धनबाद (तोपचांची), दीपक पांडेय : 18 बछर (वर्ष) में एक गो गिदर (बच्चा) मानूस (आदमी) हो जाये हो, लेकिन हमर कगजा एक कटी नाय बाढ़लो” यह कहना है. गिरिडीह-धनबाद सीमा पर स्थित ललकी पहाड़ी की तराई में रहने वाले गणेशपुर मोहली टोला निवासी दिहाड़ी मजदूर रामेश्वर मोहली का. बुधवार को जब प्रभात खबर का संवाददाता उनके पास पहुंचा तो उनका शरीर बुखार से तप रहा था. दरअसल एक दिन पहले मंगलवार को वह धनबाद उपायुक्त के जनता दरबार अपने बेटे की मौत के बाद घोषणा के बाद भी कोई सरकारी सहायता नहीं मिलने की गुहार लगाने गये थे, पर वहां पर कुछ विलंब होने के कारण उनकी सुनवाई नहीं हुई और वह निराश वहां से लौट गये.
क्या है मामला
गांव में रामेश्वर अपनी पत्नी पार्वती देवी के साथ रहते हैं. दोनों की माली हालत काफी दयनीय है. पार्वती देवी ने बताया कि वर्ष 2005 में गणेशपुर स्थित ललकी पहाड़ी लालखंडियों व नक्सलियों का गढ़ व सेफ जोन माना जाता था. हालत ऐसे थे कि लालखंडी आंगन के बाहर चहलकदमी करते थे. गांव का माहौल खराब हो रहा था. लालखंडी, युवाओं को मुख्य धारा से हटा कर प्रतिबंधित संगठन के विस्तार, प्रचार-प्रसार करने को लेकर बैठक में शामिल करते थे. इस पर पति-पत्नी ने उस माहौल से अपने बड़े बेटे तुलसी मोहली को निकालने के लिए उन लोगों ने उसे बड़े अरमान के साथ हरिहरपुर थाना में दैनिक मानदेय पर पुलिस जीप चलाने को भेजा था.
घटना के दिन जीटी रोड पर अहले सुबह पुलिस की पेट्रोलिंग पार्टी गश्ती कर रही थी. उसी दौरान एक ट्रक ने जीप में धक्का मार दिया. धक्के में उनका बेटा, जो स्टीयरिंग पर बैठा था, वहीं दब गया और उसकी मौत हो गयी. मौत के बाद विभिन्न राजनीतिक पार्टी के लोगों ने रोड पर शव को रख कर तत्काल सीओ से 10 हजार रुपये दिलाये. उस दौरान सरकारी बाबुओं ने आश्वासन दिया कि तीन दिनों के अंदर एक आवास, मंझले भाई को नौकरी, गैर मजरुआ जमीन व सड़क दुर्घटना में मौत पर सरकार द्वारा दी जाने वाली राशि दी जायेगी.
तीन दिनों के बाद अधिकारियों से मिलने पर कहा कि ”दस कर्म कर आओ हो जायेगा”. यही करते-करते 18 साल गुजर गये सबकुछ बदल गया. लेकिन आवेदन में निरंतर दिनांक बदलकर कार्यालयों का चक्कर लगा रहे हैं. उनको दो अन्य लड़के राजेंद्र मोहली व नंदू मोहली चेन्नई में मजदूरी करते हैं. वहीं रामेश्वर व पार्वती बांस की टोकरी, झाड़ू, पंखा, सूप आदि बनाकर बुधनी हटिया में बेच कर अपना जीवकोपार्जन कर रहे हैं. इतने पर भी रामेश्वर का हौंसला बुलंद है, उन्होंने कहा जब तक सांस है, तब तक आस है, भले सरकारी बाबुओं का चक्कर लगाते-लगाते उनके चौखट पर ही दम निकले.
गणेशपुर से पैदल आते हैं गाड़ी पकड़ने
रामेश्वर ने बताया कि गणेशपुर से पैदल मानटांड़ मोड़ चार किमी जाते हैं. वहां से ऑटो पकड़कर बरटांड़ फिर कोर्ट मोड़ और फिर बाबुओं के कार्यालय का चक्कर पैदल लगाते हैं. सबकुछ अनजान है उनके लिए. ना कोई ठिकाना, ना कोई साथी या हमदर्द, फिर भी जो जिस कार्यालय में जाने बोलता है, वहां चले जाते हैं. फरियाद लगा कर फिर तीन सौ खर्च कर भूखे प्यासे घर लौट जाते हैं. यह अठारह साल से उनके दिनचर्या में शामिल हो गया है.