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दिल्ली विधानसभा चुनाव: दुकानदारों की दिक्कतों को राजनीतिक दलों के घोषणापत्र में जगह नहीं मिलती !

दिल्ली से पंकज पाठक और सूरज ठाकुर की रिपोर्ट:दिल्ली में अधिकांश आबादी कभी ना कभी, कहीं ना कहीं से रोजगार की तलाश में आई है. चाहे वो परंपरागत तरीके से दुकान चला रहा हो, किसी ऑफिस में काम कर रहा हो या अस्थायी ठेला-खोमचा वाला है. दिल्ली की अर्थव्यवस्था में इन सबका योगदान है. दिल्ली […]

दिल्ली से पंकज पाठक और सूरज ठाकुर की रिपोर्ट:दिल्ली में अधिकांश आबादी कभी ना कभी, कहीं ना कहीं से रोजगार की तलाश में आई है. चाहे वो परंपरागत तरीके से दुकान चला रहा हो, किसी ऑफिस में काम कर रहा हो या अस्थायी ठेला-खोमचा वाला है. दिल्ली की अर्थव्यवस्था में इन सबका योगदान है. दिल्ली चुनाव के मद्देनजर, यहां के व्यापारियों के मुद्दे क्या हैं, दिक्कतें क्या हैं और वो आने वाली सरकार से क्या उम्मीद रखते हैं, हमने इस बारे में बात करने के लिए लक्ष्मीनगर का रूख किया.

सबसे पहले हमारी मुलाकात इलेक्ट्रॉनिक्स के बिजनेस में लगे शिवकुमार से हुई. दिल्ली चुनाव और बिजनेस की स्थिति के बारे में पूछने पर शिवकुमार ने कहा कि लक्ष्मीनगर मार्केट लगभग 30 से 35 साल पुराना है. लेकिन, बीते सात-आठ सालों में यहां व्यापार की स्थिति अच्छी नहीं रह गयी है. लाभांश घटकर पहले के मुकाबले एक चौथाई रह गया है. इसका कारण पूछने पर शिवकुमार बताते हैं कि बीते की सालों से यहां सड़कों की चौड़ाई कम थी. जब सड़कें बनी भी तो यहां अस्थायी दुकानदारों ने दुकानें लगा लीं.
रास्ते तंग हो गये. पार्किंग की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं करवाई गयी. इसकी वजह से लोगों ने परंपरागत दुकानों से मुंह मोड़कर शॉपिंग मॉल का रूख कर लिया. इससे खरीददार जाम की समस्या से बच गए, और उन्हें अतिरिक्त समय भी मिलने लगा. उन्होंने कहा कि बीते सालों से हम सेल टेक्स, कन्वर्जन टेक्स और हाउस टेक्स भरते हैं लेकिन इसके मुकाबले हमें जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर मुहैया नहीं करवाया जाता.
ऐसी स्थिति में व्यापार में गिरावट आती है. इन्होंने बताया कि नयी सरकार को चुनते समय इनके मन में ये बात होगी कि वो इन जैसे परंपरागत स्थायी दुकानदारों के लिये क्या करेंगे.
यहीं लक्ष्मीनगर में प्रभात खबर.कॉम टीम की मुलाकात अरविंदर पाल सिंह से हुई जो मोबाइल एसेसरिज की छोटी सी दुकान चलाते हैं. बिजनेस के हालात और नयी सरकार से इस दिशा में उम्मीद के बाबत पूछने पर उन्होंने कहा कि बीते कई सालों से इन स्थायी छोटे दुकानदारों के बिजनेस में गिरावट आयी है. इसका कारण वे लक्ष्मीनगर की तंग गलियों को ठहराते हैं.
इनका कहना है कि लक्ष्मीनगर में गलियां तंग है. जो जगहें बनायी गयी थीं वहां अस्थायी दुकानदार अपनी अजीविका ढूंढ़ रहे हैं. सरकार ने भी तमाम तरह का टैक्स वसूलने के बावजूद अनुकूल इन्फ्रास्ट्रक्चर मुहैया नहीं करवाया. इनका भी यही कहना था कि पार्किंग की सुविधा नहीं होने की वजह से यहां कोई आना नहीं चाहता. क्योंकि कई घंटे उनको ट्रैफिक में ही बिताना पड़ जाएगा.
दिल्ली जैसे शहर में समय काफी महत्वपूर्ण है. इसलिए लोग शॉपिंग मॉल का रूख कर लेते हैं या फिर ऑनलाइन खरीददारी कर लेते हैं. अरविंदर पाल सिंह का मानना है कि इससे बिजनेस को नुकसान हुआ है. इनका कहना है कि यदि उनके इलाके में किसी प्रकार की कोई दुर्घटना होती है तो फायर ब्रिगेड या रेस्क्यू टीम को पहुंचने में घंटो लग जाएंगे. इसलिए नयी सरकार से उम्मीद होगी कि वो इन्फ्रास्ट्रक्चर पर काम करे.
वहीं लक्ष्मीनगर में रेडिमेड कपड़ों की दुकान चलाने वाले अमित सासन की राय थोड़ी अलग थी. हालांकि अमित इस बात से सहमत दिखे कि बिजनेस में बीते कुछ सालों में गिरावट आयी है. लेकिन इसका कारण उन्होंने कुछ और बताया. अमित का कहना है कि हाल के कुछ सालों में लोगों को वैसी नौकरियां नहीं मिलीं. कोई नया रोजगार नहीं पैदा किया गया. लोगों की आमदनी घट गयी जिसकी वजह से क्रयशक्ति में भी कमी आयी.
इनका मानना है कि यदि लोगों के पास कुछ खरीदने को पैसे नहीं होंगे तो हम दुकानदार बेचेंगे क्या. बिजनेस चलते रहने के लिए जरूरी है कि लोगों के पास कपड़े, मोबाइल, गहने या किसी भी जरूरत की चीज को खरीदने के लिए पैसे हों. यदि लोगों के पास पास पैसा होगा तो वो जरूर खरीददारी करेंगे. इससे पैसा मार्केट में सर्कुलेट होगा और व्यापार बढ़ेगा.
अमित सासन ने कहा कि नई सरकार से उम्मीद है कि वो लोगों को रोजगार मुहैया करवाकर या नई नौकरियां सृजित कर उनका हाथ मजबूत करे ताकि खरीददारी में इजाफा हो और व्यापार पटरी पर लौट सके.
प्रभात खबर.कॉम के टीम की मुलाकात मूल रूप से झारखंड के कोडरमा जिले के रहने वाले उमेश यादव से भी हुई. उमेश दिल्ली के लक्ष्मीनगर मार्केट में कमीशन पर कॉस्मेटिक्स की अस्थायी दुकान लगाते हैं. वे बीते 17 सालों से दिल्ली में रह रहे हैं. उनका कहना है कि महीने में आठ से दस हजार रूपये की कमाई हो जाती है जिसमें से तकरीबन पांच हजार रुपये मकान का किराया देने और खाने-पीने में खर्च हो जाता है. उमेश बताते हैं कि महंगाई बढ़ गई है. इनका कहना है कि राजनीतिक पार्टियों के चुनावी एजेंडे या घोषणापत्र में हम जैसे अस्थायी दुकानदारों को जगह नहीं मिलती.
थोड़ा आगे बढ़ने पर हमारी मुलाकात लक्ष्मीनगर में बीते कई पीढ़ियों से बर्तन की स्थायी दुकान लगाने वाले एक शख्स से हुई. इन्होंने इस बात से सहमति जताई कि बिजनेस में गिरावट आयी है लेकिन इस बात से सहमत नहीं दिखे कि लक्ष्मीनगर की तंग गलियां या रेहड़ी-खोमचे वाले इसके पीछे का कारण हैं.
उन्होंने कहा कि बिजनेस में कमी चक्रीय है और इसमें बदलाव आएगा. इनका कहना था कि दुकानदारों को ही अपने परंपरागत तरीकों को छोड़कर कुछ नया सोचना होगा.

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