सुबोध झा (शिक्षाविद्). कामना लिंग बाबा बैद्यनाथ व माता सती की हृदयस्थली देवघर अपनी अनूठी परंपराओं के लिए विश्व विख्यात है, जहां कोई भी अवसर को बाबा बैद्यनाथ से ही शुभारंभ किया जाता है. मासव्यापी श्रावण मेला में लगभग 100 किलोमीटर पैदल कांवर यात्रा कर उत्तरवाहिनी गंगा सुल्तानगंज से गंगाजल बाबा को अर्पण करने की प्रथा प्राचीनतम है. वर्तमान में श्रावणी मेला विश्व के सबसे लंबे क्षेत्र में लगने वाले (बिहार, झारखंड व बंगाल) धार्मिक मेला का रूप ले चुका है. यूं तो सालोंभर बाबा बैद्यनाथ पर गंगाजल, बिल्वपत्र व फूल अर्पित किया जाता है, लेकिन श्रावण मास में इसकी महत्ता और बढ़ जाती है. बैद्यनाथधाम के तीर्थ पुरोहित एवं स्थानीय निवासियों द्वारा आसपास के जंगलों व पहाड़ों से बिल्व-पत्र तोड़ कर बाबा बैद्यनाथ पर समर्पण की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. इन्हें आमतौर पर स्थानीय भाषा में ”बेलपतरिया” के नाम से संबोधित किया जाता है.
बेलपतरियों पर बाबा का चमत्कार!
आज जहां भौतिक युग में लोग विलासिता के पीछे पागल हैं, वहीं कुछ हठयोगी हाथ में साजी , डंडा लेकर सुदूर जंगलों से बिल्वपत्र तोड़कर लाने के लिए कृतसंकल्पित नजर आते हैं. ऐसा देखा गया है कि वो रात भर जंगलों में बिल्ववृक्ष के पास पहरेदार बने बैठे रहते हैं, ताकि उनके प्रतिद्वंदी उनसे पहले नमुनेदार पत्तियों को तोड़कर न ले जायें. रात में उनके अन्य दोस्त ढूंढते हुए आकर उन्हें भोजन, पानी और सुरक्षा प्रदान करते हैं. सोचिये कैसा समर्पण, न जंगली जानवरों का भय, न अपनी फिकर बस शिवनाम की धुन. प्राचीन काल की अनेकों घटनाएं सुनने में आती है कि बेलपतरियों का सामना जंगलों में हिंसक जानवरों से भी हुआ है, लेकिन कोई अप्रिय घटना कभी भी घटित नहीं हुई है. सब बाबा का चमत्कार ही माना जाता है. बिल्वपत्र अर्पण करने की परंपरा को अक्षुण्ण बनाये रखने का श्रेय परमपूज्य ब्रह्मचारी बम बम बाबा को जाता है.
बिल्वपत्र की समर्पण की परंपरा बनी प्रतियोगिता
पुरोहितों में बिल्वपत्र की समर्पण की परंपरा शास्वत बनाये रखने के लिए बम बम बाबा ने इसे प्रतियोगिता का रूप दिया. अलग-अलग समूहों द्वारा श्रावण के प्रत्येक सोमवार को मंदिर प्रांगण में बिल्वपत्र प्रदर्शनी, जानकारों की टिप्पणी और अंत में सारे बिल्वपत्रों का बाबा को समर्पण विशेष महत्व रखता है. लोग उत्सवी माहौल में अपनी प्रदर्शो का प्रदर्शन करते हैं और उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले दलों को पुरस्कृत भी किया जाता है. लोग भक्तिभाव से बिल्वपत्रों का दर्शन करते हैं और अपने आप को साैभाग्यशाली मानते हैं. यह मासव्यापी अनुष्ठान विधिवत पूजा अर्चना के बाद सम्पन्न होता है. समय के साथ बिल्वपत्र दलों की संख्या में इजाफा हुआ. युवाओं का परंपरा को अक्षुण्ण बनाये रखने की दिशा में कृतसंकल्पित होना एक सुखद पहल के रूप में देखा जा सकता है.
भोलेनाथ रुपया पैसा से नहीं, बिल्वपत्र, फूल व गंगाजल से प्रसन्न होते हैं
यूं तो सारे तीर्थपुरोहित अपने यजमानों की मंगल कामना हेतू बिल्वपत्रों को बाबा बैद्यनाथ पर अर्पित करते हैं, लेकिन बहुत सारे श्रद्धालुओं के द्वारा भी अपने तीर्थ पुरोहितों को सालों भर अपने नाम से संकल्प कराकर बाबा को बिल्वपत्र समर्पण करने की महती जिम्मेवारी देते हैं. ऐसी मान्यता है कि भोलेनाथ को रुपया पैसा से नहीं अपितु बिल्वपत्र, फूल व गंगाजल से प्रसन्न किया जा सकता है. बाबा पर अर्पित बिल्वपत्रों को लोग प्रसाद व औषधि के रूप में भी सेवन करते हैं. आज यह प्राचीन परंपरा समय काल के साथ साप्ताहिक बिल्वपत्र यात्रा के रूप में सालोंभर आयोजित किया जाता है और प्रतिदिन बाबा को पहाड़ी बेल्वपत्र से पूजा किया जाता है.
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