Coronavirus in Jharkhand (संजीव झा, धनबाद) : नींद नहीं आना. शरीर थका- थका लगना. भूख में कमी आने लगे, तो सचेत हो जायें. यह सब डिप्रेशन के शुरुआती लक्षण हैं. खासकर पोस्ट कोविड मरीजों में यह तेजी से फैल रहा है. अगर कोविड से उबरे मरीजों के मन में निगेटिव बातें आने लगे, तो अपने दोस्तों और परिजनों से जरूर शेयर करें. इसे मन में नहीं रखें. परिवार वाले भी ऐसे मरीजों के व्यवहार पर नजर रखें. उक्त बातें पूर्वी इंग्लैंड में रहने वाले मनोरोग विशेषज्ञ डॉ बक्शी नीरज प्रसाद सिन्हा ने प्रभात खबर से बातचीत में कही.
मनोरोग विशेषज्ञ डॉ सिन्हा ने कहा कि भारत समेत दुनिया के दूसरे देशों में डिप्रेशन बहुत तेजी से बढ़ रहा है. बहुत लोग इसे छिपाते हैं, पर यह लाइलाज बीमारी नहीं है. शुरुआती दौर में ही डॉक्टरों की सलाह लें, तो जल्द स्वस्थ हो सकते हैं. इसे नजरअंदाज करने पर कभी-कभी मरीज आत्मघाती कदम तक उठा लेते हैं क्योंकि डिप्रेशन होने पर अक्सर जीवन को लेकर निराशा उत्पन्न होने लगती है.
कोरोना काल में लोगों का एक-दूसरे से मिलना-जुलना बंद हो गया है. लेकिन, अपने परिचितों से मोबाइल पर बातें कर सकते हैं. कोशिश यह हो कि किसी भी तरह खुद को समाज से जोड़े रखें. सर्दी, जुकाम या बीमारी का तो लोग तत्काल इलाज कराते हैं. लेकिन, मानसिक समस्या का इलाज नहीं कराते. अगर निगेटिव विचार आने लगे तो वैसे लोग जिन पर ज्यादा भरोसा करते हैं, परिजनों, दोस्तों से शेयर करें. इससे आपको सहूलियत होगी. कोई न कोई समाधान जरूर निकलेगा. वहीं, मनोचिकित्सक नहीं भी हों तो जिस डॉक्टर से उपचार कराते हैं उनसे भी सलाह लेकर दवा ले सकते हैं.
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एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि कोरोना के कारण बहुत सारे लोग अस्पताल या डॉक्टरों के पास नहीं जाना चाहते. आजकल अधिकांश डॉक्टर ऑनलाइन भी समस्याएं सुन कर सलाह दे रहे हैं. सरकार की तरफ से मानसिक समस्या से परेशान लोगों को ऑनलाइन सलाह दी जा रही है.
मनोरोग विशेषज्ञ डॉ सिन्हा ने कहा कि यह सच है कि कोरोना पीड़ितों के उपचार में बहुत सारे डॉक्टरों को जान गंवानी पड़ी. लेकिन, डॉक्टरों के साथ-साथ महामारी से निबटने में पुलिस, नर्सिंग स्टाफ सहित अन्य फ्रंटलाइन वर्कर्स की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. समाज को ऐसे वर्कर्स को भी सम्मान देना चाहिए.
डॉ बक्शी ने कहा कि इंग्लैंड समेत दुनिया के सभी देशों में कोरोना पर काबू के लिए वैक्सीनेशन चल रहा है. भारत में भी अब कई कंपनियों के वैक्सीन उपलब्ध है. ऐसे में लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि कौन सा वैक्सीन ज्यादा सुरक्षित है. हर वैक्सीन सुरक्षित है. जो पहले मिल जाये. उसे ही लगवा लें. आज वैक्सीनेशन ज्यादा होने के कारण ही कई विकसित देशों में कोरोना की तीसरी लहर का बहुत असर नहीं दिख रहा है. इतना तय है कि वैक्सीन लेने के बाद यह बीमारी अगर हो भी रही है तो जानलेवा नहीं साबित हो रही है. हर जागरूक नागरिक को वैक्सीनेशन के प्रति नकारात्मक बातें करने वालों को समझाना चाहिए.
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डॉ बक्शी नीरज प्रसाद सिन्हा मूलत: रांची के रहने वाले हैं. रिम्स से ही एमबीबीएस, पीजी करने के बाद कई वर्षों तक सीआइपी रांची में पदस्थापित रहे. वर्ष 2006 में इंग्लैंड शिफ्ट हो गये. कोरोना काल में भी इंग्लैंड के प्रवासी डॉक्टरों के साथ मिलकर ऑनलाइन मेडिकल सलाह देने का अभियान चला रहे हैं.
Posted By : Samir Ranjan.