22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Prabhat Khabar Special: संताल परगना में जंग खा रहे Agro machine, कैसे होगी किसानों की आमदनी दोगुनी

संताल परगना के किसानों को कृषि यंत्र का लाभ नहीं मिल रहा है. लाखों के पावर रीपर से हार्वेस्टर से कबाड़ में तब्दील हाे रहा है. वहीं, 10 जीरो टिलेज मशीन भी जंग खाकर बेकार हो चुकी है. ऐसे में क्षेत्र के किसानों की आमदनी दोगुनी कैसे होगी.

Prabhat Khabar Special: संताल परगना की अधिकांश आबादी का मुख्य पेशा कृषि है. यहां के किसानों की सुविधा के लिए राज्य सरकार की ओर से किसानों को सब्सिडी पर कृषि यंत्र उपलब्ध कराया जाता है. संताल परगना में कृषि यांत्रिक बैंक भी संचालित हैं. लेकिन, समय पर कृषि यंत्र का वितरण नहीं होने की वजह से मशीनें जंग खाकर कबाड़ में तब्दील हो गयी हैं. चार साल से दुमका जिले में पावर रीपर (Power Reaper) और हार्वेस्टर (Harvester) आकर रखे हुए हैं, लेकिन चार मीटर भी नहीं चल सका है. इसी तरह देवघर जिले में तकरीबन सात लाख रुपये की 10 जीरो टिलेज मशीन पांच वर्षों में जंग खाकर बेकार हो चुकी है. सरकार की ओर से किसानों के लिए फंड और यंत्र तो मुहैया करा दिये जाते हैं, मगर विभागीय लापरवाही के कारण इनका लाभ किसानों को नहीं मिल पा रहा है. किसानों को सब्सिडी पर यंत्र उपलब्ध कराने में भी विभाग फिसड्डी साबित हो रहा है.  ऐसे में किसानों की आय दोगुना करने का जो संकल्प सरकारों ने लिया है, भला कैसे पूरा हो सकेगा.

Undefined
Prabhat khabar special: संताल परगना में जंग खा रहे agro machine, कैसे होगी किसानों की आमदनी दोगुनी 3

लाखों की हुई थी खरीद, उपयोग नहीं होने से कबाड़ हो गयीं मशीनें

किसानों को तकनीकी खेती के जरिये कम लागत में आय बढ़ाने के लिए कृषि विभाग द्वारा देवघर में अनुदान पर मुहैया कराये जाने वाला जीरो टिलेज मशीन (Zero Tillage Machine) खुले आसमान में बेकार हो गया. देवघर में करीब सात लाख रुपये की दस जीरो टिलेज मशीन पांच वर्षों में जंग खाकर बेकार हो गयी. किसानों के बीच वितरण नहीं होने के कारण मशीन आपूर्ति करने कंपनी ने इसे खुले आसमान पर ही छोड़ दिया. कृषि विभाग से ये मशीनें किसानों को 50 फीसदी अनुदान पर दिये जानी थी. इससे किसान धान, गेहूं, अरहर व मक्का की खेती कर सकते थे. कृषि विभाग की उदासीनता से किसानों के बीच इस कृषि यंत्र का वितरण नहीं किया गया. विभाग किसानों का चयन ही नहीं कर पाया. स्थिति यह हो गयी कि धूप व बारिश में मशीन केवल लोहा बनकर रह गयी. जीरो टिलेज तकनीक की मदद से पारम्परिक खेती की तुलना अधिक लाभ कमाया जा सकता है. सामान्यतया किसी खेत में बुआई के लिए उसे 5-6 बार जोतना पड़ता है, जिससे धन, समय, मशीनरी आदि की अधिक आवश्यकता होती है. इसी के स्थान पर जीरो टिलेज तकनीक मशीन अपनायी जाने से समय, पैसा और प्रति एकड़ अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है. इससे खेत को केवल एक बार जोतने की आवश्यकता होती है. जीरो टिलेज तकनीक से एक निर्धारित क्रम में बीज और खाद ज़मीन में गिरते हैं , जिससे दो बीजों के बीच उचित दूरी और उनका रोपनी एक कतार में व्यवस्थित तरीके से होता है.

Undefined
Prabhat khabar special: संताल परगना में जंग खा रहे agro machine, कैसे होगी किसानों की आमदनी दोगुनी 4

कम सिंचाई की होगी जरूरत

जीरो टिलेज तकनीक में खेत को पहली फसल के काटने के कुछ समय बाद और बगैर जाेते हुए ही इस्तेमाल किया जाता है, इस वजह से भूमि में नमी की पर्याप्त मात्रा रहती है और इस तकनीक से खेती में कम पानी की आवश्यकता रहती है. जीरो टिलेज तकनीक में बीजों और खाद का रोपण साथ-साथ होने से पौधों को उचित पोषण मिलता है, जिससे फसल की पैदावार बढ़ जाती है. इस तकनीक में पौधे एक-दूसरे से उचित दूरी रहने पर सूरज का तापमान, नमी, हवा और खाद सही मात्रा में मिल पाती है , जिससे उनमे रोग उत्पन्न होनी की संभावना कम हो जाती है.

Also Read: पलामू में CM हेमंत सोरेन ने विपक्ष पर साधा निशाना, कहा- हमें न पढ़ाए नैतिकता का पाठ, पहले खुद को देखे

उत्पादन लागत में कमी

इस जीरो टिलेज तकनीक में कम मेहनत, लागत कम समय, कम पेट्रोल-डीज़ल, प्रति हेक्टेयर कम बीज व खाद, कम सिंचाई,कम जुताई की आवश्यकता रहती है, जिससे परम्परागत खेती की तुलना में ज़ीरो टिलेज तकनीक से खेती इसे कम उत्पादन लागत में अधिक उत्पादन योग्य बनाती है. रबी फसल में इस तकनीक से अधिक फायदे होने की संभावना है. अगर गेहूं की बुआई 25 नवंबर के बाद करते हैं तो प्रतिदिन 25-30 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर उपज में कमी आती है. इस मशीन द्वारा समय पर बुआई करके पैदावार में होने वाले नुकसान को बचाया जा सकता है.

दुमका में पावर रीपर जंग खाकर हो गया कबाड़

झारखंड सरकार का कृषि विभाग उपकरणों की खरीद तो कराती है, पर उसकी उपयोगिता सुनिश्चित नहीं करा पाती. धरातल पर उसकी उपयोगिता का आकलन किये बिना एसी कमरों में बैठकर की गयी परिकल्पना का ही नतीजा है कि लगभग एक दशक से दुमका जिले के सरैयाहाट प्रखंड कार्यालय परिसर स्थित चिलरा बीज निगम के गोदाम के सामने पावर रीपर जंग खाकर बर्बाद हो गया है और अब कबाड़ में तब्दील हो चुका है. पावर रीपर मशीन का उपयोग धान काटने के साथ-साथ झाड़ कर उसे बोरे में पैक किये जाने के लिए होता है. मशीन खुले आसमान के नीचे पड़ी हुई है, रेडिवाटर सहित अन्य पार्ट टूट चुके हैं. वायरिंग भी इधर उधर बिखर चुकी है. सभी हिस्से में धीरे -धीरे जंग पकड़ने लगी है. मशीनें इतनी कबाड़ हो चुकी है और झाड़ियों में छिप गयी है.  लोगों का ध्यान भी इस ओर नहीं जाता है. मशीन आज तक प्रखंड कार्यालय परिसर से निकली तक नहीं है. प्रभारी प्रखंड कृषि पदाधिकारी राकेश कुमार के अनुसार चिलरा बीज निगम के संचालक शंकर पोद्दार के जिम्मे कृषि यांत्रिक बैंक हैं. इधर तकरीबन चार साल पहले कंबाइन हार्वेस्टर को खरीदकर राज्य सरकार द्वारा बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के विभिन्न जोनल रिसर्च सेंटर में भेजा गया है. ऐसा हार्वेस्टर दुमका के भी जोनल रिसर्च सेंटर में पड़ा हुुआ है, जो चार साल में चार मीटर भी नहीं हिल सका है. यहां लगभग 30 लाख रुपये का हार्वेस्टर खुले आसमान के नीचे तो नहीं है, लेकिन बिना चले ही कल-पूर्जे जंग खाने लगे हैं. इंजन आदि भी अब फंक्शन में है या नहीं इसे जांचने वाला भी नहीं है. मशीन के पहिये कहीं एक ही जगह पड़े-पड़े सड़ न जायें, स्टार्ट कर वाहन को हिलाने-डुलाने वाला भी कोई नहीं है. जोनल रिसर्च सेंटर दुमका के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ राकेश कुमार बताते हैं कि झारखंड सरकार ने इसे इसलिए उपलब्ध कराया था, ताकि कृषि आधुनिक यांत्रिकीकरण से उन्नत हो. किसान एक निर्धारित शुल्क देकर भी इसका उपयोग कर सकें. पर यहां तो खेत ही समतल नही हैं. खेत के आकार भी बहुत छोटे हैं, जिसपर हार्वेस्टर चलाना संभव नहीं है. किसानों की ओर से भी अब तक इसे लेकर मांग नहीं आयी है.

रीपर और हॉर्वेस्टर की स्थिति पर रिपोर्ट लेकर होगी कार्रवाई : अजय कुमार सिंह

दुमका के उपनिदेशक (कृषि विभाग) अजय कुमार सिंह ने कहा कि देवघर में बेकार पड़ी जीरो टिलेज मशीन संबंधित कंपनी की है. कंपनी को दूसरे जिले में वितरण करना था. इसमें कंपनी को भुगतान नहीं किया गया है. दूसरे जिले में विभागीय आदेश नहीं रहने के कारण देवघर में इस मशीन का वितरण किसानों के बीच नहीं हो पाया. दुमका में रीपर व हॉर्वेस्टर की स्थिति पर संबंधित पदाधिकारी से रिपोर्ट ली जायेगी व आवश्यकतानुसार कार्रवाई होगी. संताल परगना के अन्य जिलों में कृषि उपकरण वितरण करने के लिए प्रस्ताव मुख्यालय भेजा गया है. प्राप्त होते ही किसानों के बीच वितरण किया जायेगा.

Also Read: झारखंड के हार्ट पेशेंट का फ्री में होगा ऑपरेशन, साथ में मिलेंगे 10 हजार रुपये, जानें कैसे

पाकुड़ में दो साल से नहीं हुआ कृषि उपकरण का वितरण

पाकुड़ के किसानों के बीच पिछले दो सालों में कृषि यंत्र का वितरण नहीं किया गया है. किसानों को विभाग द्वारा अनुदान पर कृषि यंत्र का वितरण किया जाता था. कृषि उपकरण से वंचित रहने की वजह से किसानों  में उदासीनता है. हालांकि, विभाग ने इस बार नियमों में काफी बदलाव किया है, जिससे किसानों की रुचि में कमी आयी है. नये नियमों के अनुसार किसानों द्वारा कृषि उपकरण की खरीदारी किये जाने के बाद बिल के आधार पर किसानों के खाते में अनुदान की राशि भेजी जानी है.

गोड्डा में कृषि यंत्र बांटने के लिए मांगी गयी सूची

भूमि संरक्षण विभाग से अभी गोड्डा में एसएचजी की महिलाओं के कृषि यंत्र व उपकरण बांटने के लिए जेएसएलपीएस से सूची ही मांगी गयी है. विभाग के द्वारा महिला समूहों के बीच 18 ट्रैक्टर व  250 कृषि पंप सेट का वितरण किया जाना है. वित्तीय वर्ष 2021-22 के तहत कृषि यंत्रों को बांटा जाना है. यह मामला प्रक्रियाधीन है. भूमि संरक्षण विभाग के द्वारा उपायुक्त को इस योजना से अवगत कराते हुए बंटने वाले यंत्र को लेकर फाइल भेजी गयी है. इस मामले में महिला समूहों का पूरा भौतिक सत्यापन कर कृषि यंत्र का बंटवारा कर दिया जायेगा.

साहिबगंज में नहीं मिला राज्यादेश कृषि यंत्र से वंचित रह गये किसान

जिला कृषि, आत्मा व भूमि संरक्षण विभाग से किसानों के लिए कृषि यंत्र वितरण किया जाता है, लेकिन इस वर्ष विभाग से राज्यादेश के अभाव में आत्मा से कोई कृषि यंत्र व उपकरण साहिबगंज में  उपलब्ध नहीं कराया है. आत्मा निदेशक अजय पूरी ने बताया कि कृषि विभाग का सबसे महत्वपूर्ण अंग आत्मा में एनएफएसएम के तहत स्प्रे मशीन, रोटावेटर, पॉवर स्प्रे, पाइप लपेरा, एसटीपी पाइप सहित अन्य वितरण के लिए मिलता था, लेकिन इस वर्ष राज्यादेश के अभाव में आत्मा में कोई भी सामग्री नहीं आया है.जिला भूमि संरक्षण पदाधिकारी रितेश कुमार यादव ने बताया कि इस वर्ष भूमि संरक्षण विभाग से एसएचजी की महिलाओं को 80 फीसदी अनुदान पर 38 मिनी ट्रैक्टर दिया जायेगा. इसके लिए जेएसएलपीए से सूची मिली है. मिनी ट्रैक्टर प्राप्त होते ही महिला किसानों के बीच वितरित किया जायेगा. जिले भर में 670 कृषकों के बीच डेढ़ से तीन एचपी का पंप सेट 90 फीसदी अनुदान पर दिये जायेंगे, इसकी प्रक्रिया चल रही है.

Also Read: 49 दिनों से हड़ताल पर हैं झारखंड के राजस्व कर्मचारी, नहीं बन रहे इनकम सहित अन्य सर्टिफिकेट

रानीश्वर : 2010 में मिला था यंत्र, पर अब हुआ बेकार

भूमि संरक्षण विभाग, दुमका की ओर से किसानों की सुविधा के लिए रानीश्वर की यारा संस्था को कृषि उपकरण उपलब्ध कराया गया था. कृषि उपकरण किसान भाड़े पर लेकर शुरुआती दौर में खेती कार्य कर रहे थे. यारा संस्था को दो ट्रैक्टर, दो हाइड्रोलिक ट्रेलर, दो पावर ट्रीलर, एक रोटा वेटर, एक कल्टीवेटर आदि उपलब्ध कराये गये थे. यारा संस्था के संचालक अनिमेष मंडल ने बताया कि वर्ष 2010 में 75 प्रतिशत अनुदान पर भूमि संरक्षण विभाग से उपरोक्त कृषि उपकरण प्राप्त हुआ था. कृषि उपकरण भाड़े पर स्थानीय किसानों को उपलब्ध कराया जा रहा था. जिससे किसानों को इसका लाभ मिल रहा था. श्री मंडल ने बताया कि कृषि उपकरण एक एक कर खराब हो जाने से बेकार हो गया है. बताया गया कि दो ट्रैक्टर में से एक गोविंदपुर गांव के उदय मंडल को भाड़े पर दिया गया है तथा दूसरा बांसकुली गांव के मिंटू खान को दिया गया है. ट्रैक्टर खराब हो जाने से एक गोविंदपुर में व दूसरा बांसकुली में रखा हुआ है. वहीं, दोनों पावर टेलर भी खराब हो चुके हैं. फिलहाल, किसानों को इससे लाभ नहीं मिल पा रहा है.

जामताड़ा : फंड नहीं है, आवेदनों में ही उलझा है जिला कृषि विभाग

जामताड़ा जिले में किसानों को कोई विशेष फायदा कृषि विभाग से नहीं हो रहा है. क्योंकि इस साल जिले को आवंटन ही प्राप्त नहीं हुआ है. इसलिए आवेदनों में ही कृषि विभाग उलझ कर रह गया है.  पिछले वर्ष आत्मा कार्यालय की ओर से एनएफएसएम योजना के तहत 90 पंप सेट का वितरण किया गया था. वहीं इस वर्ष 2022 में आत्मा कार्यालय में पंप सेट के लिए 80 आवेदन प्राप्त हुए हैं. लेकिन विभाग को इसके लिए फंड नहीं मिला है. इस कारण इस वर्ष अब तक किसानों को पंप सेट का वितरण नहीं हो पाया है. किसानों को 50 प्रतिशत सब्सिडी की दर से यंत्र दिया जाता है. वहीं भूमि संरक्षण विभाग की ओर से 90 प्रतिशत सब्सिडी की दर पर किसानों से आवेदन लिया गया है. मिनी ट्रैक्टर के लिए 18, पावर ट्रिलर के लिए 06, सोलर पंप सेट के लिए 20 और 1.5 एचपी पंप सेट के लिए 650 आवेदन प्राप्त हुए हैं. जिला भूमि संरक्षण पदाधिकारी रिजवान अंसारी ने बताया कि सभी आवेदनों को प्राप्त कर लिया गया है. जांच के बाद अनुमोदन की प्रक्रिया डीसी के स्तर से पूरी की जायेगी. इसके बाद लाभुकों को 10 प्रतिशत अंशदान देना पड़ेगा.

अनुदान पर मशीन उपलब्ध कराने की मांग

घोरमारा के किसान विष्णु मंडल ने कहा कि किसानों को अधिक पूंजी लगाकर खेती करनी पड़ रही है. अगर अनुदान पर मशीन उपलब्ध करा दी जाए, तो कम लागत में खेती कर पाएंगे. लाखों की मशीन बर्बाद होने से पहले विभाग अगर किराये में भी किसान को उपलब्ध करा देता तो किसानों को काफी सुविधा हो जाती. वहीं, मोहनपुर के किसान जालेश्वर यादव ने कहा कि प्रशिक्षण में अक्सर किसानों को नयी तकनीकी से खेती करने की जानकारी दी जाती है, लेकिन तकनीकी खेती के लिए जब सरकार से मशीन मुहैया करायी जाती है तो विभाग के कर्मी वितरण करने में रुचि नहीं दिखाते हैं. इस मशीन से किसानों को काफी फायदा हो सकता था.

Also Read: Indian Railways News: त्योहार खत्म होते ही ट्रेनों में बढ़ी भीड़, खड़े होकर यात्रा करने को हैं मजबूर

किसानों ने सुनायी अपनी परेशानी

जामताड़ा के किसान अजित सिंह ने कहा कि कृषि विभाग से पंप सेट को लेकर कई बार आवेदन दिया गया, लेकिन आज तक पंप सेट नहीं मिल सका. सरकार की योजना सभी किसानों काे नहीं मिल पाता है. वहीं, किसान सुधीर ठाकुर ने कहा कि 90 प्रतिशत सब्सिडी की दर से पंप सेट के लिए विभाग को आवेदन किया गया था. लेकिन, इस वर्ष अबतक फंड नहीं दिया गया है. जिस कारण पंप सेट नहीं मिल सका है. सिर्फ आश्वासन ही मिल रहा है. वहीं, किसान महादेव यादव ने कहा कि कृषि यांत्रिक बैंक में कृषि कार्य के लिए क्या-क्या यंत्र हैं, इसकी जानकारी नहीं है. संचालक भी यहां नहीं रहता है. विभाग को इस ओर ध्यान देता तो किसानों को काफी सहूलियत होती. सुनने में आया कि पटवन के लिए बड़ी मशीन थी, पर किसी ने देखा नहीं है.

कृषि यांत्रिक बैंक से किसानों को नहीं मिल रहा लाभ

सरैयाहाट के किसान सानू मरांडी ने कहा कि कृषि यांत्रिक बैंक से किसानों को कोई लाभ नहीं मिल रहा है. किसानों को महंगे दर पर कृषि उपकरण भाड़े में लेना पड़ता है. कृषि यांत्रिक में  क्या सामान हैं, इसकी जानकारी भी किसानों को नहीं है. कृषि विभाग को इस ओर विशेष ध्यान देना चाहिए. वहीं, रानीश्वर के बच्चू मंडल ने कहा कि शुरू में कृषि उपकरण भाड़े पर लेकर खेती का काम करते थे. खेती कार्य में इससे काफी सुविधा होती थी. जयताड़ा गांव के किसान मोतालीव खान ने बताया कि कृषि उपकरण भाड़े पर नहीं लिये थे. क्योंकि, उपकरण लेने की प्रक्रिया जटिल थी. कौन से उपकरण से क्या फायदा है, किसानों को इसके लिए जागरूक भी नहीं किया गया था.

विभाग को पता ही नहीं यांत्रिक बैंक में उपकरण हैं या नहीं

दुमका जिले के सरैयाहाट प्रखंड अंतर्गत चिलरा गांव में चिलरा बीज निगम के जिम्मे कृषि यांत्रिक के तहत विभिन्न प्रकार के कृषि उपकरण सरकार द्वारा मिले थे. जिसके संचालक शंकर पोद्दार हैं. वर्तमान में शंकर पोद्दार सरैयाहाट छोड़कर दुमका चले गये हैं. जहां सारा सामान रखा है, वहां कोई नहीं रहता है. एक ट्रैक्टर बाहर पड़ा हुआ है, जिसे जंग खा रहा है. यांत्रिक बैंक में सामग्री है या नहीं किसी को पता नहीं है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, गोदाम में कोई भी पंपसेट नहीं है. कृषि यंत्र से किसानों को कोई फायदा नहीं मिल रहा है.

Also Read: Jharkhand Foundation Day: हर घर नल से जल पहुंचाने में पाकुड़ अब भी पिछड़ा, दुमका की स्थिति बेहतर

रिपोर्ट : देवघर से अमरनाथ पोद्दार, दुमका से आनंद जायसवाल, गोड्डा से निरभ किशोर, पाकुड़ से रमेश भगत, साहिबगंज से नवीन कुमार के साथ उमेश यादव, चंद्रकांत यादव व साधन सेन.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें