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बाबा बैद्यनाथ के पंचशूल का चौथा मंत्र-पंचाक्षर, इसके जप से पापों से मिलती है मुक्ति, जानें नम: शिवाय का महत्व

बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शीर्ष पर स्थित पंचशूल शिव-तत्व के वाहक पांच महामंत्रों को बतलाता है. तत्वमसि मंत्र, गायत्री मंत्र, मृत्युंजय मंत्र, पंचाक्षर मंत्र और चिंतामणि मंत्र. इसमें तत्वमसि मंत्र, गायत्री मंत्र और मृत्युंजय मंत्र की चर्चा पिछले अंक में हो चुकी है. आज हम पंचाक्षर मंत्र की चर्चा करेंगे.

डॉ मोतीलाल द्वारी. बाबा बैद्यनाथ मंदिर का पंचशूल जिन पांच मंत्रों का उल्लेख करता है, उसका चौथा मंत्र पंचाक्षर मंत्र है. पंचशूल चौथे मंत्र के रूप में ”पंचाक्षर मंत्र” के महत्व को बतलाता है. ”नमः शिवाय” पंचाक्षर मंत्र है. ओंकार प्रणव स्वयं पंचाक्षर हैं. पंचाक्षर मंत्र में तीनों गुणों से अतीत, सर्वज्ञ, सर्वकर्ता द्युतिमान, सर्वव्यापी शिव प्रतिष्ठित हैं. ईशान आदि जो सूक्ष्म एकाक्षर रूप ब्रह्म हैं, वे सभी पंचाक्षर मंत्र ”नमःशिवाय” में क्रमश: स्थित रहते हैं. यह पंचाक्षर मंत्र शिव का ही अभिधान या वाचक है और वे शिव ही अभिधेय या वाच्य हैं. अभिधान और अभिधेय रूप होने के कारण परम शिव स्वरूप यह मंत्र सिद्ध माना गया है. उस सर्वज्ञ शिव ने जिस निर्मल वाक्य पंचाक्षर मंत्र का प्रणनयन किया है, वह प्रमाण भूत ही है. पंचाक्षर मंत्र के जप में लगा हुआ अधमाधम व्यक्ति भी पाप पंजर से मुक्त हो जाता है.

शिवपुराण में क्या कहते हैं ईश्वर सदाशिव

शिवपुराण में ईश्वर सदाशिव कहते हैं, कलिकाल के सभी कोटि के मनुष्य मेरी परम मनोरम पंचाक्षरी मंत्र का आश्रय लेकर भक्तिभाव से संसार बंधन से मुक्त हो जाते हैं. जो भक्तिपूर्वक पंचाक्षर मंत्र से एक बार भी मेरा पूजन कर लेता है, वह भी इस मंत्र के प्रताप से मेरे धाम में पहुंच जाता है. इसलिए तप, यज्ञ, व्रत और नियम मेरे इस पंचाक्षर मंत्र द्वारा पूजने की कराेंड़वीं कला के समान भी नहीं है. मेरे इस पंचाक्षर मंत्र में सभी भक्तों का समान अधिकार है. इसलिए यह श्रेष्ठतर मंत्र है. पंचाक्षर मंत्र के प्रभाव से ही लोक, वेद, महर्षि, सनातन धर्म, देवता तथा संपूर्ण जगत टिके हुए हैं. प्रलय काल में जब चराचर सृष्टि नष्ट हो जाती है और सारा प्रपंच प्रकृति में मिलकर वहीं लीन हो जाता है, तब अकेला शिव तत्व ही स्थित रहता है. उस समय समस्त देवता और शास्त्र इस पंचाक्षर मंत्र में ही स्थित होते हैं

पंचाक्षर मंत्र का मतलब

इस मंत्र के आदि में ”नमः” पद का प्रयोग करना चाहिए. उसके बाद ”शिवाय” पद का. यही वह पंचाक्षरी विद्या है, जो समस्त श्रुतियों का सिरमौर है. इस मंत्र के सभी अक्षर बीजरूप हैं तथापि दूसरे अक्षर को इस मंत्र का बीज समझना चाहिए. यह अक्षर ”म” है. यह सोम का बीज है. भगवती उमा ही सोमरूपिणी हैं. इस मंत्र के बीज में सुधा स्वरूपिणी- उमा ही विराजमान रहतीं हैं. इनका ध्यान सर्वप्रथम परमावश्यक है. दीर्घ स्वरपूर्वक जो चौथा वर्ण है, उसे कीलक और पांचवें वर्ष को ”शक्ति” समझना चाहिए. इस मंत्र के ऋषि वामदेव हैं, पंक्ति छंद है तथा शिव ही इसके देवता हैं. गौतम, अत्रि, विश्वामित्र, अंगिरा और भारद्वाज ये नकारादि वर्णों के पांच ऋषि हैं. गायत्री, अनुष्टुप, त्रिष्टुप, वृहती और विराट ये पांचों उन पांच अक्षरों के छंद हैं. इंद्र रुद्र, विष्णु, बह्मा, और स्कंद ये पांचों उन पांच अक्षरों के एक देवता हैं. पंचानन शिव के पांचमुख इन पांच अक्षरों के स्थान हैं. पंचाक्षर मंत्र का पहला अक्षर उदात्त है, दूसरा और चौथा भी उदात्त है. पांचवां स्वरित है और तीसरा अनुदात्त है. पंचाक्षर प्रणव ही शिव का विशाल हृदय है. ”नकार” सिर है, ”मकार” शिखा है, ”शि” कवज है. ”वा” नेत्र है और ”यकार”” अस्त है.

यह पंचाक्षर मंत्र ”नमःशिवायै” के रूप में भगवती उमा का भी मूल मंत्र हो जाता है. इस पंचाक्षर मंत्र में प्रणव सहित सात करोड़ महामंत्र लीन है. इस तरह यह पंचाक्षर मंत्र ईश्वर सदाशिव और भगवती उमा दोनों का ही है. दोनों अभिन्न हैं. पंचशूल संकेत देता है, कि इस वैद्यनाथ के देवालय में ”शिव और शिवा” साथ-साथ विराजमान हैं. यह पंचाक्षर मंत्र ज्ञानी और मूढ़ दोनों के लिए समान रूप में फलदायी हैं. अन्यान्य विधि-विधान की कोई आवश्यकता नहीं, केवल शिव के प्रति समर्पण भाव की प्रागढ़ता चाहिए. इस पंचाक्षर मंत्र के द्वारा भगवान आशुतोष भोलेनाथ ने सबों के लिए अपना द्वार खोल दिया है. बैद्यनाथ मंदिर के शीर्ष पर स्थित पंचशूल पांच महामंत्रों में से चौथे पंचाक्षर मंत्र के सम्मान में जानने की प्रेरणा देता है.

नोट : चिंतामणि मंत्र जानकारी अगले अंक में दी जाएगी, बने रहे प्रभात खबर के साथ…

(लेखक डॉ मोतीलाल द्वारी, शिक्षाविद् सह हिंदी विद्यापीठ के पूर्व प्राचार्य हैं)

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