BPSC Success Story: कहते हैं कि हालात बदलते समय नहीं लगते. किसी गरीब के घर से जीवन भर के लिए गरीबी हट जाती है अगर उनका एक बच्चा काबिल बन जाए. अक्सर ऐसा देखा जाता है कि कुछ बच्चे सभी सुविधाओं के बाद भी असफल रह जाते हैं लेकिन वहीं कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जो विभिन्न मुश्किल परिस्थितियों से गुजरते हुए भी अपने लिए सफलता की राह बना लेते हैं. आज हम आपको ऐसी ही एक कहानी बताएंगे बिहार के औरंगाबाद जिले के रहने वाले राहुल कुमार के बारे में जिन्होंने आर्थिक मुश्किलों के बावजूद अपनी मेहनत से 67वीं बीपीएससी की परीक्षा पास की और कल्याण पदाधिकारी बन गए.
पिता चलते था मामूली सैलून
बता दें, कि राहुल कुमार औरंगाबाद जिले के एक छोटे से गांव कर्मा भगवान के रहने वाले थे, उनके पिता रविंद्र ठाकुर एक मामूली सा सैलून चलाकर अपने परिवार का गुजारा करते थे लेकिन लॉकडाउन के समय उनका सैलून बंद हो गया, और उनके पास दोबारा इसे शुरू करने के लिए पूंजी नहीं थी. हालांकि इतने मुश्किलों के बावजूद वह राहुल को हमेशा पढ़ाई के प्रति प्रेरित करते थे और उनका सपना था कि उनका बेटा कल को कुछ बड़ा करे.
इंटरव्यू के कपड़ों के लिए लिया कर्ज
राहुल की आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर थी कि उनके पास अपने इंटरव्यू में पहनने के लिए कपड़े सिलवाने के भी पैसे नहीं थे. उन्होंने अपने गांव के मधुसूदन ठाकुर से कर्ज में पैसे लेकर इंटरव्यू के लिए एक कोट पैंट सिलवाया था. राहुल की कहानी सभी तैयारी कर रहे लोगों के लिए एक प्रेरणा है, और उनकी कहानी यह भी सिद्ध करती है कि अगर किसी व्यक्ति ने कुछ ठान लिया हो तो हालत उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती.
सरकारी स्कूल से हुई राहुल की पढ़ाई
राहुल ने अपनी पढ़ाई पूर्ण रूप से सरकारी स्कूल से की क्योंकि वह आर्थिक रूप से काफी कमजोर थे. औरंगाबाद से मैट्रिक करने के बाद उन्होंने सच्चिदानंद सिन्हा कॉलेज से विज्ञान विषय में इंटरमीडिएट किया और इसके बाद उन्होंने भूगोल में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की. ग्रेजुएशन के बाद राहुल ने आगे की पढ़ाई न कर के घर पर रहकर सरकारी नौकरी की तैयारी करने का फैसला किया और अपनी मेहनत से अपने चौथे अटेम्प्ट में अच्छी रैंक के साथ बीपीएससी की परीक्षा पास की.
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पढ़ाई के लिए लिया यूट्यूब का सहारा
राहुल के पास किसी भी प्रकार की कोचिंग के लिए पैसे नहीं थे इसलिए उन्होंने अपनी तैयारी में मदद के लिए यूट्यूब का सहारा लिया. बता दें, कि राहुल ने बीपीएससी में 100 के अंदर की रैंक हासिल की और कल्याण पदाधिकारी बन अपने परिवार के साथ पूरे गांव का नाम रौशन किया.
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