धनबाद: वर्ष 1978 में धनबाद जिला के राजगंज पंचायत में मुखिया का चुनावी मुकाबला बड़ा दिलचस्प था. 78 के दंगल में वर्ष 1949 व 1952 में मुखिया रहे डॉ हरि प्रसाद साव के सुपुत्र नरेंद्र प्रसाद साव व दूसरी ओर 1975 में मुखिया रहे बलाय चन्द्र अड्डी के सुपुत्र मानिक चंद्र अड्डी आमने-सामने थे. दो दिग्गज पिताओं के पुत्रों के बीच उस समय टक्कर में नरेंद्र प्रसाद साव 32 वोट से विजयी हुए थे.
इसके बाद पंचायत चुनाव नहीं होने की स्थिति में नरेंद्र बाबू लगातार 32 वर्ष तक राजगंज पंचायत के मुखिया रहे. अपने समय के चुनाव व झारखंड अलग राज्य बनने के बाद वर्ष 2010 में शुरू हुए पंचायत चुनाव के संबंध में भूतपूर्व मुखिया नरेंद्र साव कहते हैं कि तब के पंचायत चुनाव व आज के चुनाव में काफी अंतर है.
उन्होंने बताया कि उन्होंने अपना चुनाव एक रुपया खर्च किये बगैर ही लड़ा व जीत हासिल की थी. उस समय किसी भी उम्मीदवार को वोट के लिए नोट खर्च करना नहीं पड़ता था और न ही कोई वोटर पैसे की मांग करता था. आज तो स्थिति अराजकता की हो गयी है. आज वोट लड़ने वाले थैली खोल कर रखते हैं और वोट देने वाले अधिकांश पाॅकेट गर्म करने में रहते हैं.
ऐसी स्थिति में विकास की बात बेमानी लगती है. बताते हैं कि उस समय के चुनाव में खड़े उम्मीदवार में लोग उनके सामाजिक गतिविधि को ज्यादा महत्व देते थे. बताया कि 1978 के पंचायत चुनाव में उन्हें सामाजिक गतिविधियों में लगातार सक्रियता बनाये रखने के बूते ही जीत हासिल हुई थी. जीतने के बाद भी उनका सामाजिक कार्य करने का लगन समाप्त नहीं हुआ था. बताते हैं कि उस समय का चुनाव प्रचार उन्होंने पैदल व साइकिल से इक्के-दुक्के सहयोगी को साथ लेकर किया था. जीतने के बाद खुशी में बाजार अवस्थित किशुन हलुवाई की दुकान पर समर्थकों को चाय-नाश्ता करवाया था.
बताया कि 1978 के पंचायत चुनाव के पूर्व वह कांग्रेस की राजनीति करते थे. बाद में 25 मई 1980 को पुलिस – पब्लिक विवाद के दौरान पुलिसिया गोली लगने से उनके बड़े भाई योगेंद्र प्रसाद साव की मौत हो गयी. उसके बाद उन्होंने बिनोद बिहारी महतो के नेतृत्व में झामुमो की सदस्यता ग्रहण की.
बताया कि उस समय मुखिया का फंड बहुत बड़ा नहीं होता था. काफी दिनों बाद सरकारी फंड मिलने पर उनके द्वारा राजगंज हटिया में पंचायत भवन, मैराकुल्ही में क्लब भवन, मस्जिद से बाऊरी कुल्ही तक मोरम मिट्टी की सड़क का निर्माण व पंचायत क्षेत्र में दर्जनों कुंओं की मरम्मत करवायी थी. बीमार लोगों की सेवा व दवा उपलब्ध कराना दैनिक कार्य था. अपने कार्यकाल में दर्जनों लावारिस शवों का अंतिम संस्कार भी कराया. हर दिन किसी न किसी गाँव में बैठक अवश्य करते थे व लोगों की समस्या का निबटारा का प्रयास करते थे.
Posted By : Sameer Oraon