dhanbad news, tb cases in dhanbad रचना प्रियदर्शिनी धनबाद : ‘मैं पिछले 10 वर्षों से यहां काम कर रहा हूं. इस दौरान मेरी जानकारी में तो किसी कोयला श्रमिक के टीबी का कोई मामला देखने-सुनने को नहीं मिला है मुझे.’ यह कहना है रामगढ़ स्थित सयाल क्षेत्र के कोयला खदान में डीटीओ के पद पर कार्यरत रमेश कुमार का, जो कि कुछ महीनों पूर्व गले के इंफेक्शन की समस्या से उबरे हैं. 25 वर्षों से कांटाघर के कर्मचारी रह चुके कृष्णा कुमार भी उनकी बात की पुष्टि करते हुए कहते हैं कि ‘मैंने भी अब तक किसी वर्कर को कोई गंभीर समस्या से ग्रसित नहीं देखा है.’
गत छह वर्षों से सीसीएल ऑफिस में कार्यरत सेफ्टी ऑफिसर रवि रंजन इस सकारात्मक बदलाव का श्रेय सरकारी नीतियों और योजनाओं को देते हैं. उनके अनुसार- ‘मेरे ज्वॉइन करने के बाद से अब तक मेरी नजर में टीबी का कोई भी केस नहीं आया है. हर कर्मचारी का सावधिक चिकित्सीय परीक्षण होता है. प्रदूषण के लिए वायु प्रदूषण मापक लगाये गये हैं.
सालाना 10 हजार पौधारोपण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. इसके अलावा, घरेलू गैस उपयोग को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. कोयले का उपयोग अब केवल उत्पादन के उद्देश्य से ही किया जाना है. इन सभी उपायों से स्वास्थ्य समस्याओं में काफी कमी आयी है.’ झारखंड के बड़का सयाल कोल क्षेत्र के एरिया मेडिकल ऑफिसर डॉ एच के सिंह का कहना है: ‘
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पिछले एक-डेढ दशक में कोल क्षेत्र में टीबी के मामलों में उल्लेखनीय कमी आयी है. हां, हर महीने सांस संबंधी अन्य समस्याओं वाले 40-50 मरीज आ ही जाते हैं, जिनमें से 10-15 मरीजों की स्थिति गंभीर होती है. कार्बन मोनोऑक्साइड,आर्सेनिक और सल्फर डाईऑक्साइड जैसी जहरीली गैसों के जमीन से निकलने की वजह से उस क्षेत्र के आसपास टीबी, अस्बेस्टोसिस (धूलभरी हवा में सांस लेने की वजह से होनेवाली फेफड़ों की एक बीमारी) और व्हीजिंग (सांस लेते समय सीटी की आवाजें आना) के काफी सारे मामले आते हैं.
ऐसे मरीजों में भी महिलाओं के मुकाबले पुरुषों की संख्या अधिक है. इसकी एक बड़ी वजह उनके द्वारा शराब का सेवन या अन्य प्रकार के नशा का उपभोग करना है. बच्चों में सर्वाइकल संबंधी टीबी के मामले अधिक देखने को मिलते हैं. इसके अलावा, चकत्ते और त्वचा रोग की भी काफी शिकायतें आती हैं.’
टीबी उन्मूलन के क्षेत्र में कार्यरत संस्था REACH के झारखंड स्टेट प्रोग्राम मैनेजर दिवाकर शर्मा कहते हैं, ‘मैं पिछले आठ वर्षों से टीबी उन्मूलन के क्षेत्र में विभिन्न संस्थाओं के साथ कार्य कर रहा हूं. इतने सालों के अपने अनुभव के आधार पर यही कहूंगा कि झारखंड में पूर्व की तुलना में टीबी के मरीज कम जरूर हुए हैं, लेकिन आज भी हमारे पास सालाना करीब 60 हजार मामले आ ही जाते हैं.
दरअसल इसकी एक बड़ी वजह लोगों में अभी भी टीबी के बारे में जागरूकता का अभाव और समुचित पोषण की कमी है. इसके अलावा, प्राइवेट अस्पतालों द्वारा टीबी मरीजों का डाटा मेंटेन न किये जाने की वजह से भी टीबी मरीजों का सही आंकड़ा पता नहीं चल पाता है. हालांकि गत सप्ताह झारखंड सरकार ने एक नोटिस जारी करके सभी अस्पतालों, उद्योगों और कार्यालयों का अपने यहां एक टीबी विभाग गठित करने का आदेश दिया है. उम्मीद है कि वर्ष 2025 तक हम टीबी के मामले को न्यूनतम स्तर तक लाने में कामयाब हो पायेंगे.
बता दें कि ओपन-कास्ट खनन के दौरान जमीन में डायनामाइट और गनपाउडर से विस्फोट कर गड्ढा कर कोयला निकाला जाता है. जिस जगह पर कोयला खदान होता है, वहां आसपास का तकरीबन आठ किलोमीटर का क्षेत्र और उसमें रहनेवाले लोग इससे प्रभावित होते हैं. धूल और गैस के प्रभाववश इन क्षेत्रों की जलवायु और पानी दूषित हो जाता है. कोयला निकालने के बाद जो पोखर या गड्ढा निर्मित होता है, कर्मचारी और उनका परिवार उन गड्ढों में जमे पानी का उपयोग भी करते हैं. इस वजह से उन्हें टीबी, अस्थमा, श्वसन संबंधी समस्या झेलनी पड़ती है.
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Posted By : Sameer Oraon