धनबाद: बुधनी मंझियाइन का आज शनिवार को पंचेत में अंतिम संस्कार किया गया. गाजे-बाजे के साथ उनकी अंतिम यात्रा निकली. इसमें महिलाएं भी शामिल थीं. डीवीसी के अधिकारियों, कॉलोनीवासियों एवं ग्रामीणों ने शनिवार को इन्हें अंतिम विदाई दी. उनके शव को फूल माला से सजाकर डीवीसी के संयुक्त प्रशासनिक भवन लाया गया, जहां डीवीसी के अधिकारियों ने श्रद्धांजलि दी. इसके बाद गाजे-बाजे के साथ अंतिम यात्रा निकाली गयी. जगह-जगह लोगों ने नम आंखों से बुधनी मंझियाइन को श्रद्धांजलि दी. इसके बाद अंतिम संस्कार के लिए दामोदर नदी तट पर लाया गया. उनका नाती बापी दत्त ने मुखाग्नि दी. अंतिम दर्शन के लिए विधायक अपर्णा सेनगुप्ता, झामुमो नेता अशोक मंडल पहुंचे और परिवार को सांत्वना दी. मौके पर डीवीसी के डिप्टी चीफ सोमेश कुमार, सीआईएसएफ के अधिकारी एवं जवान, मुखिया सचिन मंडल, मुखिया भैरव मंडल, श्रमिक यूनियन के सुबोध मंडल, नमिता महतो, रीता मंडल, शिखा दे, पुतुल गोराई, अमर खालको, आरके गुंडे आदि थे. आपको बता दें कि छह दिसंबर 1959 को देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ डीवीसी पंचेत डैम का उद्घाटन कर देशभर में चर्चित और इसी दौरान उन्हें माला पहनाने के कारण आदिवासी समाज से बहिष्कृत बुधनी मंझियाइन का शुक्रवार की रात आठ बजे निधन हो गया. डीवीसी के पंचेत हिल हॉस्पिटल में उन्होंने अंतिम सांस ली. वह 85 वर्ष की थीं. कई महीनों से बीमार चल रही थीं. बुधनी का पैतृक गांव तत्कालीन मानभूम जिले के खैरबना में था, जो डैम निर्माण के दौरान पूरी तरह विस्थापित हो गया.
राजीव गांधी ने दिलायी थी नौकरी
बुधनी का मुद्दा समय-समय पर मीडिया में उछलता रहा. राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जब उनके समक्ष बुधनी का मामला आया तो उन्होंने डीवीसी को आदेश देकर बुधनी को खोज निकालने और नियोजन देने का आदेश दिया. डीवीसी ने सालतोड़ से बुलाकर बुधनी को डीवीसी में नौकरी दी थी. सेवानिवृत्ति के बाद वह सालतोड़ में ही रह रही थी. बुधनी की एक पुत्री रत्ना दत्ता हैं. रत्ना की शादी हो चुकी है. निधन की खबर सुनकर मुखिया सचिन मंडल, मुखिया भैरव मंडल पंचेत हिल अस्पताल पहुंचे और शोकाकुल परिवार से मिल कर संवेदना जतायी.
पंचेत डैम के उद्घाटन समारोह में पंडित नेहरू को पहनायी थीं माला
पंचेत डैम के उद्घाटन समारोह में बुधनी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का स्वागत करते हुए उन्हें माला पहनायी थी. उस रात संथाली समाज की बैठक हुई. कहा गया कि बुधनी अब नेहरू की पत्नी बन चुकी है क्योंकि समाज की परंपरा के मुताबिक अगर कोई महिला किसी पुरुष के गले में माला डालती है तो इसका मतलब है कि उसने उस व्यक्ति के साथ विवाह कर लिया है. अंतत: एक ग़ैर-आदिवासी से शादी रचाने के आरोप में संथाली समाज ने उन्हें जाति और गांव से बाहर निकालने का फ़ैसला सुना दिया. वह बगल के पुरुलिया जिला के सालतोड़ (रघुनाथपुर) काम की तलाश में चली गयीं. वहां सालतोड़ के सुधीर दत्त से उनकी मुलाकात हुई. बुधनी से सुधीर दत्त ने विवाह कर लिया. दोनों की एक पुत्री है.
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