।। मुखर्जी नगर दिल्ली से पंकज पाठक और सूरज ठाकुर की रिपोर्ट ।।
नयी दिल्ली : Delhi Legislative Assembly election 2020 दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए 8 फरवरी को मतदान होना है. गुरुवार की शाम प्रचार कार्य थम गया. प्रचार के आखिरी दिन तीनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों (बीजेपी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस) ने पूरी ताकत झोंक दी.तीनों पार्टियों ने अपने-अपने घोषणा पत्र और संकल्प पत्र जारी कर दिए हैं. लेकिन इसमें छात्रों के लिए क्या है.
विशेष तौर पर उन छात्रों के लिये जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं. इस पूरे चुनावी कैंपेन के दौरान पूर्वांचली लोगों की काफी सारी बातें कही गयी हैं. इसलिए, पूर्वांचली छात्रों की दिल्ली चुनाव और छात्रहित के मुद्दों पर क्या राय है, ये जानने के लिए हम मुखर्जी नगर पहुंचे.
* मुखर्जी नगर में छात्रों ने क्या कुछ कहा?
प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी से संबंधित कोचिंग संस्थानों तथा पीजी की सैकड़ों होर्डिंग्स के बीच हम टी स्टॉल पर पहुंचे. यहां बड़ी संख्या में छात्र कंधे पर किताबें और नोट्स से भरे बैग को लटकाए सिलेबस और क्लासेज की चर्चा करते दिखे. यहीं हमारी मुलाकात राहुल से हुई, जो कुछ ही समय पहले दिल्ली आये हैं, एसएससी, सीजीएल की तैयारी के लिए. हमने राहुल से दिल्ली चुनाव पर छात्रहित के मुद्दे से संबंधित सवाल पूछे.
राहुल ने कहा कि किसी भी राजनीतिक दल का एजेंडा छात्रहित नहीं है, क्योंकि ये मुद्दा तात्कालिक लाभ नहीं पहुंचाता. तमाम पार्टियां उन मुद्दों को ढूंढ़ती है जो तुरंत चुनावी लाभ पहुंचा दे और जब ऐसा मुद्दा नहीं मिलता तो बयानबाजियों से ऐसा मुद्दा पैदा किया जाता है. राहुल कहते हैं कि वो जब से मुखर्जी नगर में रह रहे हैं, उन्हें पीजी में रहने से लेकर मेस में खाने तक परेशानियों को सामना करना पड़ा है. वो बताते हैं कि पीजी में छोटे-छोटे कमरों में छात्रों को काफी मंहगी दरों में रखा जा रहा है. खाने की क्वालिटी काफी खराब है जबकि पैसा काफी लिया जाता है. कोचिंग संस्थानों की फीस काफी मंहगी है.
* दीर्घकालिक योजना बनाए पॉलिटिकल पार्टियां
राहुल के ही साथ बिहार के रहने वाले एक छात्र ने बताया कि बहुत जरूरी है कि राजनीतिक पार्टियों की प्राथमिकता शिक्षा और छात्र हो. इनका कहना था कि यदि कहीं शिक्षा होगी तो विकास के नये आईडिया आएंगे. इन्होंने कहा कि केवल हॉस्टल में बेड बढ़ाना या फीस में कमी करना ही हमारा मुद्दा नहीं है बल्कि क्वालिटी एजुकेशन भी मिलनी चाहिए. हमारी मूलभूत जरूरतों पर ध्यान देना चाहिए और फिलहाल जो मनमानी व्यवस्था चल रही है उसकी मॉनिटरिंग जरूर होनी चाहिए. इन्होंने ये कहा कि राजनीतिक पार्टियों को तात्कालिक चुनावी लाभ की बजाय दीर्घकालिक योजना पर काम करना चाहिए और उसमें शिक्षा प्रमुख मसला है.
* फूड क्वालिटी और पीजी है बड़ी शिकायत
बिहार के अररिया के रहने वाले एक छात्र ने कहा कि मुखर्जी नगर में हमारे जैसे छात्र जो हजारों किमी अपने घर से दूर यहां तैयारी करने आते हैं उनकी सिक्योरिटी के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. उन्होंने कहा कि यहां पेइंग गेस्ट काफी महंगा है लेकिन महंगाई के हिसाब से सुविधा नहीं है.
फूड क्वालिटी काफी खराब है, जबकि जितना पैसा वसूला जाता है, कहीं बेहतर खाना मिलना चाहिए था. घंटों की क्लास और सेल्फ स्टडी के बाद हमें जो भोजन खाना पड़ता है, हम अक्सर बीमार पड़ जातें है. ऐसी स्थिति में चौतरफा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है क्योंकि पहले तो हमें खाना और रहना महंगा पड़ता है. कोचिंग संस्थानों की फीस हजारों में है. इन सबके बाद यदि बीमार पड़ गए तो पैसे, समय और पढ़ाई तीनों का नुकसान उठाना पड़ता है.
* शिक्षा-रोजगार को शामिल करना चाहिए घोषणापत्र में
यहीं हमारी मुलाकात मिथिलांचल के रहने वाले एक ऐसे छात्र से हुई जो संघ लोक सेवा आयोग की तैयारी कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि चुनाव में बात बेसिक जरूरतों की होनी चाहिए. विशेष तौर पर राजनीतिक पार्टियों को अपने घोषणापत्र में शिक्षा और रोजगार को प्रमुखता से शामिल करना चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं है.राजनीतिक पार्टियां वो मुद्दे तलाशती है जिससे तात्कालिक चुनावी लाभ मिले. उन्होंने बताया कि मुखर्जी नगर में पीजी में रहना काफी महंगा है, लेकिन छोटे-छोटे कमरों में एक तरह से छात्रों को ठूंस दिया जाता है. रहना मजबूरी है. खाने की स्थिति काफी खराब है.
क्लासेज और सेल्फ स्टडी के बाद इतना समय नहीं बचता कि हम खुद से खाना बना सकें.उनका कहना है कि फ्री बिजली और पानी की खूब बातें की जाती हैं, लेकिन मकान मालिक छात्रों से बड़ी रकम बिजली-पानी के नाम पर वसूलते हैं. लेकिन हम शिकायत करने की सोचें तो हमारा प्रतिनिधित्व कौन करेगा. इन्होंने बताया कि इतनी मुश्किलों के बाद जब हम परीक्षा देते हैं तो क्वेश्चन पेपर लिक हो जाता है. परीक्षा स्थगित हो जाती है. वैकेंसी निकलती नहीं. अगर किसी तरह से परीक्षा ले ली गयी तो सालों तक नियुक्ति के लिए इंतजार करना पड़ता है. जरूरी है कि चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियां इसे भी अपना मुद्दा बनाये.