Gujarat Election 2022: गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 के लिए मतदान दिसंबर के महीने में होंगे. इस चुनाव में जीत हासिल करने के लिए सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने कमर कस ली है. राज्य की सत्ता पर काबिज बीजेपी के लिए इस बार के चुनाव में कांग्रेस के साथ ही आम आदमी पार्टी (AAP) भी चुनौती बनी है. यहां बताते चलें कि पीएम नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात की राजनीति में पाटीदार समुदाय की एक अलग अहमियत रही है. पाटीदार समुदाय के साथ ही दलित, आदिवासी और मुसलमानों के वोट को भी अहम माना जाता हैं. दरअसल, इन समुदायों के पास चुनाव के नतीजे बदलने की क्षमता है.
आंकड़ों के मुताबिक, गुजरात में कुल 182 में 71 विधानसभा सीटों पर पाटीदार निर्णायक भूमिका निभाते हैं. वहां भी 52 सीटों पर उनकी आबादी 20 फीसदी से अधिक रहती है. बताया जाता है कि साउथ गुजरात और सौराष्ट्र में तो हार-जीत का अंतर भी पाटीदार समाज ही तय करता है. 2017 के गुजरात चुनाव में पटेल बहुल सौराष्ट्र-कच्छ क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी (BJP) का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा था और पार्टी के खाते में 54 में से महज 23 सीटें ही गई थीं. बताया गया कि पाटीदार आंदोलन की वजह से बीजेपी को यह सियासी नुकसान पहुंचा था. बताते चलें कि गुजरात में पाटीदार समुदाय लेउवा पटेल और कडवा पटेल उपजातियों में बंटा हुआ है. गुजरात में 70 फीसदी लेउवा पटेल और 30 फीसदी कडवा पटेल है.
इन सबके बीच, इस बार के चुनाव में आम आदमी पार्टी की एंट्री से गुजरात में त्रिकोणीय मुकाबला होने की संभावना जताई जा रही है. सियासी गलियारों में चर्चा तेज है कि आम आदमी पार्टी के चुनावी रण में उतरने से बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस की परेशानी भी बढ़ गई है. बताया जा रहा है कि गुजरात में आम आदमी पार्टी की नजर भी पाटीदार वोटों पर है. इसी के मद्देनजर, पार्टी की कमान गोपाल इटालिया को सौंपी गई है. दरअसल, गोपाल इटालिया पाटीदार समुदाय से आते हैं. अरविंद केजरीवाल के लिए राहत देने वाली बात यह है कि पिछले साल सूरत के नगरपालिका चुनाव में आम आदमी पार्टी के खाते में 27 सीटें गई थीं. ऐसे में बीजेपी के लिए एक नई चुनौती AAP बन रही है. बीजेपी को उम्मीद है कि पाटीदार समुदाय का वोट उसके पक्ष में जाएगा. जिससे आप की ओर से मिलने वाली चुनौती को जमीन पर कमजोर करने में मदद मिलेगी.
सियासी गलियारों में इस बात को लेकर चर्चा जोर पकड़ रही है कि 2022 के चुनाव में क्या बीजेपी को पाटीदारों का वोट मिलेगा. बता दें कि साल 2015 में पाटीदार आंदोलन शुरू हुआ था और इस दौरान हिंसा भी खूब हुई थी. इस आंदोलन ने गुजरात को एक नया नेता हार्दिक पटेल दिया. हालांकि, हार्दिक पटेल बाद में कांग्रेस में आए और अब बीजेपी में हैं. दरअसल, बीजेपी अलग-अलग तरीकों से हर समीकरण को अपने पक्ष में करने की कोशिश में जुटी हुई हैं. पाटीदार आंदोलन के बाद बीजेपी से इस समुदाय ने दूरी बना ली थी. जबकि, एक समय में यह समुदाय पार्टी का परंपरागत वोटर हुआ करता था. इसका असर 2017 के चुनाव में भी दिखा और बीजेपी को कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिल थी. 2017 के चुनाव में बीजेपी 99 सीटें जीती थी, हालांकि दावा डेढ़ सौ का था. लेकिन, इस बार परिस्थिति बदली है. पिछले चुनावों में मजबूत दिखी कांग्रेस इस बार बिखरी दिख रही है. बीजेपी भी तमाम कोशिशों में हैं कि परिणाम उसके पक्ष में आएं और इसके लिए उसे पाटीदार समुदाय को अपने पक्ष में करने की विशष रणनीति अपनाई जा रही है. इस बार हार्दिक पटेल खुद भी बीजेपी में हैं. ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि इस बार परिस्थिति बदल सकती है.