Jharkhand news, Chaibasa news : चाईबासा (अभिषेक पीयूष) : पश्चिमी सिंहभूम जिले के सदर अस्पताल, चाईबासा में एनएचएम के अंतर्गत जिला कार्यक्रम प्रबंधक के पद पर विगत दिसंबर 2017 से पदस्थापित तत्कालीन जिला लेखा प्रबंधक नीरज कुमार यादव पर कोरोना काल के दौरान पीपीई कीट समेत विभिन्न स्वास्थ्य उपकरणों की खरीदारी में फर्जीवाड़ा करने के साथ ही कई गंभीर आरोप लगे हैं. जिस कारण डीपीएम नीरज कुमार यादव को जिले से राज्य मुख्यालय भेज दिया गया है, लेकिन डीपीएम नीरज कुमार यादव जिले में इन 4 सालों के अपने कार्यकाल के दौरान खरीद प्रक्रिया में कई फर्जीवाड़े को अंजाम दे चुके हैं. ऐसे में डीपीएम ने अबतक चाईबासा सदर अस्पताल में प्रभार में रहे तीन सिविल सर्जन को अपने चंगुल में फांस कई कारनामे को कर दिखाया है.
दरअसल, डीपीएम नीरज कुमार यादव के जिले में पदस्थापित होने पर सरायकेला- खरसावां जिले के वर्तमान सिविल सर्जन डॉ हिमांशु भूषण बारवार चाईबासा सदर अस्पताल के सिविल सर्जन हुआ करते थे. इस दौरान नीरज यादव ने तत्कालीन सिविल सर्जन हिमांशु भूषण बारवार के समय में कई गड़बड़ियां की. मार्च 2018 में वित्तीय वर्ष के अंतिम चरण में डीपीएम नीरज कुमार यादव ने एनएचआरएम मद से तत्कालीन जिला लेखा प्रबंधक ब्रजेश कुमार झा के साथ सांठगांठ कर एक आरटीजीएस चेक के माध्यम से 13 करोड़ रुपये की बड़ी राशि का भुगतान एक ही बार में विभिन्न फर्म के बैंक अकाउंट में एडवांस के रूप में कर दिया था.
डीपीएम के द्वारा सरकारी निर्देश के बावजूद पीएफएमएस से भुगतान न करके सामाग्रियों की खरीद में 31 मार्च की तारीख अंकित कर चेक के माध्यम से अप्रैल माह में विभिन्न फर्म के अकाउंट में राशि ट्रांसफर कर दी गयी थी. गड़बड़ी की भनक जब जिला प्रशासन को हुई, तो डीसी ने डीआरडीए निदेशक अमित कुमार को जांच का जिम्मा सौंपा था. इस घोटाले को जिले के तत्कालीन डीआरडीए निदेशक अमित कुमार ने आंक लिया था. इसके बाद उन्होंने डीपीएम नीरज यादव की जमकर क्लास भी लगायी थी. साथ ही मामले में डीआरडीए निदेशक ने डीसी को पत्र लिखकर सारी वस्तुस्थिति से भी अवगत कराया था. हालांकि, इसे डीपीएम की पहली गलती मानते हुए मामले को रफा-दफा कर दिया गया था.
Also Read: प्रभात खबर इम्पैक्ट : PPE किट खरीद घोटाला मामले में डीपीएम के खिलाफ घंटों चली जांच, कई अहम दस्तावेजों की हुई तलाशी
डीपीएम नीरज यादव के जिले में प्रभार लेने के बाद विगत 26 दिसंबर, 2017 को डीसी अरवा राजकमल ने चिकित्सा उपकरणों को प्राथमिकता देते हुए खरीदारी के लिए डीएमएफटी से 5 करोड़ की स्वीकृति प्रदान की थी. उपकरणों की खरीदारी सरकार के ई-गर्वमेंट मार्केट जैम से होनी थी. इसे लेकर तत्कालीन डीआरडीए के द्वारा जैम में उपकरणों की खरीद के लिए विभिन्न कंपनियों का चयन भी कर लिया गया था. साथ ही प्रत्येक क्रय में 5 वर्षों का सीएमसी भी तय था. इस दौरान भी सदर अस्पताल में प्रचार- प्रसार के प्रिटिंग कार्य में अनिमियता की शिकायत मिलने पर डीपीएम के खिलाफ डीआरडीए निदेशक की जांच जारी थी, लेकिन जब भी जांच को वे अस्पताल पहुंचते, तो डीपीएम समेत सभी पदाधिकारी अस्पताल से गायब हो जाया करते थे. इसी क्रम में डीपीएम नीरज कुमार यादव के पाठ पढ़ाने के बाद तत्कालीन सिविल सर्जन हिमांशु भूषण बारवार ने जैम से खरीद करने पर अपना विरोध दर्ज कर दिया था.
26 सितंबर, 2018 को जिले में डॉ मंजू दुबे ने सिविल सर्जन का प्रभार ग्रहण किया. इसके बाद डीसी के निर्देश पर जिले में बने नये एचडब्लूसी के लिए सरकार के ई-गर्वमेंट मॉर्केंट जैम से जिला स्वास्थ्य विभाग के द्वारा एक करोड़ 10 लाख की अधिक लागत से स्वास्थ्य उपकरणों समेत विभिन्न सामाग्रियों की खरीद की गयी थी. इस दौरान डीपीएम नीरज यादव एंड टीम ने स्वास्थ्य उपकरणों की खरीद में बड़ा घोटोला किया.
दरअसल, जैम से खरीद के दौरान डीपीएम एंड टीम के द्वारा 101 उपकरणों की खरीद की गयी, जिसमें तत्कालीन डीडीसी आदित्य रंजन के द्वारा किये गये जांच में खरीद किये गये कुल 101 उपकरणों एवं सामाग्रियों में से 24 की खरीद बाजार रेट से 4 गुणा अधिक दाम पर पायी गयी थी. वहीं, कई सामाग्रियां की गुणवत्ता भी बेहद खराब मिली थी. इस पर जांच टीम ने सप्लायर को भुगतान किये जाने वाली राशि में से 15 फीसदी की कटौती करने के साथ ही डीपीएम नीरज यादव को आगामी आदेश तक सभी खरीद प्रक्रिया से बाहर रखने का आदेश दिया था. बावजूद इसके डीपीएम नीरज यादव कोविड-19 की खरीद में पूरी तरह सक्रिय थे.
Also Read: पीपीई कीट खरीद घोटाला मामले में डीपीएम नीरज को स्टेट हेडक्वार्टर में योगदान करने का मिला आदेश, डीसी की अनुशंसा पर हुई कार्रवाई
डीपीएम नीरज कुमार यादव सदर अस्पताल, चाईबासा में गड़बड़ घोटोला करने के दौरान डीपीएम यूनिट के डाटा सेल के साथ ही स्टोर रूम के कर्मियों को हैंडल किया करते थे. प्राप्त सूत्रों के अनुसार, डीपीएम के द्वारा स्वास्थ्य उपकरणों एवं सामाग्रियों की खरादीरारी करने के लिए अधिकांश शार्ट टर्म निविदा निकाली जाती थी. इसके अलावा छोटे कोटेशन से अधिकतर सामाग्रियों की खरीद की जाती रही है. इसके लिए डीपीएम यूनिट के डाटा सेल में ही कोटेशन तैयार किया जाता था. साथ ही कोटेशन आदि को नोटिस बोर्ड में नहीं लगा कर सीधे रांची में डीपीएस के खास सप्लायरों को भेज दिया जाता था. जिसके कारण डीपीएम के खास लोग ही टेंडर एवं कोटेशन में हिस्सा लेते थे. वहीं, माल की डिलेवरी में लेट- लतीफी होने पर भी स्टोर में इंट्री दिखा दी जाती थी. इसका पता जैम से हुई खरीद में जांच करने स्टोर पहुंची टीम को सामाग्रियां कम मिलने पर विभाग को हुई थी.
Posted By : Samir Ranjan.