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संपूर्ण शिव-तत्व की व्याख्या करता है देवघर के बाबा मंदिर का पंचशूल

बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शीर्ष पर पंचशूल है. त्रिशूलधारी बैद्यनाथ ने अपने गुंबद के शीर्ष पर पंचशूल धारण कर लिया है. पंचशूल मुख्यत रूप से तैंतीस पंचकों के माध्यम से शिव-तत्व की व्याख्या करता है.

नम: शिवाय साम्बाय ससुतायादि हेतवे।

पंचावरण रूपेण प्रपंचेना वृतायते ।।

डॉ मोतीलाल द्वारी. जो पंचावरण प्रपंच से घिरे हुए हैं और सबके आदिकारण हैं, उन आप पुत्र सहित साम्ब सदाशिव को मेरा नमस्कार है. बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शीर्ष पर पंचशूल है. त्रिशूलधारी बैद्यनाथ ने अपने गुंबद के शीर्ष पर पंचशूल धारण कर लिया है. त्रिगुणात्मक संसार के तापत्रय-अधि दैहिक, अधि दैविक तथा अधि भौतिक के त्रिविध दुखों का नाश, त्रिअवस्था-जाग्रत, सुसुप्ति और स्वप्न, त्रिपुर – भू, भुव:स्व. पृथ्वी लोक, अंतरिक्ष लोक और स्वर्ग लोकों के शूलों को निर्मल करने में समर्थ शूल पाणि त्रिविध बैद्यनाथ का त्रिशूल के साथ नाता तो समझ में आता है, किंतु पंचशूल से उनका क्या प्रयोजन हो सकता है?

क्या उमानाथ ने रतिनाथ के दुख-मूल उन पांच फूलों के वाणों को नग्न कर दिया है, जिसके सहारे मन्मथ सांसारिक मनुष्यों को ठगता रहता है. शूलों की नोंकों पर फूल बांध कर सुख का प्रलोभन दे हमें दुख-सागर में ढकेलता रहता है. मधु मिश्रित विषपान करने को ललायित मनुष्यों को पता नहीं कि यह अनंग बड़े गुप्त रूप से मानव-मन में प्रवेश कर उनके मन को मन्मथ मथते रहता है. मनुष्यों को फूलों का लालच दिखाकर बाह्य संसार के कंटकाकीर्ण पथ पर घसीटते रहता है. मनुष्य लहू लहान है पर समझ नहीं पा रहा है कि फूलमय पथ में ये कांटे कहां से चुभते हैं. हमने तो फूलों के साथ सफर शुरु किया था, पर दामन ये कांटे कहां से उलझ गये. हम ये समझ भी नहीं सकते थे कि बेटे ने बाप को अपने मन का दास बना लिया है. उस मदमस्त मदन के मद को चूर्ण करने वाले मदनान्तक भक्त वत्सल भगवान भोले नाथ के शरणागत होने पर ज्ञात होता है कि बाह्य जगत में भटकने वाले फूल तो शूल हैं और देह देवालय में ले जाने वाले ये शूल वस्तुत: फूल बन जाते हैं.

देवालय के भीतर जहां विश्राम है, शांति है, आनंद है. संसार के सभी शूल जहां विविध फूल वन खिल उठते हैं. बाबा मंदिर के शीर्ष पर स्थित पंचशूल चमक रहा था. अचानक पंचशूल के उत्तराभिमुख शूल से एक किरण भ्रूमध्य में टकरायी और अपने साथ ”मन” शब्द के ”न” वर्ण को लेकर चली गयी. अब ”मन” के पास सिर्फ ”म” वर्ण बच गया था. यह ”म” सोम है. सोम सहोदर अमृत है. उमाश्री हैं. यह उमा परावाणी है, विद्यात्मा है. यही हृदय में पश्यन्ति नाम से विख्यात है. भगवती उमा की आज्ञा के बिना ईश्वर सदाशिव के किसी भी ऐश्वर्य का ज्ञान असंभव है. भगवती उमा परापर ब्रह्ममूल हैं एवं उनका ज्ञान कराने में दयामयी हैं. भगवती नगेंद्रनंदिनी की असीम कृपा से बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शीर्ष पर स्थित पंचशूल में गुम्फित भिन्न-भिन्न ”पंचक” धीरे-धीरे सामने आने लगे. वस्तुत: बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शीर्ष पर स्थित पंचशूल भिन्न-भिन्न पंचकों के माध्यम से संपूर्ण शिव-तत्व की व्याख्या करता है. बाबा बैद्यनाथ अनादि सदाशिव तत्व हेी हैं. इसकी जानकारी देता है. शास्त्र- सम्मत वाणी के आधार पर विश्लेषण करने की परंपरा है. हम इस अनुशासन से बाहर की बात नहीं कर सकते. पंचशूल मुख्यत: तैंतीस पंचकों के माध्यम से शिव-तत्व की व्याख्या करता है. इसकी चर्चा आगे की जायेगी, आगे के अंक में..

(लेखक डॉ मोतीलाल द्वारी, शिक्षाविद् सह हिंदी विद्यापीठ के पूर्व प्राचार्य हैं)

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