Delhi Services Bill : राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार, 2023 विधेयक का मसौदा बुधवार को लोकसभा में चर्चा के लिए रखा गया. इसके साथ ही ‘दिल्ली सेवा विधेयक’ नाम का यह कानून संसद में मतदान के लिए रखे जाने के करीब पहुंच गया है. लोकसभा में अपने पूर्ण बहुमत के कारण, भाजपा शासित केंद्र इस विधेयक को संसद के निचले सदन से आसानी से पारित करा लेगा. लेकिन क्या यह मामला राज्यसभा में जाकर फंस जाएगा. क्या राज्यसभा में सरकार के पास उचित बहुमत है?
मीडिया सूत्रों की मानें तो राज्यसभा में संख्या का खेल ऊपरी सदन में विधेयक के सुचारू रूप से पारित होने में परेशान कर सकता है. राज्यसभा में भाजपा के 92 विधायक हैं, जबकि उसके एनडीए सहयोगियों के पास सदन में 11 सांसदों की संयुक्त ताकत है. इस बीच, बीजद और वाईएसआरसीपी ने जीएनसीटीडी विधेयक के संबंध में सरकार को अपना समर्थन देने की घोषणा की है. दोनों पार्टियों के पास नौ-नौ राज्यसभा सांसद हैं. माना जा रहा है कि इन सांसदों के सरकार को समर्थन से विवादास्पद कानून के समर्थन में वोटों की कुल संख्या कम से कम 121 हो जाएगी.
प्रत्याशित आंकड़ा बताता है कि सरकार का रुख आसानी से राज्यसभा में बहुमत के 119 के आंकड़े को पार कर जाएगा, अगर सदन के सभी 237 मौजूदा सदस्य मौजूद हों और मतदान कर रहे हों. इसके अलावा, जद (एस) के पास भी सदन में एक वोट है. विशेष रूप से, एनडीए और जद (एस) ने कई मौकों पर 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए साथ आने का संकेत दिया है. ऐसे में यह मामला एनडीए के पक्ष में जा सकता है अगर गठबंधन को इन पार्टियों का समर्थन मिला.
दूसरी ओर, विपक्षी गठबंधन (I-N-D-I-A) के घटक दलों के पास राज्यसभा में 99 सांसदों की औपचारिक ताकत है. भले ही दोनों ओर से कोई संकेत नहीं दिया गया है, लेकिन ऐसा भी संभव है कि कांग्रेस राज्य सभा में आम आदमी पार्टी के विरुद्ध चले जाए. वहीं, तेलंगाना की BRS पार्टी का भी समर्थन किसे मिलेगा यह अभी तक तय नहीं हो पाया है. हालांकि, अभी कांग्रेस ने अपने गठबंधन के साथ मिलकर भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था.
के चन्द्रशेखर राव के नेतृत्व वाली पार्टी के राज्यसभा में सात सांसद हैं. यदि बीआरएस व्हिप विपक्ष के पक्ष में जाता है, तो ‘दिल्ली सेवा विधेयक’ के खिलाफ वोटों की कुल संख्या 106 तक जा सकती है. यह सात स्वतंत्र और मनोनीत राज्यसभा सांसदों के महत्व को उजागर करता है – जिनमें से लगभग सभी का इतिहास है भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के पक्ष में मतदान करने का रहा है. ऐसे में विपक्षी गठबंधन को राज्यसभा में भी मूंह की खानी पड़ सकती है.
यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मतदान प्रक्रिया के दौरान किसी भी पक्ष में कोई अंतर-गठबंधन असहमति दिखाई देती है, और क्या कोई प्रमुख दल संसद के दोनों सदनों में से किसी में मतदान करने से बचते हैं. कहने की जरूरत नहीं है, यह देखना अधिक दिलचस्प होगा कि क्या बीजेडी और वाईएसआरसीपी एनडीए सरकार के लिए समर्थन की घोषणा पर बात करते हैं या नहीं.