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Subhash Chandra Bose Jayanti: आज देश भर में मनाई जा रही है नेताजी की 125वीं जयंती, कैसा था उनका जीवन ?

आज पूरा देश नेताजी की 125 जयंती मना रहा है. इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि इंडिया गेट पर महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस (netaji subhash chandra bose 125th jayanti) की ग्रेनाइट की बनी प्रतिमा लगाने का काम किया जाएगा.

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 23, 2022 10:30 AM

Subhash Chandra Bose Jayanti 2022: नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” और “जय हिंद” के नारे दिए. स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस की जयंती हर साल 23 जनवरी को मनाई जाती है. बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ था. नेताजी को एक राजनेता और बौद्धिक उत्कृष्टता के साथ ही भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके विशेष योगदान के लिए जाना जाता है. नेताजी की 125 जयंती से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि इंडिया गेट पर महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस (netaji subhash chandra bose 125th jayanti) की ग्रेनाइट की बनी प्रतिमा लगाने का काम किया जाएगा

इस वर्ष नेताजी की 125वीं जयंती

इस वर्ष नेताजी की 125वीं जयंती है, और इसलिए, सरकार ने घोषणा की है कि इस दिन को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाएगा. इतना ही नहीं, इस साल गणतंत्र दिवस समारोह भी आमतौर पर शुरू होने से एक दिन पहले शुरू हो जाएगा.

नेता जी ने आजाद हिंद फौज का गठन किया

माता प्रभाती बोस और पिता जानकीनाथ बोस के घर जन्मे नेताजी स्वामी विवेकानंद को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे. उन्होंने अंग्रेजों का मुकाबला करने के लिए एक सैन्य रेजिमेंट, आजाद हिंद फौज का गठन किया.

सुभाष चंद्र बोस ने रानी झांसी रेजिमेंट नाम की एक महिला बटालियन भी बनाई

सुभाष चंद्र बोस ने रानी झांसी रेजिमेंट नाम की एक महिला बटालियन भी बनाई. बोस ही थे जिन्होंने सबसे पहले महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता के रूप में संदर्भित किया था.

देशभक्तों के बीच ‘प्रिंस’ के नाम से जाने जाते थे

नेताजी सुभाष चंद्र बोस: ‘देशभक्तों के बीच प्रिंस’के नाम से जाने जाते थे. सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी को ‘देशभक्तों का देशभक्त’ कहा, भले ही दोनों ने दो अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराएं साझा की हों. यह एक दिलचस्प तथ्य है जो एक बार फिर नेताजी के बड़े दिल को उजागर करता है. देशभक्तों की बात करें तो बोस स्वयं एक आध्यात्मिक देशभक्त थे. नेताजी का मानस स्वामी विवेकानंद और श्री रामकृष्ण परमहंस से काफी प्रभावित था. वह 15 वर्ष के थे जब उन्हें पहली बार स्वामी विवेकानंद के कार्यों का पता चला, जिसके बाद आध्यात्मिकता के प्रति उनका शाश्वत झुकाव प्रकट हुआ और उनके भीतर एक क्रांति कई गुना बढ़ गई. उनका मानना ​​था कि दोनों आध्यात्मिक गुरु एक अदृश्य व्यक्तित्व के दो पहलू हैं.

एमिली शेनकी से शादी की

इस महान स्वतंत्रता सेनानी को 1921 से 1941 की अवधि के दौरान 11 बार कैद किया गया था. जेल में रहते हुए उन्होंने 1930 में कलकत्ता के मेयर का पद ग्रहण किया था. जर्मनी में आजाद हिंद रेडियो स्टेशन की स्थापना नेताजी ने की थी. ‘जय हिंद’, ‘दिल्ली चलो’, ‘मुझे खून दो और मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ जैसे वाक्यांश नेताजी द्वारा गढ़े गए थे. कहा जाता है कि जब नेताजी ने भारत की आजादी के लिए समर्थन जुटाने के लिए जर्मनी में अपना समय बिताया, तो उन्होंने एमिली शेनकी से शादी की थी जो एक ऑस्ट्रियाई महिला थीं. और प्रसिद्ध जर्मन अर्थशास्त्री अनीता बोस उनकी बेटी थीं.

भेष बदलकर भागने की योजना बनाई थी

1941 में जब वे नजरबंद थे तब उन्होंने अपने भेष बदलकर भागने की योजना बनाई थी अपने साथी सिसिर बोस के साथ. दिन-रात पुलिस द्वारा निगरानी की जा रही थी, यह नेताजी के दिमाग की उपज थी कि भागने को किसी ऐसी चीज की आड़ में होने दिया जाए जो असामान्य नहीं लगती. कुछ ऐसा जो हर दिन होता है. इस प्रकार, चाचा सुभाष के लिए एक ट्रांजिस्टर ट्यून करने का कारण बताते हुए, सिसिर प्रतिदिन नेताजी से मिलने आते थे और अंत में नेताजी की दूरदर्शिता के साथ उनकी भव्य भागने की योजना को साकार किया. नेताजी ने 1941 में तत्कालीन इतालवी विदेश मंत्री गैलियाज़ो सियानो से मुलाकात की थी, जिन्होंने उनके साथ स्वतंत्रता की घोषणा के मसौदे पर चर्चा की थी. उस दौरान बोस अपनी पत्नी के साथ करीब 6 हफ्ते रोम में रहे थे.

नेताजी की मृत्यु रहस्य में डूबी हुई है

नेताजी की मृत्यु रहस्य में डूबी हुई है, और इससे हम सभी वाकिफ हैं. 18 अगस्त, 1945 को ताइवान में विमान दुर्घटना की बहुचर्चित खबरों के बाद, ऐसा माना जाता था कि सुभाष चंद्र बोस एक ‘साधु’ का वेश बनाकर यूपी में रहते थे. लोग उन्हें गुमनामी बाबा के नाम से जानते थे. नेताजी मेधावी छात्र थे. भारतीय सिविल सेवा परीक्षा को पास करने के बावजूद, उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए सरकारी पद से इस्तीफा दे दिया. उन्हें उनके गुरु चित्तरंजन दास द्वारा पेश किए गए ‘फॉरवर्ड’ अखबार के संपादक के रूप में जाना जाता था. ‘स्वराज’, फिर भी उनके द्वारा एक और अखबार शुरू किया गया था. 1935 में नेताजी की ‘द इंडियन स्ट्रगल’ नाम की किताब प्रकाशित हुई थी.

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