दुमका कोर्ट: सरैयाहाट के एक शिक्षक सुकदेव मंडल ने फर्जी प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी की और सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी प्रावधान का लाभ भी उठाया. विभाग ने जब सरकारी राशि जमा करने के आदेश दिया तो मुकर गए. 12 साल तक चले मुकदमे के बाद शुक्रवार को अदालत ने दोषी पाकर सजा सुनाई. प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी विजय कुमार यादव की अदालत ने शिक्षक को तीन धारा में तीन साल और 50 लाख रुपया जुर्माना की सजा सुनाई. जुर्माना की राशि सरकारी कोष में जमा नहीं करने पर अभियुक्त को छह माह की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी. सजा की खास बात यह है कि तीन धारा में सुनाई गई सजा एक साथ नहीं चलेगी. पहले तीन, फिर दो और अंत में एक साल की सजा काटनी होगी. सरकार की ओर से सहायक लोक अभियोजक खुशबुद्दीन अली ने बहस की. इस केस में केवल एक की गवाही दर्ज कराई गई.
फर्जी कागजात तैयार कर ले ली नौकरी
वर्ष 2011 में तत्कालीन जिला शिक्षा अधीक्षक को जांच के क्रम में पता चला कि सरैयाहाट प्रखंड के कानीजोर प्राथमिक विद्यालय के सेवानिवृत्त शिक्षक सुकदेव मंडल ने फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी हासिल की है. इतना ही नहीं, सेवानिवृत्त होने के बाद सरकारी प्रावधान के तहत राशि भी ले ली. 27 अप्रैल 2011 को उन्होंने बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के सचिव को सारी जानकारी देकर कुछ बिंदुओं पर जांच कराने का अनुरोध किया. जांच में पता चला कि शिक्षक ने 1968 का मैट्रिक का जो प्रमाण पत्र दस्तावेजों के साथ जमा किया है, अभिलेख में उनके नाम की जगह दूसरे का नाम है. इससे लगता है कि संबंधित सुकदेव मंडल ने फर्जी कागजात तैयार कर नौकरी हासिल की है.
आरोपी शिक्षक ने नहीं दिया था जवाब
तत्कालीन प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी अमरनाथ साहू को तत्काल प्राथमिकी दर्ज कराने का निर्देश दिया गया. साथ ही शिक्षक को नोटिस देकर कहा कि सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने जो सरकारी राशि प्राप्त की है, एक माह के अंदर सारी राशि देवघर कोषागार में जमा कर दें, परन्तु शिक्षक की ओर से किसी तरह का जवाब नहीं दिया गया. इसके बाद साफ हो गया कि शिक्षक ने सारी सरकारी राशि का गबन कर लिया है. डीएसई के आदेश पर बीईईओ ने 18 अगस्त 2011 को सरैयाहाट थाना में फर्जी प्रमाण पत्र पर सरकारी सेवा करने और सेवानिवृत्ति के बाद प्राप्त सरकारी राशि वापस नहीं करने का मामला दर्ज कराया. इस केस में बचाव पक्ष के अधिवक्ता अनिक कुमार झा ने केस की पैरवी की थी.