अकेलापन और टेक्नोलॉजी, पश्चिम की नयी मुसीबतें

।। यूरोप से लौट कर हरिवंश ।। यूरोप में एक और बड़ी बहस चल रही है. इसकी खबर पढ़ी, बेंगलुरू के टाइम्स ऑफ इंडिया में. 19.10.2014 के आसपास. खबर का शीर्षक था, योर लोनलीनेस इज किलिंग यू यानी, आपका अकेलापन आपको मार रहा है. यह हमारे समय, हमारे दौर का सबसे बड़ा सवाल है. सिर्फ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 29, 2014 4:43 AM

।। यूरोप से लौट कर हरिवंश ।।

यूरोप में एक और बड़ी बहस चल रही है. इसकी खबर पढ़ी, बेंगलुरू के टाइम्स ऑफ इंडिया में. 19.10.2014 के आसपास. खबर का शीर्षक था, योर लोनलीनेस इज किलिंग यू यानी, आपका अकेलापन आपको मार रहा है. यह हमारे समय, हमारे दौर का सबसे बड़ा सवाल है. सिर्फ भारत के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए. यह अकेलापन या सामाजिक संकट उपजा है, इस आर्थिक विकास मॉडल से. और आर्थिक विकास का यह मॉडल ग्लोबल इकॉनमी, ग्लोबल मार्केट, या उदारीकरण की देन है.

खबर की शुरुआत में ही उल्लेख था कि सोशल आइसोलेशन यानी सामाजिक अकेलापन, कम समय में मौत का सबसे खतरनाक कारण बन गया है. यह एक दिन में पंद्रह सिगरेट पीने जैसा भयावह खतरा है. मोटापे से भी जीवन को खतरा माना जाता है. इस मोटापे से जीवन को जितना खतरा है, उससे दोगुना डेडली यानी खतरनाक यह एकाकीपन है.

यह तथ्य कौन बता रहा है. कोई मामूली आदमी नहीं कह रहा, दुनिया के मशहूर व प्रतिष्ठित अखबार द गार्डियन के जाने-माने स्तंभकार जार्ज मोनोबिट, जो जाने-माने पर्यावरणविद् और राजनीतिक एक्टिविस्ट हैं. वह कहते हैं जैसे पहले पाषाण-युग (स्टोन एज) था और बाद में लौह-युग आया. फिर, स्पेस यानी अंतरिक्ष-युग. इसी क्रम में दुनिया आज डिजिटल एज में है. जार्ज मोनोबिट के अनुसार चाहे पाषाण-युग हो, लौह-युग हो, अंतरिक्ष-युग हो या डिजिटल युग हो… ये हमारी कला-संस्कृति के प्रतीकों के बारे में बहुत बात करते हैं, लेकिन हमारे समाज के बारे में कम बताते हैं. समाज में कैसा बदलाव होता रहा है, जब हम एक युग से दूसरे युग में जाते हैं. यानी जब हम पाषाण-युग से लौह-युग में आये या लौह से अंतरिक्ष युग में आये, अंतरिक्ष से डिजिटल में आये, तो किस तरह के परिवर्तन से समाज गुजरता है. इस युगीय परिवर्तन से समाज में कैसी चीजें घटित होती हैं, इसकी चर्चा, अध्ययन या प्रामाणिक चीजें कहीं उपलब्ध नहीं हैं.

जार्ज मोनोबिट कहते हैं कि मेरे लिए तो यह अकेलेपन का दौर है (दिस इज द एज ऑफ लोनलिनेस). वह कहते हैं कि पहले हुए अध्ययन ने बताया कि युवा या वयस्कों में अकेलापन, महामारी की तरह हो गया है. अब सूचना मिल रही है कि उम्रदराज लोगों के लिए भी यह सबसे बड़ी समस्या या चुनौती है. मोनोबिट, इंडिपेंडेंट एज के एक अध्ययन का हवाला देते हैं कि घोर अकेलापन या ‘सीवियर लोनलीनेस’ ब्रिटेन में कैसे सात लाख लोगों को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है.

ग्यारह लाख महिलाएं जो उम्र में 50 या इससे ऊपर हैं, इसकी चपेट में हैं. यह संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है. उनके अनुसार जब सामाजिक अलगाव हो जाता है, सामाजिक संपर्क टूट जाते हैं, तब डिमेंशिया (भुलक्कड़पन), उच्च रक्तचाप (हाइ ब्लडप्रेशर), शराबखोरी (एल्कोहलिज्म) के मामले बहुत तेजी से बढ़ते हैं. डिप्रेशन (अवसाद), पैरानॉइया, चिंता-बेचैनी और आत्महत्या की तरह, अकेलापन से उपजा रोग तेजी से बढ़ रहा है. हम तालमेल नहीं बिठा पा रहे हैं. याद रखिए, यह ब्रिटेन की घटना नहीं है. आज दुनिया के जिन देशों में तेजी से आत्महत्याएं हो रही हैं, उनमें भारत भी है. यहां युवाओं की आत्महत्या करने की घटनाएं सबसे अधिक बढ़ी हैं. झारखंड के एक शहर जमशेदपुर में युवकों की आत्महत्या की दर जान कर आप स्तब्ध रह जायेंगे. यही हालत बिहार समेत देश के अन्य राज्यों की हैं.

ये सारी चीजें एक ऐसे अर्थतंत्र की उपज हैं, जो पूरी दुनिया में हैं. आज भारत में भी बूढ़े अकेलापन झेल रहे हैं. संयुक्त परिवार टूट चुके हैं. गांव में भी बूढ़ों को पूछनेवाला अब कोई नहीं है. एक तरह से सामाजिक टूट इस अर्थव्यवस्था, इस बाजार व्यवस्था की स्वाभाविक उपज है. मोनोबिट मानते हैं कि बेलगाम व्यक्तिवाद (इंब्रिडेल्ड इंडिविजुअलिज्म) एक बड़ी समस्या है, दुनिया के लिए और भारत के लिए भी.

व्यक्ति का व्यक्ति के खिलाफ होना. एक दूसरे से स्पर्धा और व्यक्तिवाद… द वार ऑफ एवरी मैन अगेंस्ट एवरी मैन- कांपिटीशन एंड इंडिविजुअलिज्म इन अदर वर्ड्स- इज द रिलीजन ऑफ अवर टाइम, जस्टिफाइड बाइ ए माइथोलॉजी ऑफ एलोन रेंजर्स, सोल ट्रेडर्स, सेल्फ स्टार्टर्स, सेल्फ -मेड मैन एंड वुमन, गोइंड इट अलोन. यानी, हर व्यक्ति हर व्यक्ति के खिलाफ युद्ध की स्थिति में है. दूसरे शब्दों में कहें तो स्पर्धा और व्यक्तिवाद ही हमारे समय का धर्म है. इसे महिमामंडित किया जाता है तरह-तरह के मिथकों से.

अकेले छापामार सैनिकों, अकेले व्यापारियों, सबकुछ खुद शुरू करनेवालों, अपने दम पर अपनी किस्मत लिखनेवाले पुरुषों व स्त्रियों की कहानियों से. …फॉर द मोस्ट सोशल क्रीचर्स, हू कैन नॉट प्रोसपर विदाउट लव, देयर इज नो सच थिंग एज सोसाइटी, ओनली हिरोइक इंडिविजुअलिज्म. अधिसंख्य सामाजिक प्राणियों के लिए जो बिना प्रेम-स्नेह विकसित ही नहीं हो सकते, आगे नहीं बढ़ सकते, विकास नहीं कर सकते, उनके लिए आज कोई समाज नहीं है. जो है, वहां सिर्फ एक निजी व्यक्ति के व्यक्तिवाद या नायकत्व की पूजा है. यानी एक व्यक्ति जीवन में जो कुछ हासिल कर लेता है, उसका गुणगान.

मोनोबिट मानते हैं कि हम शुरू से ही सामाजिक प्राणी हैं. उनके अनुसार मेमेलियन बीज, मधुमक्खियां, जो सृष्टि में शुरू से हैं, वे एक दूसरे पर ही निर्भर हैं. अफ्रीका से जिस मानव समुदाय का उदय हुआ, वह एक रात भी एक दूसरे के बिना जीवित नहीं रह सकता था. वे मानते थे कि मनुष्य समाज अन्य प्राणियों के मुकाबले बना ही है, एक दूसरे के संपर्क से. आज हम जिस युग में प्रवेश कर रहे हैं, वह अकेलेपन का युग है. हमें एक दूसरे से तोड़ने का दौर है. इसके पहले ऐसा कभी नहीं रहा.

याद रखिए, बहुत पहले मशीन और मनुष्य को लेकर जो बहस दुनिया में शुरू हुई थी, वह अब निर्णायक दौर में है. मशीनों ने मनुष्यों को अलग-थलग कर दिया है. चाहे मोबाइल हो, कंप्यूटर हो, रोबोट हो या अन्य कोई मशीन हो. इसने समाज में अकेलापन गहरा किया है, बढ़ाया है. यह किसी दर्शन की बात नहीं है. यह किसी विचार के आधार की बात नहीं है. इसे दुनिया जी और भोग रही है.

आश्चर्य कि भारत में जिस बड़े पैमाने पर आइपैड वगैरह का इस्तेमाल हो रहा है, उसके उपयोगकर्ता नहीं जानते कि आनेवाली पीढ़ी या बच्चों के साथ वे क्या कर रहे हैं. पिछले दिनों, एक खबर पढ़ी कि दुनिया को बदल देनेवाली टेक्नोलाजी के जन्मदाता स्टीव जॉब्स कैसे अपने घर में टेक्नोलाजी के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा कर रहते-जीते थे. स्टीव जॉब्स आज दुनिया में घर-घर पहुंच गये हैं. उनकी टेक्नोलॉजी ने दुनिया को वह नहीं रहने दिया, जो दुनिया पहले थी. वह दुनिया बदल देनेवाली टेक्नोलॉजी के जन्मदाता थे.

पहले माना जाता था कि दुनिया को नये विचार प्रभावित करते हैं या बदलते हैं. पर नये दौर को टेक्नोलॉजी ने प्रभावित किया. उस टेक्नोलॉजी के सबसे बड़े जनक स्टीव जॉब्स हैं. उनसे संबंधित खबर पढ़ी, स्टीव जॉब्स जब एपल कंपनी चला रहे थे, तो पत्रकारों से उनका संबंध था, वह पत्रकारों को बुलाते थे. कई बार उनकी खबरों से असहमत होकर उन्हें सही तथ्य बताने के लिए, कई बार कुछ अन्य चीजें कहने के लिए. इसी तरह एक पत्रकार ने लिखा कि उनसे सारी बातचीत में मैं इतना स्तब्ध (शॉक्ड) नहीं रहा, जब एक दिन स्टीव जॉब्स ने 2010 के अंत में मुझसे कहा कि उनके घर पर बच्चों को टेक्नोलॉजी इस्तेमाल की पाबंदी है.

इस पत्रकार को स्टीव जॉब्स ने आइपैड की कमियों को लेकर उठाये मुद्दों पर स्पष्टीकरण देने के लिए बुलाया था. इस पत्रकार ने उनसे पूछा, सो योर किड्स मस्ट लव आइपैड? यानी, आपके बच्चे आइपैड को काफी चाहते होंगे? पत्रकार ने यह सवाल उठाया, विषय बदलने के लिए. कंपनी द्वारा निकाला गया पहला टैब बाजार में था. स्टीव जॉब्स ने बताया कि उनके बच्चों ने अभी तक इसका इस्तेमाल ही नहीं किया है. फिर उस पत्रकार से कहा, वी लिमिट हाउ मच टेक्नोलॉजी आवर किड्स यूज एट होम.

हमारे बच्चे घर पर कितनी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करेंगे, इसकी हमने सीमा तय की है. उस पत्रकार ने कहा कि मैं हक्का-बक्का रह गया (आइ रिस्पांडेड विथ ए गैस्प एंड डम्फाउंडेड साइलेंस). मेरी कल्पना थी कि स्टीव जॉब्स के घर में स्वर्ग होगा, टेक्नोलॉजी यंत्रों का. ऐसी दीवारें होंगी, जिसे आप टचस्क्रीन की तरह टच करेंगे और मनचाही चीजें होंगी. डाइनिंग टेबुल और टाइल्स आइपैड से बने होंगे. और अतिथियों को या घर आनेवाले बच्चों को ये चाकलेट या अन्य मामूली गिफ्ट की तरह दिये जाते होंगे.

स्टीव जॉब्स ने कहा कि नहीं, हमारे घर में ऐसा नहीं होता. यह पत्रकार निक बिल्टन, न्यूयार्क टाइम्स में लगातार लिखते रहे हैं और न्यूयार्क टाइम्स में छपे उनके लेख के अनुसार जॉब्स के घर में उनके बच्चों के लिए एपल कंप्यूटर नहीं था. बिल्टन ने बाद में स्टीव जॉब्स की आत्मकथा लिखनेवाले वाल्टर इस्ल्कान से अक्तूबर 2011 में यह पूछा, तो उन्होंने बताया कि हर शाम स्टीव ने ऐसी व्यवस्था रखी थी कि खाने के बड़े टेबल पर रसोई के पास सारे बच्चे, परिवार के लोग इकट्ठे होंगे. खाने व चर्चा के दौरान इतिहास के बारे में, किताबों के बारे में और अलग-अलग चीजों के बारे में विमर्श करेंगे, संवाद करेंगे.

वाल्टर इस्ल्कान प्रभावी पत्रकार थे. उन्होंने स्टीव जॉब्स की प्रामाणिक जीवनी लिखी. वाल्टर को स्टीव पसंद करते थे. वाल्टर के अनुसार जॉब्स के बच्चे इन यंत्रों के लिए आदी (एडिक्टेड) नहीं दिखायी दिये. इसके बाद न्यूयॉर्क टाइम्स के इस रिपोर्टर की मुलाकात अनेक तकनीकी कंपनियों के चीफ एक्जिक्यूटिव और वेंचर कैपिटलिस्ट से हुई, सिलिकन वैली के जाने-माने टेक्नोलॉजिस्ट से हुई. इस अखबारनवीस ने पाया कि ऐसे सारे टेक्नोलॉजिस्ट ने अपने घरों में अपने बच्चों के टेक्नोलॉजी इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा रखा है.

प्राय: हर तरह के गैजेट का इस्तेमाल, जिस दिन स्कूल की पढ़ाई होती है, उस दिन प्रतिबंधित है. और सप्ताह के अंत में थोड़ा समय इन आधुनिक यंत्रों से खेलने के लिए या देखने के लिए या इस पर काम करने के लिए मिलता है. यह संवाददाता अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं कि लालन-पालन के इस तौर-तरीके (पैरेंटिंग स्टाइल) से मैं परेशान रहा, क्योंकि समाज के आम माता-पिता का तौर-तरीका बिल्कुल अलग है. वे चाहते हैं कि उनके बच्चे इस तकनीक या इस टैब की आभा में ही नहायें, धोयें या डूबें.

स्मार्टफोन या कंप्यूटर पर दिन-रात लगे रहें. पर दूसरी ओर इन यंत्रों के जन्मदाता, इन कंपनियों के सीइओ, अपने परिवार के बच्चों के लिए इस पर नियंत्रण और पाबंदी रखते हैं. दुनिया में बड़े पैमाने पर बच्चों को तकनीक परिवर्तन के लिए प्रोत्साहित करनेवाले लोग या अभिभावक यह तथ्य जानते ही नहीं. हाल ही में किसी एक टेक्नोलॉजी के जानकार ने सूचना दी कि बेंगलुरू स्थित निमहांस में कंप्यूटर या आइपैड या स्मार्टफोन या दिन-रात इन यंत्रों में डूबे रहने से जो डिप्रेशन और बीमारी हो रही हैं, उनसे निबटने के लिए एक अलग विभाग ही खुला है.

इस संवाददाता निक बिल्टन, जो वैज्ञानिक विषयों पर लिखते हैं, के अनुसार ह्यवेयर्डह्ण मैगजीन के पूर्व संपादक और थ्री-डी रोबोटिक के चीफ एक्जीक्यूटिव, जो ड्रोन बनानेवाले रहे हैं, उन्होंने भी अपने घर में अपने बच्चों के लिए यह समय सीमा तय कर दी थी. परिवार में माता-पिता का इस पर नियंत्रण था कि वे तय करें कि बच्चे कितनी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर सकते हैं? वह कहते हैं कि मेरे बच्चे मुझ पर और मेरी पत्नी पर फासिस्ट होने का आरोप लगाते हैं.

बच्चे बताते हैं कि उनके जितने मित्र हैं, उनके माता-पिता ने अपने बच्चों पर तकनीक के सीमित इस्तेमाल का प्रतिबंध नहीं लगा रखा है. एंडर्सन के अनुसार उनके बच्चे छह से 17 वर्ष की उम्र के हैं. पांच बच्चे हैं. वह बताते हैं कि प्रतिबंध इसलिए लगा रखा है कि क्योंकि फर्स्ट हैंड, यानी हमें प्रत्यक्ष अनुभव है कि तकनीक के क्या खतरे हैं.

मैं नहीं चाहता कि मेरे बच्चे भी उन खतरों से गुजरें? उन्होंने नुकसानदेह चीजें गिनायीं- पोर्नोग्राफी देखना, दूसरे बच्चों द्वारा डराना-धमकाना और सबसे खराब है यंत्रों का आदी हो जाना. नशे की तरह मशीनों की दुनिया में डूब जाना. वह कहते हैं कि यह सबसे खतरनाक है. टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट एंडर्सन कहते हैं कि मैं नहीं चाहता कि मेरे बच्चे इन हालात से गुजरें. इसलिए हमने यह प्रतिबंध लगा रखा है.

Next Article

Exit mobile version