Delhi Assembly Elections Results 2020: इन कारणों से अरविंद केजरीवाल और AAP ने किया शानदार प्रदर्शन
Delhi Assembly Elections Results 2020 दिल्ली विधानसभा के सभी 70 सीटों पर वोटों की गिनती आज हो हो रही है. अभी तक के शुरुआती रुझानों के मुताबिक, आम आदमी पार्टी एक बार फिर से सरकार बनाने जा रही है. हालांकि अभी तक अंतिम नतीजे नहीं आए हैं लेकिन रुझानों से साफ है कि आप काफी […]
Delhi Assembly Elections Results 2020 दिल्ली विधानसभा के सभी 70 सीटों पर वोटों की गिनती आज हो हो रही है. अभी तक के शुरुआती रुझानों के मुताबिक, आम आदमी पार्टी एक बार फिर से सरकार बनाने जा रही है. हालांकि अभी तक अंतिम नतीजे नहीं आए हैं लेकिन रुझानों से साफ है कि आप काफी आगे चल रही है. शुरुआती रुझानों को देखते हुए आप कार्यकर्ताओं और समर्थकों में खुशी की लहर है.
आप के दफ्तर में खुद मुख्यमंत्री अरिवंद केजरीवाल मौजूद हैं. वहां जमकर जश्न मनाया जा रहा है. अगर चुनावी परिणाम एग्जिट पोल के मुताबिक ही होते हैं तो यह मानना पड़ेगा कि दिल्ली की जनता ने हर मुद्दे पर गौर करने के बाद अरविंद केजरीवाल पर भरोसा जताया है. अब सवाल यह उठता है कि दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी की यह बढ़त किस कारण से है? ये हैं उसकी वजहें…….
‘मुफ्त’ …’मुफ्त’..’मुफ्त’
अगर जनता सरकार को टैक्स देती है तो सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह उसकी दैनिक जरूरतों का ख्याल रखे. बिजली, पानी और सफर जैसे पहलुओं इनमें सबसे अहम हैं. अरविंद केजरीवाल की सरकार दिल्ली की ज्यादातर आबादी को बिजली और पानी मुफ्त देती है. वहीं, महिलाओं के लिए डीटीसी बसों सफर मुफ्त कर दिया गया. एक तरह से दिल्ली सरकार ने अपने इन फैसलों से बड़े तबके को प्रभावित किया. आप ने महिलाओं के लिए मेट्रो में भी मुफ्त सफर का प्रस्ताव बनाया है.
चाल, चरित्र से ज़्यादा अहम चेहरा
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के शुरुआती रुझानों से एक बात साफ है कि दिल्ली के दिल में फिलहाल अरविंद केजरीवाल ही हैं. दिल्ली वासियों को केजरीवाल की सियासत और नेतृत्व पर ज़्यादा भरोसा है. भाजपा के जीतने की स्थिति में दिल्ली की कमान किसे मिलेगी? इस सवाल का जवाब बीजेपी कभी नहीं दे पायी. शायद इसी वजह से केजरीवाल बार-बार भाजपा को इस मुद्दे पर घेरते रहे. दिल्ली विधानसभा चुनाव ने ये तो साफ कर दिया है कि चेहरा नहीं तो पूरे मन से वोट भी नहीं.
स्थानीय मुद्दे-बिजली, पानी, स्कूल
जब चुनाव स्थानीय है तो राष्ट्रीय मुद्दे का क्या करना? आप ने बीते एक साल से केजरीवाल के नेतृत्व वाली सरकार के पक्ष में माहौल बनाने के लिए हमेशा ही स्थानीय मुद्दों पर जोर दिया. चाहे बात बिजली की हो या पानी की. इन्हें बार-बार मुद्दा बनाया गया. पार्टी शुरू से जानती थी कि बिजली और पानी जैसे मुद्दे दिल्ली के हर आदमी को प्रभावित करते हैं. ऐसे में इसका असर वोट पर भी दिख रहा है. इन सबके बीच दिल्ली सरकार के स्कूलों की बेहतर होती स्थिति भी मुद्दा बना रहा.
कांग्रेस का रेस से गायब होना
दिल्ली चुनाव में तीन बड़ी पार्टियां थीं- आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस. लेकिन चुनाव प्रचार से लेकर वोटों की गिनती से यह साफ हो गया है कि चुनाव बीजेपी और आप के बीच है. कांग्रेस रेस में कहीं भी नहीं है. इसका ज़्यादा फायदा आम आदमी पार्टी को हुआ है. कांग्रेस के मतों का बंटवारा हुआ जो आप पर शिफ्ट कर गया. वोट प्रतिशत के हिसाब से किस पार्टी को कितना फायदा और कितना नुकसान हुआ. यह तो नतीजे घोषित होने के बाद ही साफ हो पाएगा. लेकिन कांग्रेस का चुनाव का हिस्सा होकर भी ना के बराबर चुनाव लड़ पाना भी आम आदमी पार्टी के पक्ष में जाता दिख रहा है.
मोदी पर ‘मौन’, बाकी पर ‘आक्रमण’
केजरीवाल ने पिछले अनुभवों से सीखा है कि पीएम मोदी पर सीधा हमला उनके पक्ष में नहीं जाता. लेकिन उनके बाद भाजपा में कोई ऐसा नेता नहीं जिस पर सियासी हमले का कोई नुकसान हो. केजरीवाल इसी रणनीति को दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के चुनाव प्रचार अमल में लाते रहे.
चुनाव प्रचार के दौरान जब पाकिस्तान से प्रतिक्रिया आई तो इस पर केजरीवाल ने साफ तौर पर कहा कि मोदी इस देश के प्रधानमंत्री हैं और पड़ोसी मुल्क को इस पर बोलने का कोई हक नहीं है. दूसरी तरफ, अरविंद केजरीवाल के निशाने पर अमित शाह से लेकर दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष मनोज तिवारी थे. पूरे चुनावी प्रचार के दौरान केजरीवाल पीएम मोदी के नाम पर मौन ही रहे.
बीजेपी नेकीकोशिश मगर,
चुनाव से पहले ही आम आदमी पार्टी ने यह तय कर लिया था कि वह ऐसे मुद्दों से बचेगी जिनमें भाजपा को फायदा हो. चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने यह तय कर दिया वह शाहीन बाग में चल रहे धरना प्रदर्शन को मुद्दा बनाएगी. भाजपा का मकसद इसे सांप्रदायिक रंग देकर सियासी फायदा उठाने का था.
भाजपा नेताओं द्वारा बार-बार केजरीवाल को इस मुद्दे पर अपनी राय रखने का ताल ठोकते थे लेकिन केजरीवाल ने चतुराई से इस मुद्दे पर दूरी बनाए रखी. साथ ही खुद को हनुमान भक्त बताकर भाजपा के सांप्रदायिक कार्ड को फेल करने की भी कोशिश की. चुनाव प्रचार के अंतिम दिनों में केजरीवाल मंदिर में दर्शन करने भी पहुंचे थे.