मजबूत इरादों और हौसलों से पाई JPSC में सफलता

इरादे मजबूत हों तो इंसान क्या कुछ नहीं कर सकता. मेहनत और लगन से हमेशा सफलता हाथ लगती है. ऐसी ही कुछ कहानी है छठी जेपीएससी सिविल सेवा के जारी रिजल्ट में योजना सेवा के लिए चयनित हुए शिशिर कुमार पंडित की. अपनी मेहनत, लगन और हौसले के बल पर इन्होंने जेपीएससी सिविल सेवा पास की है.

By Shaurya Punj | April 25, 2020 8:00 AM

इरादे मजबूत हों तो इंसान क्या कुछ नहीं कर सकता. मेहनत और लगन से हमेशा सफलता हाथ लगती है. ऐसी ही कुछ कहानी है छठी जेपीएससी सिविल सेवा के जारी रिजल्ट में योजना सेवा के लिए चयनित हुए शिशिर कुमार पंडित की. अपनी मेहनत, लगन और हौसले के बल पर इन्होंने जेपीएससी सिविल सेवा पास की है. मूल रुप से गढ़वा जिले के जाता गांव के रहने वाले शिशिर ने साल 2008 में भी जेपीएससी की परीक्षा पास की थी, पर शिशिर को न्यूरोसिस की बीमारी ने जकड़ लिया. करीब आठ साल तक बीमारी से जूझने के बाद फिर से तैयारी शुरू की और फिर से सफलता पाई. आइए जानते हैं शिशिर कुमार पंडित की सक्सेस स्टोरी जिनसे प्रभात खबर के शौर्य पुंज ने खास बातचीत की है :

शिशिर आप अपना परिचय हमारे पाठकों को दें.

मैंने अपनी स्कूल पढ़ाई अपने गांव के विद्यालय से की. स्कूल के दिनों में मैं पढ़ाई में काफी अच्छा था, कक्षा में अव्वल आया करता था. बाद में मैंने मैट्रिक एवं इंटर की पढ़ाई गोविंद हाई स्कूल से की. इसके बाद रांची विश्वविद्यालय से मैंने गणित में स्नातक की डिग्री ली. मेरे पिताजी एक रिटायर्ड कंपाउंडर हैं और माताजी एक गृहिणी हैं.

सिविल सर्विस की तरफ आपका रूझान कब आया.

पढ़ाई में मेरा रूझान शुरु से ही रहा था. जब मैं रांची में हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करता था तो वहां के लड़कों को सिविल सर्विस की तैयारी करते देखता था, वहीं से मुझे लगा की मैं भी सिविल सर्विस की तैयारी कर सकता हूं. बाद में मैंने 2007 में स्नातक की डिग्री हासिल की और एक साल की तैयारी के बाद मैंने 2008 में जेपीएससी में सफलता पाई, पर अपनी सेहत को देखते हुए मैं नौकरी ज्वाइन नहीं कर पाया.

हमने सुना है कि आपने एक लंबी बीमारी से भी जीत हासिल की है, उसके बारे में हमारे पाठकों को बताना चाहेंगे ?

2008 में मैंने जब जेपीएससी में सफलता हासिल की थी, उसके बाद मैं नौकरी ज्वाइन नहीं कर पाया, कारण था कि न्यूरोसिस नामक बीमारी से मैं ग्रसित हो गया था. इस बीमारी में आपके शरीर की नसों में तकलीफ होती है, मुझे सर दर्द, कमजोरी एवं मानसिक अशांति झेलनी पड़तीं थी. कई बार कमजोरी के कारण बिस्तर से उठ नहीं पाता था. 2015 तक यानी आठ सालों तक मैं इस बीमारी की चपेट में रहा. साल 2011 में मेरी शादी हुई और बेटी के जन्म के बाद उसे टीबी हो गया, जिससे मैं और मेरी पत्नी काफी परेशान रहते थे. वहीं जब मैं न्यूरोसिस से जूझ रहा था, तो मेरे पिताजी को लकवा मार दिया था. धीरे-धीरे हम दोनों के स्वास्थय में सुधार हुआ और बेटी भी स्वास्थ हुई.

बीमारी से वापस जिंदगी को पटरी पर लाने में भी काफी परेशानियां आईं होंगी

पूरी तरह मैं स्वास्थ तो हो गया था, पर अंदर से पूरी तरह से टूट चुका था. कभी कभी ऐसा होता था कि पैसो की काफी तंगी हो जाती थी. गुजारा किसी भी तरह चल रहा था. मैंने बाद में बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए निशुल्क पढ़ाना शुरू किया. जेनरल अवेयरनेस और जेनरल स्टडिज की पढ़ाई मैं बच्चों को करवाता था. पढ़ाते-पढ़ाते मेरी सामान्य ज्ञान में पकड़ अच्छी हो गई. साल 2016 में मैंने जेपीएससी की परीक्षा फिर से दी थी. आठ साल से पढ़ाई छूटी हुई थी, इसलिए कभी कभी आत्मविश्वास डगमगाता था, पर मेरे माता पिता ने मेरा आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया. 2018 में जेपीएससी की मेंस की परीक्षा में मैं शामिल हुआ. 2020 के 4 मार्च को इंटरव्यू का आयोजन हुआ. और बीते दिनों इसका फाइनल रिजल्ट आया है.

जेपीएससी में सफल होने के बाद आप जनता की किस तरह से सेवा करेंगे

मेरे गांव में बिजली की काफी समस्या है. हमेशा बिजली आंख-मिचौली खेलती है, और लाइट का आना-जाना लगा रहता है. मैंने ऐसे ही हालात में रहकर पढ़ाई की है. गरीबी देखी है. ऐसा वक्त भी देखा है, जब पैसों की किल्लत के कारण जरूरी काम नहीं हो पाते थे. इसलिए मैंने सोचा है कि जमीनी स्तर पर जनता की परेशानियों को समझना है, साथ ही मैंने ये भी सोचा है कि मेरी पोस्टिंग जहां भी होगी, मैं समय निकालकर बच्चों को निशुल्क पढ़ाया करूंगा.

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