डॉ मोतीलाल द्वारी. बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शीर्ष पर स्थित पंचशूल जिन पांच महामंत्रों की ओर संकेत करता है, उसका पांचवां मंत्र ”चिंतामणि” मंत्र है. इसे दक्षिणा मूर्ति संज्ञक मंत्र कहा गया है. उपनिषद् में आया है – रूद्र यत्ते दक्षिणं मुखं तेन मां पाहि नियम” अर्थात यह जो तेरा दक्षिण मुख है, हे रुद्र, उसके द्वारा आप सर्वदा मेरी जन्म-मृत्यु भय से रक्षा करें. भगवान शिव का यह अघोर स्वरूप है. इनका स्थान हृदय है तथा ये विद्या कला से युक्त हैं. शिव की यह मूर्ति योग-मोक्ष दोनों देने में समर्थ हैं. ये बाबा बैद्यनाथ हैं. ये हृदय-पीठ पर ही अवस्थित हैं. ”अघोर विग्रहम्” देवस्य दक्षिण वस्त्रं, विद्या पदं समारुढ़ं, शक्त्या सह समार्चितम्, आदि वाक्य इनके संबंध में आये हैं. यह दक्षिणा मूर्ति संज्ञक चिंतामणि मंत्र की सिद्धि इनकी कृपा से होती है. शिव में विनाशशील जड़ वर्ग अविद्या और अविनाशी अमृत वर्ग विद्या दोनों समाहित हैं और शिव इनसे परे भी हैं तथा दोनों वर्गों के शासक भी हैं.
आत्मज्ञान उपलब्ध कराता है यह मंत्र
चिंतामणि मंत्र भौतिक सुख-समृद्धि के साथ-साथ आत्मज्ञान उपलब्ध कराने में शिव की कृपा से समर्थ है. “दक्षिण” शब्द के मूल में ”दक्ष” है, कुशलता है, प्रवीणता है. दक्षिण-मार्ग मनुष्य के भौतिक विकास कला-कौशल विकास से संबंध रखता है. यह ज्ञान भौतिक सुख-समृद्धि के धर्मानुसार विकास का पक्षधर है. सांसारिक मनुष्य को भौतिक अनिवार्य आवश्यकताएं और उसका अभाव चिंताग्रस्त बना देता है. यह चिंतासर्पिणी इस विश्व वन की विषैली प्याली है. यह अभाव की चपल बालिका है. मनुष्य के ललाट पर उभरी खल-रेखा है. व्याधि की सूत्र धारिणी है तथा आधि मधुमय अभिशाप है. इस चिंतासर्पिणी के विषदंत के विषैले प्रभाव को त्वरित प्रभावहीन कर देने में यह चिंत्तामणि मंत्र प्रभावशाली है. इस मणि के प्रभाव से जहर का उतर जाना तय है. यह तो इस मंत्र का पहला चरण है.
भौतिक सुख-समृद्धि प्रदान करता है यह मंत्र
दूसरे चरण में यह मंत्र मनुष्य के भीतर जो विषय योग प्रवृति की अंतहीन ललक का जहर फैला हुआ रहता है, उस जहर को भी शांत कर देता है. ”और-और नदी रटन्त” का भयानक जहर को भी उतार देता है. इस तरह चिंत्तामणि मंत्र भौतिक सुख-समृद्धि प्रदान भी करता है और उसकी लोलुपता का नाश कर मनुष्य को शाश्वत सुख प्रदान भी करता है. दोनों रूपों में यह महामंत्र वंदनीय है. योग और मोक्ष दोनों प्रदान करता है. तुलसी ने मानस में इसका सुंदर विश्लेषण किया है. रामचरित सुंदर चिंतामणि मंत्र है. संतों की सुबुद्धि तथा स्त्री का सुंदर शृंगार है. यह मंत्र नर-नारी दोनों के लिए है. यह मंत्र जगत के लिए मंगलकारी है. गुण समूह का दाता है तथा धर्मपूर्वक धन-धाम के रूप में भौतिक संपदा उपलब्ध कराता है साथ ही भौतिक लालसा से मुक्ति भी दिलाता है. त्यागभाव से भौतिक संपदा का उपयोग करने की भावना जगा देता है. ज्ञान, वैराग्य और योग के लिए यह मंत्र सदगुरु के समान है तथा संसार रूपी भयंकर रोग का नाश करने के लिए देवताओं के वैद्य अश्वनी कुमार के समान है.
भोग और मोक्ष दोनों इस मंत्र के अधीन
समस्त पाप-ताप-शोक का विनाश करने वाला यह मंत्र है और इस लोक और परलोक दोनों प्रकार के सुखों को उपलब्ध कराने में समर्थ है. भोग और मोक्ष दोनों इस मंत्र के अधीन हैं. यह मंत्र मनुष्य के अंत:करण में ज्ञानोदय कराने वाला है तथा भोग लालसा की भावना का समूल उच्छेद कर शाश्वत सुख प्रदान करने में समर्थ है. इस मंत्र का सेवन करने वाले व्यक्ति के मन को यह मंत्र सब तरह से पवित्र बना देता है. मन को त्राण देने वाला यह मंत्र अपने मंत्र-धर्म का निर्वाह करने वाला है. यह मंत्र साधक को दिव्यता की ओर ले जाकर अलौकिक सुख प्रदान करता है. इसलिए भगवान शंकर का प्रियतम मंत्र है. यह मंत्र संपूर्ण कामनापूर्ण कर साधक की दरिद्रता मिटा देता है. विषाय रूपी सांप के जहर उतारने के लिए यह मंत्र महामणि है. यह मंत्र ललाट पर लिखे हुए कठिनता से मिटने वाले मंद प्रारब्ध को मिटा देने में समर्थ है. इस तरह यह चिंतामणि मंत्र अपना नाम सार्थक करने वाला होता है. बाबा बैद्यनाथ-देवालय के ऊपर स्थित पंचशूल पांच महामंत्रों में से पांचवें चिंतामणि मंत्र के संबंध में जानने की प्रेरणा देता है.
(लेखक डॉ मोतीलाल द्वारी, शिक्षाविद् सह हिंदी विद्यापीठ के पूर्व प्राचार्य हैं)