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पीठ पर बैग और कांधे पर बच्ची को लिए सैकड़ों मील पैदल चल कर गुरुग्राम से दरभंगा पहुंचा प्रवासी, बोला- वापस जाने की बात तो सोच ही नहीं सकता

कोरोना संकट के बीच देशभर में चल रहे लॉकडाउन की वजह से कामकाज बंद रहने के कारण अपने परिवार का जीविकोपार्जन करनेवाले मजदूरों को कई तरह परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. लॉकडाउन की वजह से सबसे ज्यादा मार प्रवासी मजदूरों पर पड़ रही है. रोजगार की तलाश में पहले अपना घर और गांव छोड़कर दूसरे राज्यों में गये इन प्रवासी मजदूरों को अब अपने प्रदेश लौटने के लिए कई तरह की परेशानी व बाधाओं को पार करना पड़ रहा है.

दरभंगा : कोरोना संकट के बीच देशभर में चल रहे लॉकडाउन की वजह से कामकाज बंद रहने के कारण अपने परिवार का जीविकोपार्जन करनेवाले मजदूरों को कई तरह परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. लॉकडाउन की वजह से सबसे ज्यादा मार प्रवासी मजदूरों पर पड़ रही है. रोजगार की तलाश में पहले अपना घर और गांव छोड़कर दूसरे राज्यों में गये इन प्रवासी मजदूरों को अब अपने प्रदेश लौटने के लिए कई तरह की परेशानी व बाधाओं को पार करना पड़ रहा है. इसी क्रम में कईयों को अपनी जान भी गंवानी पर रही है. लेकिन, इनमें से कई प्रवासी किसी भी तरह से अपनों के बीच पहुंच पाने में कामयाब हो पा रहे हैं. इन्हीं में शामिल बिहार के एक प्रवासी परिवार की गुरुग्राम से दरभंगा तक की कठिन यात्रा के बारे में विस्तार से जानते हैं.

मां ने डबडबायी आखों से कहा…

हमरा त भरोसा नई रहे, मुदा सैन के राति में घर पहुंचल, त मोन अस्थिर भेल. आब दु दिन से भरि पेट खयबो करै छि आ चैन से सुतबो करै छि. यह कहते हुए बिहार में दरभंगा की अहियारी उत्तरी पंचायत के गांधीनगर टोले की विमल देवी की आंखें डबडबा जाती हैं. बताया कि जहिया से घर के लेल चलि देबे के बात बौआ कहलक तहिया से दिन राति इहे चिंता में समय बितैत रहे. सात-आठ दिन के समय केना बीतल पतो नई चलल. भूख आ पियास सबटा बिसरा गेल रहै. किछुओ नीक नई लगैत रहे.

राशन समाप्त हो गया था, पैसे भी कम ही बचे थे…

सोमवार को परिजनों के साथ होम क्वारेंटिन में समय बिता रहे चंदन कुमार ने बताया कि वर्ष 17 से हरियाणा के गुरुग्राम स्थित मानेसर प्लांट में मारुति का स्पेयर पार्ट बनाने का काम करते थे. पत्नी और एक तीन साल की बच्ची के साथ किराये के मकान में रहते थे. लॉकडाउन के बाद प्लांट में काम बंद हो गया. राशन समाप्त हो गया था, पैसे भी कम ही बचे थे. कोई उपाय नहीं सूझ रहा था.

8 मई की रात पत्नी और बच्ची को लेकर पैदल ही सफर पर निकल पड़े, पुलिस वाले ने रोका…

आठ मई को रात नौ बजे पत्नी और बच्ची को लेकर पैदल ही सफर पर निकल पड़े. रात भर पैदल चले, सुबह आठ बजे फरीदाबाद पलवल पहुंचे. पुलिस वाले ने रोका और पूछताछ के बाद आगरा तक जाने वाली एक ट्रक पर चढ़ा दिया. ट्रक के सहारे आगरा से लखनऊ, फिर मोहनिया बॉर्डर पहुंचे. बॉर्डर पर प्रशासन से जुड़े लोगों ने रोका, खाना खिलाया गया. जांच करवाने के बाद दरभंगा की ओर आ रही ट्रक में बैठा दिया. ट्रक मुसरीघरारी (समस्तीपुर) में उतार दिया. वहां भी प्रशासन द्वारा खाना-पानी दिया. जांच के बाद दरभंगा भेज दिया.

दरभंगा में भी हुई जांच, 16 मई की शाम पहुंचे जाले

दरभंगा में भी जांच हुई. नाश्ता-पानी देकर जाले प्रखंड मुख्यालय भेजा गया. 16 मई की शाम को जाले पहुंचे. वहां जांच के बाद घर भेजने के लिए एक अधिकारी ने गांव से गाड़ी मंगवाने को कहा. गांव से रात में कोई गाड़ी नहीं आयेगी की बात सुनते ही दूसरे अधिकारी हरकत में आये. फोन कर कहीं से एक मैजिक गाड़ी मंगवाया, मैजिक से हमलोग रात ग्यारह बजे घर पहुंचे.

लॉकडाउन के बाद आठ दिन तक जैसे-तैसे चला काम, फिर…

चंदन ने बताया कि मार्च में 21 दिन के काम का पैसा कंपनी ने दो अप्रैल को खाते में भेजा. इसके बाद कोई पूछने तक नहीं आया. लॉकडाउन के बाद आठ दिन तक जैसे-तैसे काम चला. राशन समाप्त होने लगा तो सोच में पड़ गये. घर आने का कोई उपाय नहीं था. प्लांट परिसर स्थित पूरनमल मंदिर में प्रवासियों को खाना मिलने की जानकारी मिली. आधार कार्ड दिखाने के बाद वहां से एक टाइम का खाना मिलने लगा. इस बीच ट्रेन शुरू होने और बिहार जाने वालों के लिए रजिस्ट्रेशन कराने की जानकारी दी गयी. रजिस्ट्रेशन करवाया, रजिस्ट्रेशन कंफर्म होने का मैसेज मिला. लेकिन, ट्रेन कब जायेगी, इसकी जानकारी अभी तक नहीं मिल पायी है.

इतनी परेशानी झेलने के बाद अभी वापस जाने की बात तो सोच भी नहीं सकता

चंदन ने बताया कि घर आने तक किराया मद में कोई पैसा खर्च नहीं हुआ है. खाने-पीने में थोड़ा खर्च हुआ है, लेकिन जहां-तहां प्रशासन द्वारा भी खाना मिला. लेकिन, आठ दिन तक परेशानी झेलने के बाद टूट गया हूं. गुरुग्राम से फरीदाबाद तक पैदल चलने में काफी परेशानी हुई. बच्ची पैदल-चलते गिर गयी. पीठ पर बैग और कांधे पर बच्ची को लिए मीलों पैदल चलने के बाद फरीदाबाद पहुंचे थे. भगवान न करे कि किसी को ये दिन देखना पड़े. भला हो मकान मालिक का जिसने तत्काल किराया नहीं लिया है. कहा अभी जाओ, जब आओगे तब दे देना. लेकिन, इतनी परेशानी झेलने के बाद अभी वापस जाने की बात तो सोची ही नहीं जा सकती.

वीरान घरों में लौटी खुशियां

जैसे-तैसे ही सही प्रवासियों के लौटने से वीरान घरों में बच्चों का कलरव सुनाई दे रहा है. परिजनों की सकुशल वापसी पर बूढ़े मां-बाप ईश्वर को धन्यवाद देते नहीं थक रहे हैं. बाल-बच्चों के सकुशल घर आने से घर पर अकेली मां की खुशी का ठिकाना नहीं है. फिलहाल बेटा, बहू और पोती होम क्वारेंटिन में है, लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि सभी करीबी नजर के सामने है. (इनपुट : शिवेंद्र कुमार शर्मा, कमतौल, दरभंगा)

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