NEET और IIT ब्रेक करना हो, तो छठी क्लास से ही तैयारी शुरू कर दें, वर्ना…
आप सुनते, पढ़ते या देखते होंगे कि साउथ इंडिया के फलाना राज्य का फलाने के गांव का फलाना लड़का डॉक्टरी में टॉपर है, इंजीनियरिंग में टॉपर है, आईआईटी में टॉपर है..., तो क्या वह ऐसे ही टॉपर हो गया.
पटना/नई दिल्ली : यदि आप अपने बच्चों को डॉक्टर-इंजीनियर या फिर आईआईटियन बनाना चाह रहे हों, तो आपके लिए एक ताकीद है. ताकीद यानी चेतावनी के साथ सलाह और वह यह कि डॉक्टर-इंजीनियर बनाना है, छठी क्लास से ही उसकी तैयारी शुरू कर दीजिए और वह भी बिना किसी से कहे हुए और सुने हुए. आप सुनते, पढ़ते या देखते होंगे कि साउथ इंडिया के फलाना राज्य का फलाने के गांव का फलाना लड़का डॉक्टरी में टॉपर है, इंजीनियरिंग में टॉपर है, आईआईटी में टॉपर है…, तो क्या वह ऐसे ही टॉपर हो गया! उसके पीछे कड़ी मेहनत है.
साउथ इंडिया में करीब-करीब सभी बच्चे छठी से ही अपने लक्ष्य को साधने की तैयारी शुरू कर देते हैं. इसीलिए, वे टॉप पर होते हैं. उनका तरीका और सलीका बता रहे हैं बिहार-झारखंड के बच्चों को मुफ्त में सलाह देने वाले आईआईटी के गुरु और मेंटर्स एडुसर्व कोचिंग संस्थान के निदेशक आनंद कुमार जायसवाल.
दरअसल, ये बातें तब सामने आईं, जब आनंद कुमार जायसवाल सोमवार को एक सेमिनार को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने बताया कि उनका संस्थान इसी फॉर्मूले पर अपने बच्चों को संस्कारित और आगे बढ़ने की प्रेरणा देने के साथ ही शिक्षित करता है. उन्होंने कहा कि हम छठी-सातवीं से ही बच्चों को फाउंडेशन के साथ मेडिकल-आईआईटी के लिए तैयार करना शुरू कर देते हैं और खासकर गरीब और मध्यम परिवार के बच्चों के लिए उनके यहां विशेष प्रकार की सुविधा उपलब्ध होती है.
इससे बच्चों के स्कूली शिक्षा के परीक्षा परिणाम में तो सुधार होता ही है, लेकिन भविष्य संवारने के दृष्टिकोण से भी यह काफी महत्वपूर्ण है. खासकर, उनके संस्थान में पढ़ने वाले छात्र विज्ञान विषयों में अपना नाम रोशन कर रहे हैं. इसी तरह नेशनल स्टैंडर्ड एग्जामिनेशन (ओलंपियाड ) एनटीएसई आदि के लिए मानसिक मजबूती चाहिए है. यह स्कूल में संभव नहीं है. यह काम हमलोग अपने संस्थान में करते हैं. सेमिनार में राज्यभर से स्कूली बच्चे और उनके अभिभावक आए थे.
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भौतिकी के विख्यात शिक्षक आनंद कुमार जायसवाल ने बच्चों और उनके परिजनों को संबोधित करते हुए कहा कि छठी और सातवीं के बहुत सारे पाठ का विस्तार या बड़े पैमाने पर बड़ी कक्षा में बताएं जाएंगे. ऐसे में हम वर्तमान कक्षा का पाठ पढ़ाने के बाद आगे की कक्षा का पाठ्यक्रम भी पढ़ाना शुरू कर देते हैं. यहां तक की आईआईटी और मेडिकल प्रवेश परीक्षा में पूछे जानेवाले प्रश्न को भी अक्सर बच्चों को पेश करते हैं. ऐसे में ये बच्चे पूर्व से ही अपने आगे के सिलेबस के फ्रेंडली हो जाते हैं.
इस ट्रेनिंग प्रक्रिया से बच्चों में विज्ञान के प्रति रुचि भी बढ़ती है. हालांकि, इस दौरान बच्चों के बचपन का ख्याल रखा जाता है. अभी फाउंडेशन कोर्स में नामांकन पूर्व के फीस पर ही हो रहा है. ऐसे में अभिभावक लाभान्वित हो सकते हैं.