Ranchi news: संताल परगना में कभी 26 जनजातियां निवास करती थी. लेकिन इनमें से करीब 11 जनजातियां पूरी तरह से खत्म हो गयी हैं. 10 जनजातियों की आबादी लगातार घटती जा रही है. इन पर संकट मंडरा रहा है. 2011 के सेंसस के अनुसार, छह जिले में जनजातीय आबादी 19.60 लाख थी. जो 2001 की गणना में 16.75 लाख थी. इनमें सबसे अधिक आबादी संथालों की है. संथाल जो झारखंड की तीसरी सबसे बड़ी जनजाति है.
10 सालों में संताल परगना में जनजातीय आबादी की वृद्धि
2001 से 2011 के बीच 10 सालों में संताल परगना में जनजातीय आबादी में 2.84 लाख की वृद्धि हुई. जबकि संथालों की आबादी की तुलनात्मक देखें तो 2001 में ये 11.60 लाख थे, जो 2011 में बढ़कर 17.46 लाख हो गये. जबकि पहाड़िया की बात करें तो ये 2001 में 1.47 लाख थे, 10 सालों में इनकी आबादी में आंशिक वृद्धि हुई है. 2011 में पहाड़िया जनजाति की आबादी 1.78 लाख हो गयी थी. यानी मात्र 31748 की वृद्धि हुई. 2001 और 2011 सेंसस के आंकड़े बताते हैं कि संतालपरगना में भले ही जनजातीय आबादी की वृद्धि हुई है, लेकिन इसमें सिर्फ संथाल जनजाति की आबादी ही बढ़ी है. शेष बची जनजातियों की आबादी या तो अब खत्म होने को है या आंशिक जनसंख्या वृद्धि हुई है. प्रस्तुत है विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर संजीत मंडल की विश्लेषणात्मक रिपोर्ट…
सामान्य पहाड़िया जनजाति का अस्तित्व संकट में
संताल परगना में पहाड़िया जनजाति का अस्तित्व संकट में है. यहां तीन तरह के पहाड़िया रहते हैं. इनमें माल पहाड़िया, सामान्य पहाड़िया और सौरिया पहाड़िया. इन तीनों में से सामान्य पहाड़िया अब लगभग खत्म होने की स्थिति में हैं. क्योंकि संताल परगना में अब इनकी आबादी गिनी चुनी ही रह गयी है. 2001 सेंसस में देखें तो संताल परगना में सामान्य पहाड़िया जनजाति की आबादी 2649 थी. इनकी आबादी 10 सालों में बढ़ी नहीं बल्कि अप्रत्याशित रूप से घटी. 2011 में सामान्य पहाड़िया की आबादी घटकर 641 हो गयी. इस प्रमंडल में माल पहाड़िया और सौरिया पहाड़िया की आबादी बढ़ी है. 2001 में माल पहाड़िया की आबादी एक लाख एक हजार 119 थी, जो 2022 में 1 लाख 32 हजार 529 हो गयी. इनकी आबादी मात्र 31410 ही बढ़ी.
दुमका में सबसे अधिक संथाल
सेंसस 2001 और 2011 के आंकड़े बताते हैं कि सबसे अधिक संथाल जनजाति दुमका में है. यहां इनकी आबादी 2001 में 4,81,809 थी, जो 2011 में बढ़ कर 6,29,338 हो गयी. 10 सालों में संथालों की आबादी एक लाख 47 हजार 529 बढ़ी है. वहीं सबसे कम संथाल जनजाति देवघर जिले में है. यहां अभी एक लाख 33 हजार 756 आबादी है. दुमका के बाद पाकुड़ जिले में 3.18 लाख, साहिबगंज में 2.28 लाख, गोड्डा में 2.24 लाख और जामताड़ा जिले में 2.13 लाख इनकी आबादी है.
सौरिया पहाड़िया की आबादी नहीं बढ़ी
जबकि सौरिया पहाड़िया की आबादी माल पहाड़िया की तुलना में नहीं बढ़ी. संताल परगना में माल पहाड़िया और सौरिया पहाड़िया जनजाति की जनसंख्या दूसरे नंबर पर है. इनका मुख्य निवास स्थान संथाल परगना के दुमका, जामताड़ा, देवघर, गोड्डा, पाकुड़ और साहेबगंज जिला है. 2011 सेंसस के अनुसार, पहाड़िया जनजाति की आबादी सबसे अधिक संताल परगना के तीन-चार जिले में है. सबसे अधिक 49120 पहाड़िया जनजाति पाकुड़ जिले में है. यहां माल पहाड़िया की आबादी 38120, सामान्य पहाड़िया की आबादी 125 और सौरिया पहाड़िया की आबादी 10875 है. जबकि साहिबगंज जिले में इनकी आबादी 42, 632 है. जिसमें 21409 माल पहाड़िया, 219 सामान्य पहाड़िया और 21004 सौरिया पहाड़िया शामिल हैं. वहीं, दुमका में पहाड़िया की आबादी 39,657 है. देवघर जिले में 12453 और जामताड़ा जिले में सबसे कम 5126 पहाड़िया जनजाति निवास करते हैं.
माल पहाड़िया अस्तित्व की है लड़ाई संताल परगना में जिस तरह से संथालों की जनसंख्या में वृद्धि हुई है, उस अनुरूप माल पहाड़िया नहीं बढ़े हैं. ये जाति अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है. आदिवासी विकास की योजनाएं कई चल रही हैं, लेकिन इनका उत्थान नहीं हो पा रहा है. माल पहाड़िया आज भी आदिम जनजाति की तरह ही रहते हैं. ये जनजाति अधिकांश पाकुड़, दुमका, गोड्डा में निवास करती है. संताल परगना में प्रजातीय दृष्टिकोण से माल पहाड़िया को प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड समूह में रखा जाता है. रिजले ने इन्हें द्रविड़ वंश का माना है. रसेल और हीरालाल के अनुसार, ये पहाड़ों में रहने वाले सकरा जाति के वंशज हैं. बुचानन हैमिल्टन ने माल पहाड़िया का संबंध मलेर से बताया है. माल पहाड़िया की भाषा मालतो है, जो द्रविड़ भाषा परिवार की मानी जाती है. इनकी जीविका का मुख्य साधन शिकार, खाद्य–संग्रह और झूम खेती है, जिसे कुरवा कहा जाता है.
बिरहोर जनजाति: संताल परगना में बचे हैं गिनती के सिर्फ 63 लोग
संताल परगना में सबसे चिंताजनक आबादी बिरहोरों की है. यह झारखंड की एक अल्पसंख्यक आदिम जनजाति है. इसकी आबादी 2011 के सेंसस के अनुसार मात्र 63 है. जिसमें सबसे अधिक बिरहोर देवघर जिले में निवास करते हैं. इनकी संख्या 40 है. वहीं जामताड़ा में मात्र 18 की आबादी है. दुमका में 03, साहिबगंज, पाकुड़ में मात्र एक-एक ही संख्या इनकी है. इसका मुख्य कारण बताया जाता है कि ये घुमक्कड़ किस्म की जनजाति है. इस जनजाति की बोली बिरहोरी आस्ट्रो-एशियाटिक भाषा समूह से संबंधित है. इस जनजाति के लोग स्वयं को खरवार समूह का मानते हैं. ये सूर्य से उत्पत्ति मानते हुए अपने को सूर्यवंशी कहते हैं. बिरहोर जनजाति जंगलों में उपलब्ध कंद-मूल, फल-फूल और अन्य वनोत्पादों व शिकार द्वारा अपना जीवन बसर करते हैं. इनके निवास स्थान को सामान्यतः टंडा कहा जाता है. बिरहोर टंडा में दो झोपड़िया बनी होती है. एक कुंआरे युवकों के लिए और दूसरी कुंवारी युवतियों के लिए. इसे गितिओड़ा कहा जाता है.
जिला संथाल की आबादी
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दुमका 6,29,338
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पाकुड़ 3,17,992
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साहिबगंज 2,27,575
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गोड्डा 2,24,068
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जामताड़ा 2,13,320
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देवघर 1,33,756
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कुल 17,46,049
माहली जनजाति: लगातार घट रही है आबादी
माहली झारखंड की शिल्पी जनजाति है, जो बांस की कला में दक्ष और प्रवीण मानी जाती है. यह जनजाति संताल परगना के अलावा सिंहभूम, रांची, गुमला, सिमडेगा, लोहरदगा, हजारीबाग, बोकारो और धनबाद जिले में निवास करती है. माहली जनजाति 2011 सेंसस के अनुसार, देवघर जिले में 7558 की संख्या में हैं. पाकुड़ में इनकी आबादी 4446, साहिबगंज में 3544, गोड्डा में 2283, दुमका में 12977 और जामताड़ा जिले में 7464 है. 2001 में इनकी आबादी देवघर में 5819, गोड्डा में 2194, साहिबगंज में 3315, पाकुड़ में 3206, दुमका में 17079 आबादी थी. इस तरह से आंकड़े बताते हैं कि 2001 से 2011 के बीच 10 सालों में सभी जगह माहली जाति की आबादी घटी है. इनका मुख्य व्यवसाय बांस की टोकरियां बनाना और ढोल बजाना है. इनका विवाह टोटमवादी वंशों में होता है.
सौरिया पहाड़िया: वृद्धि की रफ्तार काफी कम
सौरिया पहाड़िया जनजाति के लोग मुख्य रूप से संथाल परगना प्रमंडल के दुमका, जामताड़ा, साहेबगंज, पाकुड़, देवघर एवं गोड्डा जिले में निवास करते हैं. सौरिया पहाड़िया का आबादी सबसे अधिक 21004 साहिबगंज में हैं. इसके अलावा पाकुड़ में इनकी आबादी 10875 है, जबकि गोड्डा में 13688 है. सबसे कम सौरिया पहाड़िया की आबादी दुमका और जामताड़ा में है. प्रजातीय लक्षणों के आधार पर सौरिया पहाड़िया को प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड वर्ग में रखा जाता है. इस जनजाति को संथाल परगना का आदि निवासी माना जाता है. इस जनजाति ने अंग्रेजों के शासन के पहले कभी भी अपनी स्वतंत्रता को मुगलों या मराठों के हाथों नहीं सौंपा. ये लोग अपने को मलेर कहते हैं. इनकी भाषा मालतो है, जो द्रविड़ भाषा परिवार से संबंधित है. ये लोग कुरवा (स्थानांतरित/झूम) खेती करते हैं.
कोल जनजाति: साहिबगंज में मात्र 34 लोग ही मौजूद
भारत सरकार द्वारा कवर, जनजातियों के साथ कोल जनजाति की पहचान 32वीं जनजाति के रूप में की गयी है. यह जनजाति मुख्य रूप से गिरिडीह, देवघर और दुमका जिलों में पायी जाती है. कोल जनजाति सबसे अधिक देवघर जिले में है. यहां इनकी आबादी 17618 है. वहीं सबसे कम कोल जाति के लोग साहिबगंज में हैं. मात्र 34 है यहां इनकी जनसंख्या. गोड्डा में 801, पाकुड़ में 320, दुमका में 6083 और जामताड़ा में 5256 कोल जाति की आबादी है. कोल जनजाति 12 गोत्रों में विभाजित हैं. ये हैं- हांसदा, सोरेन, किस्कू, मरांडी, चांउडे, टुडू, हेम्ब्रम, बास्के, बेसरा, चुनिआर, मुर्मू और किसनोव. इस जनजाति का परंपरागत व्यवसाय लोहा गलाना एवं उनसे सामान बनाना था, किंतु अब कृषि-श्रमिक के रूप में इनकी संख्या ज्यादा है. कोल जनजाति सरना धर्म का अनुयायी है.
उरांव जनजाति: देवघर जिले में हैं इस जनजाति के सबसे कम लोग
यह झारखंड की दूसरी प्रमुख जनजाति है. उरांव भाषा एवं प्रजाति दोनों दृष्टि से द्रविड़ जाति के हैं. दक्षिणी छोटानागपुर और पलामू प्रमंडल उरांवों का गढ़ है. इन दोनों प्रमंडलों में ही लगभग 90 प्रतिशत उरांव निवास करते हैं. जबकि शेष 10 प्रतिशत उत्तरी छोटानागपुर, संताल परगना एवं कोल्हान प्रमंडल में निवास करते हैं. 2011 के सेंसस में देवघर जिले में इनकी आबादी 339 थी. जबकि 2001 में 93 थी. इसी तरह अन्य जिले में 2001/2011 सेंसस : गोड्डा में 6793/8631, पाकुड़ में 61/121 साहिबगंज में 7977/9635, दुमका में 61/420 और जामताड़ा जिले में इनकी आबादी 290/444 थी.
संथालों में कुल 12 गोत्र हैं
संथाल जनजाति में 12 गोत्र हैं. इसमें लगभग सभी गोत्र के लोग संताल परगना में है. ये गोत्र है-
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हांसदा
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मुर्मू
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हेम्ब्रम
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किस्कू
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मरांडी
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सोरेन
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बास्के
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टुडु
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पौड़िया
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बेसरा
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चोंडे
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बेदिया
ये खत्म हो गयी
असुर, बथुडी, बेदिया, खोंद, चीक बराइक, करमाली, किसान/नगेशिया, सवर, कवर, कोरा/मुडी काेरा
खत्म होने की कगार पर
हो, उरांव, बिरहोर, चेरो, खरवार, मुंडा, खरिया, पातर, सामान्य पहाड़िया, गोंड
संताल परगना में रहती हैं ये जनजातियां
असुर, अगरिया, बथुडी, बेदिया, बिरहोर, चेरो, चीक बराइक, गोंड, हो, करमाली, खरिया, खरवार, खोंड, किसान, नगेशिया, कोरा/मुंडी कोरा, लोहरा, महली, माल पहाड़िया/कुमारभाग पहाड़िया, मुंडा, पातर, उरांव, पहाड़िया, संथाल, सौरिया पहाड़िया, सबर, भूमिज, कवर और कोल जनजातियां संताल परगना के छह जिले में रहती हैं. ये जनजातियां ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक और शहरी क्षेत्र में नाम मात्र ही निवास करती है.