Success Story: बिहार के ऑफिसर बेटों की कहानी, कपड़े सिलकर मां ने बनाया ऑर्मी में लेफ्टिनेंट
Success Story: बिहार के छपरा के रहने वाले दो भाईयों की सफलता की कहनी ऐसी है जिसे जानकर आपका हौसला बढ़ जाएगा. इनके परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि इनकी मां ने कपड़े सिलकर इनकी पढ़ाई का खर्च उठाया था और आज दोनों ही बेटे अफसर बन गए हैं.
Success Story: छपरा के एक छोटे से गांव के दो भाइयों ने अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण से न सिर्फ अपने परिवार का नाम रोशन किया, बल्कि एक प्रेरणास्त्रोत भी बने. इन दोनों भाइयों की मां सिलाई का काम करती थीं, लेकिन उनका सपना था कि उनके बच्चे अच्छे शिक्षा प्राप्त करें और समाज में एक ऊंचा स्थान हासिल करें. इन दोनों भाइयों ने अपनी मां के संघर्ष और आशीर्वाद को अपनी प्रेरणा बनाते हुए कठिनाईयों का सामना किया. उन्होंने पढ़ाई में ध्यान केंद्रित किया और भारतीय सेना में अफसर बनने का लक्ष्य रखा. आखिरकार, उनके अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप, दोनों भाई भारतीय सेना में ऑफिसर बन गए. ये कहानी है अमनौर प्रखंड के मदारपुर पंचायत के छोटे से गांव लहेर के रहने वाले सुरेश प्रसाद यादव और श्रीमती फुलझड़ी देवी के दोनों बेटों मुकेश कुमार राय और अभिषेक कुणाल की.
मां ने कपड़े सिलकर उठाया बच्चों के पढ़ाई का खर्च
मुकेश और अभिषेक कुणाल के पिता एक प्राइवेट स्टील फैक्ट्री में काम करते थे और उनके घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी. दोनों बेटों की पढ़ाई का खर्च उठा पाना काफी मुश्किल हो रहा था, तब उनकी मां फुलझड़ी देवी ने सिलाई का काम सीखा और कपड़े सिलने का काम शुरू कर दिया. माता पिता दोनों ने संघर्ष में अपनी जिंदगी बिताई लेकिन अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान की. अभिषेक और मुकेश के दादाजी स्वर्गीय राम सागर राय का भी हमेशा से एक सपना था कि उनके पोते बड़े होकर अपने गांव का नाम रौशन करें. दोनों भाइयों ने अपने माता पिता के संघर्ष का कर्ज अपनी सफलता से चुकाया. फिलहाल दोनों ही भाई आर्मी में ऑफिसर लेवल पर कार्यरत हैं.
गांव वालों ने मारे ताने
लेफ्टिनेंट अभिषेक कुणाल के पिताजी ने एक बार मीडिया से बातचीत करते हुए ये बताया था कि वे हमेशा से अपने एक बेटे को आर्मी में भेजने का सपना रखते थे. लेकिन उनके गांव वाले उन्हें हमेशा ये ताना देते थे कि उनका कोई भी बेटा कुछ नहीं कर पाएगा. हालांकि उन्होंने गाँव वालों की एक ना सुनी और हमेशा अपने बच्चों का हौसला बढ़ाते रहे.
कई असफलताओं के बाद मिली सफलता
लेफ्टिनेंट कुणाल ने मीडिया को संबोधित करते हुए ये बताया था कि वे बचपन से ही काफी चंचल थे. उन्होंने दो एनडीए की परीक्षा दी लेकिन दोनों ही बार वे नाकामयाब हो गए. इसके बाद साल 2012 में उनका सिलेक्शन आर्मी मेडिकल कोर में हुआ. दोनों ही भाई अपने कामयाबी का श्रेय अपने माता पिता को देते हैं. इन दोनों भाइयों की सफलता की कहानी सिर्फ उनके गांव के लिए ही नहीं बल्कि पूरे बिहार के लिए एक मिसाल है.
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