पढ़ाई ही नहीं बच्चों के ‘खेल का घंटा’ तय करें माता-पिता, जानें क्या कहता है UNICEF
UNICEF: यूनिसेफ द्वारा बताया गया है कि खेल खेल में होने वाली पढ़ाई बच्चों के मानसिक तनाव को दूर करने में मदद करती है.
UNICEF: बच्चों के लिए पढ़ाई के समय तय करना जितना जरूरी है, उससे कहीं अधिक उनके खेल का घंटा निर्धारित करना आवश्यक है. पढ़ाई खेल खेल में भी हो जाती है और खेल खेल में होने वाली पढ़ाई बच्चों के मानसिक तनाव को दूर करने में मदद करती है. अभी 11 जून 2024 को भारत में पहली बार मनाए गए पहले अंतरराष्ट्रीय खेल दिवस के दौरान संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) इंडिया ने अभिभावकों से बच्चों के लिए ‘खेल का घंटा’ निर्धारित करने की अपील की है.
बच्चों के लिए मनोरंजन से बढ़कर है खेल
यूनिसेफ इंडिया की शिक्षा विशेषज्ञ सुनीषा आहुजा ने ‘खेल का घंटा’ नामक लेख में लिखा है कि बच्चों के लिए खेल मनोरंजन से कहीं अधिक है. उन्होंने अपने लेख में लिखा है कि खेल बच्चों के जीवन के लिए महत्वपूर्ण कौशल विकसित करने में मदद करता है. इसके अलावा, यह उनमें सीखने और खोज करने की ललक पैदा करता है. खेल के माध्यम से बच्चे अपने आस-पास के वातावरण की खोज करके अपने आस-पास की दुनिया के बारे में सीखते हैं. इस प्रकार उनके अंदर संज्ञानात्मक कौशल विकसित होते हैं, जिसमें आलोचनात्मक सोच, समस्या समाधान और फैसला लेने की प्रवृत्ति शामिल है.
खेल से बच्चों में बढ़ती है कल्पना और रचना शक्ति
उन्होंने अपने लेख में आगे लिखा है कि खेल बच्चों सामाजिक तौर पर सुदृढ़ बनाने, उनकी कल्पना और रचनात्मकता विकसित करने और जिज्ञासा को बढ़ावा देने में मदद करता है. भावनात्मक रूप से अपने माता-पिता के साथ खेलने से बच्चों का तनाव कम होता है और उन्हें प्यार और सुरक्षा का एहसास होता है. खेल बच्चों को उनके मोटर कौशल विकसित करने, स्वस्थ मस्तिष्क विकास और समग्र कल्याण में भी मदद करता है.
खेल का घंटा का क्या है उद्देश्य
भारत में पहली बार 11 जून, 2024 को अंतरराष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर मनाया जाने वाला ‘खेल का घंटा’ बच्चों के जीवन में खेल के महत्व को उजागर करने और बच्चों के खेल के लिए माता-पिता के समर्थन को बढ़ावा देने की एक महत्वपूर्ण पहल है. इस पहल का उद्देश्य मौज-मस्ती, हंसी-मजाक और मुक्त खेल के इस घंटे का उद्देश्य बच्चों को बड़ों की ओर से दिए गए लक्ष्यों या नियमों के बिना खेल का नेतृत्व करने के लिए प्रोत्साहित करना है. माता-पिता इस प्रयास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और उन्हें बच्चों के खेल के घंटे में पूरी तरह से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. यह पहल बच्चों के समग्र कल्याण और स्वस्थ विकास में मुक्त खेल की भूमिका को प्राथमिकता देती है और पहचानती है. मुझे उम्मीद है कि हर माता-पिता अपने बच्चे के लिए हर दिन एक घंटे का खेल उपलब्ध कराएंगे. यह बाहर और अंदर दोनों जगह हो सकता है और इसके लिए हर समय खिलौनों की आवश्यकता नहीं होती है.
बच्चों के खेल में शामिल हों अभिभाव
सुनीषा आहुजा ने आगे लिखा है कि माता-पिता और देखभाल करने वाले अभिभावक अपने बच्चों के साथ खेल के लिए समय निकालकर खेल को अपनी दिनचर्या में शामिल कर सकते हैं. उन्हें बच्चे को नेतृत्व करने खोज करने और फैसला लेने देना चाहिए. माता-पिता कार्डबोर्ड बॉक्स, कपड़े का टुकड़ा जैसे खेलों में शामिल हो सकते हैं. माता-पिता को बच्चों को स्वतंत्र खेल में शामिल होने, गंदगी को गले लगाने और सुरक्षित और चंचल वातावरण प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. बच्चों द्वारा बार-बार खेलने को प्रोत्साहित करना और माता-पिता का स्पष्ट उत्साह बच्चे के अनुभव और विकास को काफी हद तक बढ़ा सकता है. बच्चों के साथ खेलना पालन-पोषण का एक मूलभूत पहलू है, क्योंकि वयस्कों के साथ सरल और चंचल बातचीत बच्चों को स्वस्थ दिमाग और शरीर विकसित करने में मदद करती है.
मैदान में खेलते हैं सिर्फ 27 फीसदी बच्चे
उन्होंने कहा कि आज खेल से लोग इतने दूर होते जा रहे हैं कि पूरी दुनिया में सिर्फ 27 फीसदी बच्चे ही घर से बाहर मैदान में अपने उम्र के बच्चों के साथ खेल पाते हैं. राइट टू प्ले की एक रिपोर्ट के अनुसार, आज केवल 27 फीसदी बच्चे अपने घरों के बाहर खेलते हैं, जबकि उनके माता-पिता की पीढ़ी के 71 फीसदी बच्चे घर के बाहर मैदान खेलते रहे हैं. खेल की यह कमी बच्चों के स्वास्थ्य और उनके मानसिक विकास को प्रभावित करती है. खेल के समय के अभाव में बच्चों को तनाव और चिंताओं का सामना करना पड़ सकता है. दूसरों के साथ मजबूत संबंध बनाने में कठिनाई हो सकती है.
बच्चों के खेल को बढ़ावा दे सकता है समाज
सुनीषा आहुजा का कहना है कि बच्चों के मानसिक विकास के लिए खेल का घंटा तय करने में माता-पिता या परिवार के अलावा समाज और समुदाय के लोग भी बढ़ावा दे सकते हैं. स्कूलों में पढ़ाई से संबंधित दिनचर्या में खेल को प्रमुखता से शामिल करना चाहिए. इसके अलावा, बच्चों को खेल का माहौल और मैदान मुहैया कराने के लिए सरकार, संगठन और व्यावसायिक संस्थान आपस में साझेदारी कर सकते हैं. सामुदायिक कार्यक्रमों और ‘खेल का घंटा’ जैसी पहलों को प्रोत्साहित करने से जागरूकता बढ़ सकती है और बच्चों के विकास में खेल के महत्व को बढ़ावा मिल सकता है.