हिंदू धार्मिक ग्रंथों में आदिदेव महादेव को सर्वशक्तिमान देव माना गया है. इन्हें शिव की संज्ञा आख्यानों में दी गयी है़ शिव जगत के लोगों के प्राणधार हैं. शिव ने ही सृष्टि की है़ जगत के सर्जक, पालक और संहारक माने गये हैं. एक साथ तीनों गुणों का समवेत संगम ही शिव है़ पौराणिक ग्रंथों में शिव पुराण है, जिनमें शिव की महिमा का विस्तार से वर्णन है.
देवो गुणत्रयातीतश्चतुव्यूहो महेश्वर:
सकल: सकलाधार: शक्तेरुत्पतिकारणम्।
-शिव पुराण
कहने का तात्पर्य है कि शिव के बिना जगत की परिकल्पना संभव नहीं. गुणत्रयातीत से भगवान शिव चार व्यूहों में विभक्त हैं : ब्रह्मा, काल रुद्र और विष्णु़ ये चारों शिव के आधार हैं. शक्ति की जन्मस्थली है़ धार्मिक ग्रंथों की मानें, तो शिव सत्य हैं, सुंदर हैं. इनकी एक से एक क्रियाएं मानवों के हित में है.
वैसे कहा जाता है कि शिव ने ही सभी विद्या को जन्म दिया़ चाहे मंत्र विद्या हो या तंत्र, चाहे नाट्य विद्या हो या वैद्य विद्या, सबों को शिव ने ही जगत में अवतरित किया है़ शिव की परिकल्पना एक ऐसी मूर्ति के रूप में है, जो मूर्त भी हैं और अमूर्त भी़ कोई इन्हें निराकार भगवान के तौर पर भजता है, तो कोई साकार मूर्ति के तौर पर.
Also Read: Sawan Somwar 2020 Start Date : 5 सोमवार का होगा सावन, सर्वार्थसिद्धि योग समेत बन रहे कई और अद्भुत संयोगखैर, जो भी हो, शिव शाश्वत देव हैं. शिव की पूजा लिंगवत होती है़ शिव ही एक ऐसे देव हैं, जिनकी पूजा शक्ति के साथ होती है. तार्किक तौर पर देखें, तो जगत में जो भी मानव हैं, उनकी शक्ति की पूछ है. निर्बल होना शाप माना जाता है़ मनुष्य मात्र के लिए सृष्टि की गति को आगे बढ़ाने के लिए शिव प्रदत शक्ति न रहे, तो वह समाज के कोने का आदमी बन जाता है़ निरोग होना प्रकृति का उत्तम विधान है.
शशिवलिंगे अपि सर्वेसा
देवानां पूजनं भवेत्।
सर्वलोकमय
यस्माच्छिवषक्तिर्विभु: प्रभु:॥
-शिवपुराण
शिव की पूजा से ज्यादा फल शिवलिंग के पूजन से आस्तिकों को मिलता है. यह जगजाहिर है़ इस देव को वैद्यों का नाथ वैद्यनाथ कहा गया है़ आखिर क्यों? यह एक अहम प्रश्न हर भक्त के मन में हमेशा उत्सुकता जगाता है. कथाओं के अनुसार, शिव से बढ़कर कोई वैद्य इस दुनिया में नहीं हुआ.
मानव देह में हाथी का मस्तक सफलतापूर्वक जोड़ने की एक कथा पुराणों में है. कथा के अनुसार, एक बार शिव और माता पार्वती भूलोक में विहार करने के लिए आये. एक सुंदर वन में उमा संग शिव ने कुछ दिनों तक वास किया. पार्वती सानंद रह रहीं थी़ं एक दिन देवाधिदेव शिव जी फल लाने के लिए दूर चले गये. वहां विहंगम दृष्य देखकर कुछ दिनों के लिए ठहर गये.
इधर, पार्वती एक दिन नहाने के लिए जा रहीं थीं. अपनी देह में उबटन लगाया और मन में कौतूहल हुआ कि उबटन को संग्रहीत कर एक आकृति का रूप दे दूं.
Also Read: Shravani Mela 2020 : देवघर के श्रावणी मेला की सदियों पुरानी परंपरा टूटी, झारखंड हाइकोर्ट ने हेमंत सोरेन सरकार को दिया ये निर्देशमाता पार्वती ने भगवान हरि का स्मरण कर एक पुत्र के रूप में आकृति बना डाली़ उसमें जान फूंका, तो वह बालक जीवंत हो उठा़ अपना बालक समझ पार्वती ने घर के बाहर नगर रक्षार्थ तैनात कर दिया. इसके बाद माता पार्वती सखियों के संग विहार करने लगीं. इस दौरान तरह-तरह की जलक्रीड़ा कर रहीं थी़ं उधर, भगवान शिव को अपनी नगरी याद आयी, तो वे वापस लौटे.
नगर में एक बालक को देख आश्चर्यचकित हो गये. अपने घर में प्रवेश करने का प्रयास किया, तो मासूम बालक ने मार्ग रोका और अंदर जाने से मना किया़ शिव जी आग बबूला हो गये. उन्होंने अपने त्रिशूल से बालक का सिर काट दिया. बालक का कटा मस्तक कहां गया, इसका भी पता नहीं चल पाया़ कहा जाता है कि वह मस्तक भस्मीभूत हो गया़
भगवान शिव ने घर में प्रवेश किया, तो पार्वती को जलक्रीड़ा स्थल पर देखा. पार्वती ने पूछा कि वह अंदर कैसे आये, तो उन्होंने पूरा वृत्तांत सुना दिया. पार्वती कुपित हो गयीं. विलाप करने लगीं. कहने लगीं कि आपने मेरे पुत्र की यह दशा क्यों कर दी. इस पर शिव जी ने कहा कि वह नहीं जानते थे कि यह बालक उनकी संतान है.
अज्ञात्वा ते सिरष्छिन्नं शूलेनानेन यन्म्या।
तेनाहं सापराधोस्मि सत्यं सत्यं जनार्दन॥
शिव को पार्वती ने सख्त हिदायत दी कि जल्द ही मेरे पुत्र को जीवित कर दें नहीं, तो मैं अपनी शक्ति का प्रभाव दिखा दूंगी़ शिव जी राजी हो गये. जंगल की ओर चल दिये़ पौराणिक कथाओं के अनुसार, जंगल में एक गजराज उत्तर दिशा में पैर करके सोया था. शिव ने उसका वध करना उचित समझा.
ततोरण्ये समालोक्य गजराजं महाबलम्।
उदकषिरसमेकत्र श्यानं स महेश्वर: ॥
अपने पाणि में रखे त्रिशूल से गजराज का मस्तक काटा और सिर कटे बालक के देह में प्रतिरोपित कर दिया़ शिव ने जिस तरह से बालक के देह में हाथी का सिर प्रतिरोपित किया, आज तक कोई कुशल चिकित्सक ऐसा नहीं कर पाया. भले ही दुनिया में तकनीक ने कितनी भी तरक्की कर ली हो, पर शिव ने जो किया, वह कोई नहीं कर पाया. इसलिए उन्हें वैद्यों का नाथ – वैद्यनाथ कहा जाता है.
मानव का कटा हुआ देह और गजराज का मस्तक जोड़कर इंसान को जीवित करने की कला महावैद्य को भी नहीं आती. शिव ने जगत में इस कार्य को कर दिखाया़ यही गज मस्तक वाले सूत गजानन कहलाये. पार्वती व शिव के प्रथम पुत्र गणेश की पूजा आज जगत में किसी भी प्रकार के कार्य को आरंभ करने से पहले की जाती है.
भगवान गणेश की पूजा से शिव और पार्वती दोनों एक साथ प्रसीद होते हैं. देवघर की धरती पर बाबा वैद्यनाथ की पूजा सावन में बड़े पैमाने पर होती रही है़ लाखों लाख भक्त आते हैं और निरोग होने की कामना करते हैं.ये हर प्रकार के रोगों से निजात दिलाते हैं. गरीब हो या अमीर, पंग हो या अपंग, सबों का सहारा हैं देवाधिदेव महादेव़
Posted By : Mithilesh Jha