Dhanbad News: धनबाद के शहीद निर्मल महतो मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (SNMMCH) के पीजी ब्लॉक कैंपस में पारा मेडिकल छात्र-छात्राओं के लिए लगभग 32 करोड़ रुपये की लागत से एक साल से हॉस्टल बन कर तैयार है. बावजूद इसके स्टूडेंट्स किराया पर रहने को विवश हैं. कमजोर आर्थिक स्थिति वाले छात्रों को धनबाद में रहकर पढ़ाई के लिए अतिरिक्त खर्च करना काफी महंगा पड़ रहा है. मेडिकल कॉलेज प्रबंधन की माने तो हॉस्टल शुरू नहीं होने का मुख्य कारण सिक्यूरिटी नहीं होना है. इसके अलावा बिल्डिंग का कार्य कर रहे ठेकेदार द्वारा कुछ काम किया जाना बाकी है.
एसएनएमएमसीएच में हर साल 60 सीट पर पारा मेडिकल छात्रों का नामांकन होता है. दो साल के सत्पर में यहां 100 से 120 छात्र- छात्रा होते हैं. इन्हें हॉस्टल की सुविधा नहीं मिलती. छात्र-छात्राओं को कैंपस से बाहर किराए के मकान में रहना पड़ता है. इन छात्रों के लिए पीजी कैंपस में राजकीय पारा मेडिकल संस्थान समेत छात्र-छात्राओं के लिए अलग-अलग छात्रावास का निर्माण कराया गया है. दोनों छात्रावास 80-80 बेड के हैं. निर्माण कार्य लगभग पूरा हो चुका है. छोटी- छोटी कमियों में मामला फंसा हुआ है. मेडिकल कॉलेज प्रबंधन इन कमियों का हवाला देकर भवन हैंडओवर नहीं ले रहा. वहीं कार्यकारी एजेंसी कमियों की दूर करने की दिशा में पहल नहीं कर रही.
राजकीय पारा मेडिकल संस्थान और इसके अगल-बगल बनाए गए छात्रावास का निर्माण पिछले पांच वर्षों से कराया जा रहा है. वर्ष 2018 में निर्माण कार्य शुरू हुआ था. वर्ष 2020 में निर्माण कार्य पूरा कर लिया जाना था. लेकिन कोरोना के कारण काफी दिनों तक मामला फंसा रहा. कोरोना तो समाप्त हो गया. लेकिन भवन अभी तक हैंडओवर नहीं हो सका. इसका खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ रहा है.
पारा मेडिकल हॉस्टल में सिक्यूरिटी का इंतजाम नहीं हो सका है. छात्र-छात्राओं की सिक्यूरिटी के लिए एजेंसी को बहाल करना है. तकनीकी पेंच के कारण मामला फंसा हुआ है. ठेकेदार ने बिल्डिंग के कुछ हिस्सा का काम पूरा नहीं किया गया है. इस वजह से इसे हैंडओवर नहीं लिया जा रहा. हॉस्टल शुरू के लिए अभी इंतजार करना होगा.
पलामू के रहने वाले यशवंत कुमार एसएनएमएमसीएच में पारा मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं. उनके पिता व माता का देहांत हो गया है. भाई पढ़ाई का खर्च उठाते हैं. रहने, खाने सहित अन्य खर्चों के लिए उन्हें तीन हजार रुपये प्रतिमाह मिलते हैं. बताया : हॉस्टल नहीं होने के कारण ढाई हजार रुपये किराये में चला जाता है. बचे पैसों से पढ़ाई का सामान जुटाता हूं. जामताड़ा के रहने वाले अजीत के घर की माली स्थिति अच्छी नहीं है. पिता किसान हैं. किसी तरह पैसों का जुगाड़ कर हर माह तीन हजार रुपये भेजते हैं. रहने और खाने में ढाई हजार निकल जाते हैं. बचे पैसों से महीने का खर्च किसी तरह निकालते है. यदि हॉस्टल सुविधा मिले तो थोड़ी राहत मिलेगी. बोकारो की रहने वाली तालो कुमारी एक साल से किराया के मकान में रहकर पढ़ाई कर रहीं हैं. बताया कि घर से मिलने वाला पैसा आधा से ज्यादा किराया में निकल जाता है. कभी-कभी जरूरी पाठ्यक्रम खरीदने के लिए पैसे नहीं बचते है.