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देवघर रिखियापीठ के शतचंडी महायज्ञ में बोले स्वामी निरंजनानंद, राग-द्वेष से नहीं होती कोई कामना पूरी

स्वामी निरंजनानंद जी ने कहा कि राग-द्वेष को त्यागना होगा, तभी समर्पण की भावना व्यवहार में आएगी. जीवन में उत्थान करना है, तो अपने पुरुषार्थ को खुद से कुछ समय के लिए अलग करना होगा. अपने भीतर के परमतत्व व ऊर्जा को अनुभव करना होगा.

Jharkhand News: देवघर रिखियापीठ में आयोजित शतचंडी महायज्ञ के तीसरे दिन स्वामी निरंजनानंद जी व स्वामी सत्संगीजी ने देवी मां की पूजा-अर्चना व आरती की. रिखिया की कन्याओं ने भजन कर मां की आराधना की. कन्याओं को वस्त्र प्रदान किए गए. इस दौरान स्वामी निरंजनानंद जी ने कहा कि अहंकार में सकाम कर्म होते हैं, जबकि समर्पण में निष्काम कर्म होते हैं. जहां राग-द्वेष है, वहां कोई कामना पूरी नहीं होती है. सोमवार को शतचंडी महायज्ञ की पूर्णाहुति होगी व सीता कल्याणम् होगा.

राग-द्वेष त्यागकर ही आएगी समर्पण की भावना

स्वामी निरंजनानंद जी ने कहा कि राग-द्वेष को त्यागना होगा, तभी समर्पण की भावना व्यवहार में आएगी. जीवन में उत्थान करना है, तो अपने पुरुषार्थ को खुद से कुछ समय के लिए अलग करना होगा. अपने भीतर के परमतत्व व ऊर्जा को अनुभव करना होगा और यही ऊर्जा भगवान नारायण है. प्रत्येक जीवन में नारायण का अंश है. आश्रम में आने से यहां होनी वाली सेवा को देख समर्पण का भाव जागृत होता है. शतचंडी महायज्ञ में ध्यान केंद्रित करेंगे तो जरूर निष्काम का अनुभव करेंगे. सोमवार को शतचंडी महायज्ञ की पूर्णाहुति होगी व सीता कल्याणम् होगा.

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देवघर रिखियापीठ के शतचंडी महायज्ञ में बोले स्वामी निरंजनानंद, राग-द्वेष से नहीं होती कोई कामना पूरी 2

शतचंडी महायज्ञ के दूसरे दिन हवन कर देवी मां की आराधना

रिखियापीठ में शतचंडी महायज्ञ के दूसरे दिन पंडितों ने हवन कर देवी मां की आराधना की. रिखिया की कन्याओं ने नृत्य व कीर्तन से आराधना की. अनुष्ठान में स्वामी निरंजनानंद जी ने प्रवचन में कहा कि परमहंस स्वामी सत्यानंदजी ने कहा था कि आने वाले समय में योग एक दिन नेपथ्य में चला जायेगा. आज स्थिति वही हो गयी है. वर्तमान में योग आसन व व्यायाम के लिए प्रचलित है. योग आसन तक सीमित नहीं है, बल्कि योग विद्या, विज्ञान व एक जीवनशैली है. स्वामी सत्यानंदजी ने योग को विद्या, विज्ञान व एक जीवन शैली के रूप में दुनिया भर में पहुंचाया है.

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