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देवघर : पांच प्रकार के शिवलिंग का उल्लेख करता है पंचशूल, जानिए इसकी पूजा करने से कौन सा मिलता है लाभ

बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शीर्ष पर स्थित पंचशूल पांच प्रकार के शिव-लिंग का भी उल्लेख करता है. आज इन्हीं पांच प्रकार के शिव-लिंग के बारे में जानेंगे. साथ ही इनकी पूजा से क्या-क्या लाभ मिलता है, उसको भी जानेंगे.

डॉ मोती लाल द्वारी

लिंग पंचक : बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शिखर पर स्थित पंचशूल पांच प्रकार के शिव-लिंग का भी उल्लेख करता है. वे पांच शिवलिंग क्रमशः स्वयंभू लिंग, बिंदुलिंग, प्रतिष्ठित लिंग, चरलिंग और पांचवां गुरुलिंग से जाना जाता है. स्वयंभूलिंग- पृथ्वी के अंतर्गत बीच रूप से व्याप्त हुए भगवान शिव वृक्षों के अंकुर की भांति भूमि को भेदे कर नाद लिंग के रूप में व्यक्त हो जाते हैं. स्वयं व्यक्त होने के कारण ज्ञानी जन उन्हें स्वयंभूलिंग के रूप में जानते हैं. इनकी पूजा से उपासक का ज्ञान स्वयं बढ़ने लगता है.

बिंदुलिंग : सोने चांदी आदि के पत्र पर, भूमि पर अथवा वेदी पर अपने हाथ से लिखित जो शुद्ध प्रणव मंत्र रूप लिंग है, उसमें तथा मंत्र लिंग का आलेखन करके उसमें भगवान शिव की प्रतिष्ठा और उस आवाहन बिंदुलिंग कहलाता है. यह स्थावर और जंगम दोनों प्रकार का होता है. इसमें भावमय ही शिव का दर्शन है. यह ज्ञान और ऐश्वर्य दोनों प्रदान का करता है.

प्रतिष्ठितलिंग : देवताओं और ऋषियों द्वारा अपने हाथ से वैदिक मंत्रों के उच्चारण पूर्वक शुद्ध मंडल में शुद्ध भावना द्वारा जिस उत्तम शिवलिंग की प्रतिष्ठा की जाती है. यही प्रतिष्ठित लिंग कहलाता है. महान ब्राह्मण महाधनी राजा आदि जो कारीगर से शिवलिंग का निर्माण कराकर मंत्र पूर्वक उसकी स्थापना करते हैं, ऐसा लिंग भी प्रतिष्ठित लिंग कहलाता है. किंतु वह प्राकृत लिंग है, जो दुर्बल और अनित्य होता है, वह प्राकृत कहलाता है.

चरलिंग : कटि, हृदय और मस्तक तीनों स्थान में जो लिंग की भावना की गयी है. उस आध्यात्मिक लिंग को ही चरलिंग कहा गया है.

गुरुलिंग : निवृत्ति-मार्गी पुरुषों के लिए हाथ पर ही शिव-लिंग की पूजा का विधान है. निवृत्त पुरुषों के लिए यह सूक्ष्म लिंग ही ””गुरु लिंग है. भिक्षादि से प्राप्त अन्नादि ही इसका नैवेद्य और विभूति द्वारा इनकी पूजा होती है तथा नैवेद्य से विभूति को ही निवेदित करने का विधान है. पंचशूल इन पांचों लिंगों की भी जानकारी देता है.

शक्ति पंचक : शिव की पांच शक्तियां हैं. सर्व कृतत्व रूपा, सर्वतत्वा रूपा, पूर्णत्व रूपा, नित्यत्व रूपा और पांचवां व्यापक रूपा. इन पांचों शक्तियों को जानने की प्रेरणा पंचशूल देता है. शिव की शक्ति ही सृष्टि रचती है, सभी तत्वों में समायी रहती है. सर्वभाव से पूर्ण हैं, नित्य हैं और व्यापक है. तत्व पंचक में जिन पांच तत्वों- कला विद्या, राग कला और नियति का उल्लेख आया है, वे सभी शक्ति के अन्तर्गत ही हैं. पांचों तत्वों के रूप में प्रकट होने वाली कला है. तत्व के कर्तव्य और साधन के बीच बनी रहने वाली विद्या है. विषयों में आसक्ति पैदा करने वाली कला, राग है. संपूर्ण भूतों का आदिकाल है. कर्तव्य और अकर्तव्य पर नियंत्रण करने वाली विभु की शक्ति नियति है.

ये पांचों ही जीव के वास्तविक स्वरूप को आच्छादित करने वाले आवरण हैं. इसलिए इसका नाम ”पंच कंचुक” है. इनके निवारण के लिए शिवा की कृपा अत्यावश्यक है. विद्या पुरुष की ज्ञान शक्ति को और कला उसकी क्रियाशक्ति को अभिव्यक्त करती है. राग भोग्य वस्तु के लिए क्रिया में प्रवृत करानेवाला होता है. काल उसमें अवच्छेदक या निर्णायक होता है और नियति उसे नियंत्रण में रखती है. अव्यक्त रूप त्रिगुणमय कारण से जड़जगत की उत्पत्ति होती है और उसी में उसका लय भी होता है. तत्व चिंतक इसी को प्रधान और प्रवृति कहते हैं.

सभी गुण प्रकृति से प्रकट होते हैं. शक्ति की प्रधानता सर्वत्र है. इसलिएबैद्यनाथ मंदिर परिसर में पार्वती, काली और संध्या के मंदिर के शीर्ष पर भी पंचशूल है. ये महाशक्तियां बाबा बैद्यनाथ बैद्यनाथ के अर्द्धंग में निवास करने वाली त्रिपुर सुंदरी में समाहित रहती है. यही महाशक्तियां ”पंच कंचुक” से छुटकारा दिलाकर वैद्यनाथ से योग कराती हैं. बाबा वैद्यनाथ मंदिर के शिखर पर स्थित पंचशूल पांचों महाशक्तियों की जानकारी देते हुए स्पष्ट करता है कि महाशक्तियां ही आज्ञा हैं. इन्हीं की आज्ञा से बाबा बैद्यनाथ का अनुग्रह प्राप्त होता है. ये महाशक्तियां ही साधक को जगत प्रपंच से छुटकारा दिलाकर शिव-तत्व से मिलाती है. अतएव पंचशूल इनको जानने की प्रेरणा देता है.

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