देवघर : झारखंड के संताल परगना में हो जनजाति का अस्तिव खतरे में है. जनसंख्या के नजरिये से देखें तो ये राज्य की चौथी सबसे बड़ी जनजाति है. जो कि मुख्य रुप से कोल्हान प्रंमडल में पायी जाती है. लेकिन इसकी कुछ आबादी संताल परगना में भी निवास करती है. लेकिन आज ये जनजाति लुप्त होने के कगार पर है. हो जनजाति की देवघर जिले में 2011 में आबादी मात्र 31 थी. जबकि ये जनजाति 2001 सेंसस में 6788 हुआ करती थी. हो जनजाति को प्रजातीय दृष्टि से प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड की श्रेणी में रखा जाता.
2011 में गोड्डा में सिर्फ पांच, साहिबगंज में 10, पाकुड़ में सात, दुमका में 13 और जामताड़ा में 17 ही आबादी निवास करती थी. जो 2001 में गोड्डा में 371, साहिबगंज में 48, पाकुड़ में 35, दुमका में 6002 थी. पिछले सेंसस 2001 और 2011 के बीच 10 सालों में अप्रत्याशित रूप से ‘हो’ जनजाति की आबादी घटी है.
इस जनजाति के 80 से भी अधिक गोत्र हैं, जिनमें अंगारिया, बारला, बोदरा, बालमुचू, हेम्ब्रम, चाम्पिया, हेमासुरीन, तामसोय आदि प्रमुख हैं. सिंगबोंगा इनके प्रमुख देवता हैं. इनके अन्य प्रमुख देवी-देवता पाहुई बोंगा (ग्राम देवता), ओटी, बोड़ोंम (पृथ्वी), मरांग बुरू, नागे बोंगा आदि हैं, इनमें देसाउली को वर्षा का देवता माना जाता है. हो समाज में धार्मिक अनुष्ठान का कार्य देउरी पुरोहित द्वारा संपन्न कराया जाता है.
हो गांव का प्रधान मुंडा होता है और उसका सहायक डाकुआ कहलाता है. मानकी मुंडा प्रशासन ‘हो’ जनजाति की पारंपरिक जातीय शासन प्रणाली है. इनके प्रायः सभी पर्व कृषि व कृषि कार्य से जुड़े हैं. इनकी भाषा ‘हो’ है, जो मुंडारी (आस्ट्रिक) परिवार की है. खेती इनका मुख्य पेशा है.
उरांव जनजाति
यह झारखंड की दूसरी प्रमुख जनजाति है. उरांव भाषा एवं प्रजाति दोनों दृष्टि से द्रविड़ जाति के हैं. दक्षिणी छोटानागपुर और पलामू प्रमंडल उरांवों का गढ़ है. इन दोनों प्रमंडलों में ही लगभग 90 प्रतिशत उरांव निवास करते हैं. जबकि शेष 10 प्रतिशत उत्तरी छोटानागपुर, संताल परगना एवं कोल्हान प्रमंडल में निवास करते हैं. 2011 के सेंसस में देवघर जिले में इनकी आबादी 339 थी. जबकि 2001 में 93 थी. इसी तरह अन्य जिले में 2001/2011 सेंसस : गोड्डा में 6793/8631, पाकुड़ में 61/121 साहिबगंज में 7977/9635, दुमका में 61/420 और जामताड़ा जिले में इनकी आबादी 290/444 थी.