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झारखंड ही नहीं देश के अन्य राज्यों में भी प्रसद्धि है कतरास का यह मंदिर, यहां से कोई खाली हाथ नहीं लौटता

यहां सिद्धि प्राप्त करने के लिए दूर-दराज से भक्त आते हैं. कतरास राजघराने की कुल देवी मां लिलौरी मंदिर में आनेवाले हर भक्त की मनोकामना पूर्ण होती है. यही कारण है कि यहां भक्तों का तांता लगा रहता है. किसी भक्त की अगर मनोकामना होती है, तो वे यहां पूजा करते हैं.

कतरास (धनबाद), कामदेव सिंह : कतरास के ‘लिलौरी मंदिर’ की ख्याति न सिर्फ झारखंड में, बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी है. कतरास की लाइफ लाइन कही जानेवाली कतरी नदी किनारे आसीन मां लिलौरी कतरास राजघराने की कुलदेवी हैं. बताया जाता है कि करीब 400 साल पहले कतरास राजघराने के राजा सुजान सिंह ने मंदिर का निर्माण कराया था. नदी किनारे ही ‘माया डूबनी’ स्थल स्थित है. मंदिर के पुजारियों के अनुसार, जब झरिया राजघराने के लोग माता की प्रतिमा को ले जा रहे थे, तब प्रतिमा नदी में डूब गयी. तभी से नदी के एक स्थल को ‘माया डूबनी’ के नाम से जाना जाता है. यहां सिद्धि प्राप्त करने के लिए दूर-दराज से भक्त आते हैं. कतरास राजघराने की कुल देवी मां लिलौरी मंदिर में आनेवाले हर भक्त की मनोकामना पूर्ण होती है. यही कारण है कि यहां भक्तों का तांता लगा रहता है. किसी भक्त की अगर मनोकामना होती है, तो वे यहां पूजा करते हैं.

सप्तमी को आवाहन कर ले जाते हैं राजपरिवार

नवरात्र के दौरान कतरास राजपरिवार के लोग यहां हर दिन पूजा करने पहुंचते हैं. सप्तमी के दिन राजपरिवार ‘मां लिलौरी’ का आह्वान कर राजबाड़ी (अपने घर) ले जाते हैं. राजबाड़ी में विजयादशमी के दिन प्रतिमा विसर्जन के बाद मंदिर के रास्ते हांडी फोड़कर मां को वापस मंदिर लाया जाता है. राजपरिवार के लोग आमलोगों को तीन पत्थर देते है. हांडी को फोड़नेवाले व्यक्ति को राजपरिवार की ओर से दक्षिणा के साथ वस्त्र भी दान किया जाता है.

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