Jharkhand News (विजय शर्मा, इटखोरी, चतरा) : जैसे-जैसे तकनीक विकसित हो रहे हैं, वैसे-वैसे पारंपरिक धंधा विलुप्त होते जा रहा है. लोहार जाति के समक्ष भी यही स्थिति उत्पन्न हो गयी है. उनका पारंपरिक धंधा विलुप्त होने के कगार पर है. इनके समक्ष रोजगार की समस्या उत्पन्न हो गयी है. अब इनके पास फार, हल, कुदाल, कोड़ी बनवाने शायद ही कोई किसान आते हैं. इन कृषि यंत्रों का स्थान ट्रैक्टर, पावर ट्रिलर आदि ने ले लिया है. इनके भाथी (भट्ठी) के लौ की तपीस ठंडी होती जा रही है.
पुस्तैनी धंधा हुआ मंदा : देवनारायण लोहार
इटखोरी के देवनारायण लोहार ने कहा कि पहले खेती-बारी का कार्य हल-बैल से होता था, लेकिन अब ट्रैक्टर, पवार ट्रिलर समेत अन्य मशीनों से होने लगा है. इससे हमलोगों का पुस्तैनी धंधा मंदा हो गया है. मात्र 20 प्रतिशत कारोबार बचा है. वह भी दिनभर केवल पुराने औजार की पजाई ही करते हैं. आने वाले समय में हमलोग बेरोजगार हो जायेंगे. अब हल, कोड़ी, कुदाल, फार से कोई भी खेती नहीं करता है.
प्रमेश्वर लोहार ने कहा कि मैं 70 साल से अपना पारंपरिक धंधा कर रहा हूं. वह भी केवल समय बिताने के लिए. मात्र 15 प्रतिशत लोहारी काम बच रहा है. इसे किसी तरह ढो रहा हूं. अब कोई भी किसान नहीं आता है. पहले किसान कोड़ी, कुदाल, हल, टांगी बनवाने आते थे. अब तो दर्शन भी नहीं होता है. आनेवाले समय में लोहार जाति पूरी तरह बेरोजगार हो जायेगा. जिस पुस्तैनी धंधा पर आश्रित है वही बंद होने के कगार पर है.
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प्रभु लोहार ने कहा कि नये- नये तकनीक से हमलोग बेरोजगार होने के कगार पर पहुंच गये हैं. पहले खेती कार्य का उपकरण हमलोग बनाते थे, लेकिन अब तो ट्रैक्टर से सारा कार्य होता है. पहले की अपेक्षा मात्र 15 से 20 प्रतिशत धंधा ही बचा हुआ है. आने वाले समय में वह भी बंद हो जायेगा. सरकार लोहार जाति के लिए कोई रोजगार की व्यवस्था करे.
Posted By : Samir Ranjan.