नयी दिल्ली : दिल्ली हाई कोर्ट ने पूर्वोत्तर दिल्ली दंगा मामले में फैसला सुनाते हुए कि एक ही घटना के लिए पांच अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती, क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानूनों के विपरीत है. दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस द्वारा आग की घटना के संबंध में दर्ज चार प्राथमिकी को रद्द कर दिया. पिछले साल मौजपुर में पूर्वोत्तर दिल्ली दंगे मामले में पुलिस ने मार्च 2020 में एक ही आरोपी पर पांच अलग-अलग मामले दर्ज किये थे.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक जाफराबाद पुलिस स्टेशन में दर्ज पांच प्राथमिकी में से केवल एक पर पुलिस को आगे बढ़ने की अनुमति देते हुए न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि पांच मामलों में दायर आरोपपत्र से पता चलता है कि वे कमोबेश एक जैसे हैं और आरोपी भी एक ही हैं. हालांकि, अगर कोई सामग्री है जो आरोपी के खिलाफ पाई गई है, तो उसे प्राथमिकी संख्या 106/2020 में रिकॉर्ड में रखा जा सकता है.
अदालत ने मामले के एक आरोपी अतीर द्वारा दायर चार याचिकाओं को अपने वकील तारा नरूला के माध्यम से स्वीकार करते हुए आदेश पारित किया, जिन्होंने तर्क दिया कि अलग-अलग परिवारों द्वारा दायर की गयी शिकायतों पर एक एकल आवासीय इकाई के संबंध में पांच प्राथमिकी दर्ज की गयी है. नरूला ने अदालत को यह भी बताया कि यह वही फायर ब्रिगेड ट्रक था जिसने आग को बुझाया था. दिल्ली पुलिस ने दावा किया कि संपत्तियां अलग थीं और नुकसान व्यक्तिगत रूप से निवासियों द्वारा झेला गया है.
न्यायमूर्ति प्रसाद ने कहा कि प्राथमिकी एक घर से संबंधित है जहां आग शरारत से शुरू की गयी थी और तत्काल पड़ोसी परिसर के साथ-साथ उसी घर के फर्श में फैल गयी थी. अदालत ने यह भी कहा कि प्राथमिकी में कहा गया है कि एक ही परिसर में इमारतों के कुछ हिस्सों में रहने वाले प्रत्येक शिकायतकर्ता को मौद्रिक नुकसान हुआ था और उनके सामान और अन्य कीमती सामानों को जला दिया गया था.
यह कहते हुए कि संपत्तियां एक दूसरे से अलग या अलग हो सकती हैं लेकिन एक ही कंपाउंड में स्थित हैं. साइट प्लान वाली चार्जशीट से पता चलता है कि सभी संपत्तियां एक ही परिसर का हिस्सा हैं या वे एक दूसरे के बहुत करीब हैं. कोर्ट ने यह भी कहा कि उक्त परिसर में अधिकांश घर एक ही परिवार के हैं और उनके पूर्वजों द्वारा विभाजित होने के बाद परिवार के विभिन्न सदस्यों के स्वामित्व में थे.
बेंच ने नोट किया कि उसी परिसर के भीतर या ठीक उसी स्थान पर जहां आग लगाई गई थी, मार्ग की चौड़ाई के बारे में एक विसंगति हो सकती है, लेकिन दोनों पक्ष सहमत हैं कि यह एक परिसर के भीतर है. इस विषय पर कानून भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों के अनुरूप तय किया गया है. एक या एक से अधिक संज्ञेय अपराधों को जन्म देने वाले एक ही संज्ञेय अपराध या एक ही घटना के संबंध में कोई दूसरी प्राथमिकी और कोई नयी जांच नहीं हो सकती है.
Posted By: Amlesh Nandan.