आशीष आदर्श, करियर काउंसेलर
एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब के लिए एक वेकेंसी निकली. इंटरव्यू की तारीख तय हुई. लेकिन, उस जॉब के लिए कैंडिडेट में जिन योग्यताओं को आवश्यक बताया गया था, उसके अनुसार केवल दो लोग फाइनल इंटरव्यू के लिए बुलाये गये. इंटरव्यू एक बहुमंजिला बिल्डिंग की दसवीं मंजिल पर आयोजित था.
तय दिन और समय पर दोनों कैंडिडेट वहां पहुंचे. सामने लिफ्ट नजर नहीं आ रही थी. तभी एक ने सामने सीढ़ी देखी और बिना समय बर्बाद किये सीढ़ी से चढ़ने लगा. दूसरे ने आसपास के लोगों से लिफ्ट की जानकारी ली और दसवीं मंजिल पर पहुंच गया. लगभग दस मिनट बाद पहला कैंडिडेट भी हांफते हुए वहां दाखिल हुआ. दोनों का इंटरव्यू बहुत अच्छा हुआ. दोनों खुश थे और परिणाम का इंतजार कर रहे थे. थोड़ी देर में परिणाम आया और कंपनी ने दूसरे कैंडिडेट को चयनित कर लिया था.
उस कंपनी की यह पाॅलिसी थी कि यदि आपका किसी पोस्ट पर चयन नहीं हुआ, तो आप कंपनी से इसका कारण पूछ सकते थे. इस पाॅलिसी का लाभ लेते हुए पहला कैंडिडेट इंटरव्यूवर के पास पहुंचा और बोला, सर, मैं तो बहुत मेहनती हूं और मैं बगैर समय गंवाये तुरंत दस तल सीढ़ी चढ़कर यहां इंटरव्यू देने आया, फिर भी मेरे जैसे मेहनती इंसान का चयन नहीं हुआ. इंटरव्यूवर ने मुस्कराते हुए कहा, मैं यह मान सकता हूं कि तुम हार्डवर्कर हो, लेकिन हमें स्मार्ट वर्कर की आवश्यकता है, जो किसी हार्ड वर्कर की तुलना में कम समय लगाकर और कम परिश्रम से अपनी मंजिल पर पहुंच सके. इंटरव्यूवर का जवाब सुनकर वह सन्न रह गया.
दोस्तों, यह कहानी बेहद सामान्य हो सकती है, लेकिन इसमें संदेश बड़ा है. हार्ड वर्कर तो एक पत्थर ढोने वाला भी होता है, जो शायद किसी स्मार्ट वर्कर से कई गुना अधिक मेहनतवाला काम करता है, लेकिन उसे हम एक सफल इंसान की श्रेणी में नहीं डाल सकते. वहीं दूसरी ओर, एक स्मार्ट वर्कर अपनी बुद्धिमता और कौशल से आसमान की बुलंदियों पर पहुंच जाता है. किसी विचारक ने लिखा है, श्रम तो महत्वपूर्ण है ही, लेकिन श्रम को कहां और किस रूप में लगाना है, यह जानना उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है. यदि हम इस संदेश को समझ पायें, तो अपने श्रम को खर्च करने की दिशा स्वतः ही हमें नजर आ जायेगी.