerjee, Polarisation, Bengali Identity, Local Residents vs Outsiders, Reservation for Bengalis: पिछले तीन साल में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बाद पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले बंगाली उपराष्ट्रवाद या क्षेत्रीय भावना का सहारा लिया जा रहा है. ‘बंगाली अस्मिता’ और ‘स्थानीय निवासी बनाम बाहरी’ का विमर्श धीरे-धीरे जोर पकड़ रहा है.

कोलकाता : पिछले तीन साल में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बाद पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले बंगाली उपराष्ट्रवाद या क्षेत्रीय भावना का सहारा लिया जा रहा है. ‘बंगाली अस्मिता’ और ‘स्थानीय निवासी बनाम बाहरी’ का विमर्श धीरे-धीरे जोर पकड़ रहा है.

कई संगठन राज्य में नौकरियों और शिक्षा में बंगालियों को आरक्षण देने की वकालत कर रहे हैं. कुछ साल पहले तक राज्य में सांस्कृतिक उपराष्ट्रवाद विमर्श का हिस्सा नहीं था. पिछले साल लोकसभा चुनाव में अपेक्षा के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाने और सत्ता के लिए भाजपा के मुख्य प्रतिद्वंद्वी के तौर पर उभरने के बाद तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बंगाली उपराष्ट्रवाद का सहारा लिया और भाजपा को ‘बाहरी’ पार्टी करार दिया.

परोक्ष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर निशाना साधते हुए उन्होंने यहां तक कह दिया कि पश्चिम बंगाल में ‘गुजराती और बाहरी’ का शासन नहीं होना चाहिए. भगवा दल ने कहा कि विधानसभा चुनाव में ‘आसन्न’ हार को देखते हुए तृणमूल कांग्रेस हताशा में कई कदम उठा रही है और क्षेत्रीयता के आधार पर लोगों को बांटने का प्रयास कर रही है.

Also Read: NEP 2020 के अध्ययन के लिए ममता ने बनायी विशेषज्ञों की समिति, एक सदस्य ने कहा : सभी राज्यों के लिए एक शिक्षा नीति व्यावहारिक नहीं

बांग्ला पोक्खो, जातीय बांग्ला सम्मेलन और बांग्ला संस्कृति मंच जैसे कई संगठनों ने बंगाली भावनाओं को उभारा, जिसके कारण यह विषय राज्य के राजनीतिक पटल पर आ गया. कई संगठनों ने आरोप लगाया कि भगवा खेमा बंगाल में हिंदी और उत्तर भारतीय संस्कृति थोपने का प्रयास कर रहा है.

बांग्ला पोक्खो के एक वरिष्ठ नेता कौशिक माइती ने को बताया, ‘हिंदुत्व के नाम पर रामनवमी का त्योहार बड़े स्तर पर मनाया जाना पहला संकेत था. जनसांख्यिकी तौर पर जिस तरह गैर बंगालियों से बंगालियों को खतरा है, एक दिन बंगाली न केवल आबादी के तौर पर, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी अपनी ही जमीन पर अल्पसंख्यक बन जायेंगे.’

जातीय बांग्ला सम्मेलन के अनिर्वाण बनर्जी ने कहा कि संगठन के कार्यक्रम और मांग का मकसद पश्चिम बंगाल में बंगालियों के आर्थिक और सामाजिक अधिकारों को सुरक्षित करना है.

Also Read: बोकारो से कोलकाता एवं पटना के लिए शुरू होगी सीधी उड़ान, रांची एयरपोर्ट का होगा विस्तार

उन्होंने सवाल किया, ‘हम बंगाली अस्मिता का सवाल क्यों नहीं उठा सकते. अगर गुजराती अपनी पहचान का सहारा ले सकते हैं, तमिलनाडु में तमिल ऐसा कर सकते हैं, तो बंगाली क्यों नहीं ऐसा कर सकते. कई राज्यों में मूल निवासियों को आरक्षण मिला हुआ है, तो बंगाल में ऐसा क्यों नहीं हो सकता.’

Posted By : Mithilesh Jha

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें