Happy Mother’s Day 2021, धनबाद न्यूज (सत्या राज) : ऊपर जिसका अंत नहीं, उसे आसमां कहते हैं. जिसके प्यार का कोई अंत नहीं, उसे मां कहते हैं. मां के प्यार और त्याग की कहानियों से इतिहास भरा पड़ा है. सच कहते हैं एक अकेली मां दस औलाद को अकेले पाल लेती है, लेकिन दस औलाद मिलकर भी एक मां को नहीं पाल सकते. उन्हें वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर कर देते हैं. 9 मई को अंतरराष्ट्रीय मातृत्व दिवस है. इस दिवस पर हम वैसी वृद्ध माताओं की बातें आप तक पहुंचा रहे हैं जो जीवन के सातवें, आठवें दशक में हैं, लेकिन अपने परिवार और बच्चों के प्यार के लिए तरस रही हैं.
अपने ममत्व और औलाद के लिए त्याग करनेवाली ये मांएं अपनों के अपनत्व के लिए तरस रही हैं. इनकी सूनी आंखों में अपनी संतान के लिए प्यार, ममता और तड़प साफ दिखती है. यह कहकर ये अपने को दिलासा देती हैं कि वृद्धाश्रम ही उनका घर है और उनकी देखभाल करनेवाले उनकी संतान. लालमुनी वृद्धाश्रम टुंडी में रहने वाली ये मांएं परिवार द्वारा तिरस्कृत व परिवार द्वारा उपेक्षित हैं.
राजगंज की रहनेवाली पचहत्तर साल की विजय लक्ष्मी चौरसिया पांच साल से यहां रह रही हैं. कहती हैं कि उनके दो बच्चे हैं, जो नौकरी करते हैं, लेकिन उनके लिए घर में कोई जगह नहीं थी. टुंडी थाना से मुझे यहां पहुंचा दिया गया. यहां इज्जत से रह रही हूं. कोई तिरस्कृत नहीं करता है. घरवालों और बच्चों की बहुत याद आती है. मैं मां हूं. यही आशीष देती हूं कि मेरे बच्चों सदा सुखी रहना.
कतरास की रहनेवाली सावित्री देवी कहती हैं कि उनके पांच लड़के हैं. सभी प्राइवेट नौकरी में हैं. एक मां उनके लिए बोझ थी. रोज कलह होता था. बेइज्जती की रोटी खाने का मन नहीं करता था. मीडिया वालों ने उन्हें वृद्धाश्रम पहुंचा दिया. यहां आकर खुश हूं. मेरे जैसे बहुत से लोग रह रहे हैं. मां का दिल अपने बच्चों के लिए तड़पता है, लेकिन वे मुझे कभी याद नहीं करते, न ही मिलने आते हैं.
बैंक मोड़ की रहनेवाली अरूणा चौधरी सिलाई का प्रशिक्षण देती हैं. इनकी कोई संतान नहीं है. जब शरीर अस्वस्थ हो गया तो भतीजा वृद्धाश्रम पहुंचा दिया. कहती हैं कि आश्रम में जब मांओं को अपने बच्चों के लिए तड़पते देखती हूं तब भगवान से यही कहती हूं कि अच्छा है कि उनकी कोई संतान नहीं है. काश बच्चे मां की तड़प महसूस कर पाते.
गिरिडीह की रहनेवाली विमला देवी के तीन बेटे हैं. सभी व्यवसाय करते हैं, लेकिन मां की सुध नहीं लेते. विमला कहती हैं कि उनका बेटा मुझे यहां रखकर गया है. रोज आस देखती हूं, लेकिन मिलने भी नहीं आता है. हमसे क्या भूल हुई थी जो हम अपनी संतान के लिए तड़प रहे हैं. उन्हें मिस कर रहे हैं.
गिरिडीह की रहनेवाली रैवाली देवी कहती हैं कि जहां मान-सम्मान मिले, वही परिवार होता है. एक बेटी थी. उसकी शादी कर दिये. बेटी अपने परिवार में रमने के बाद मां को भूल गयी. वृद्ध शरीर साथ नहीं दे रहा था. आश्रम की जानकारी मिली. मैं खुद चली आयी यहां. यही मेरा बसेरा है. देखभाल करनेवाले संतान.
Posted By : Guru Swarup Mishra