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EVM: ईवीएम से क्यों नाराज है इंडिया ब्लॉक, सत्ता में रहने पर मुहब्बत और विपक्ष में रहने पर नफरत!

EVM: भारत में ईवीएम 1982 में आया. इसके बाद से आज तक इसका सिस्टम बेहतर ही होता आया है. आज इस प्रणाली से दुनिया के 24 देशों में वोटिंग की जाती है. पढ़िए ईवीएम का सफर

By Neha Singh | May 15, 2024 10:35 AM
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ईवीएम पर सियासत: जीते तो ठीक, हारे तो दोष देना हो गई है आम बात

EVM: कुछ दिन पहले एक चुनावी रैली में राहुल गांधी समेत इंंडिया ब्लॉक के नेताओं ने सत्ता में आने पर ईवीएम यानी इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन को पूरी तरह से चुनाव प्रक्रिया से बाहर कर देने का एलान किया. कई नेता तो कहते फिर रहे हैं कि ईवीएम में राजा की आत्मा है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि विपक्ष के नेताओं का ईवीएम के खिलाफ अचानक उमड़ा नफरत केवल विपक्ष में रहते वक्त का क्रंदन है या फिर ईवीएम की खामियों को लेकर स्थायी रूप से रहने वाला चाक-चौबंद भाव. तथ्यों की पड़ताल में सामने आता है कि 2004 के लोकसभा चुनाव में पूरी तरह से ईवीएम मशीन के लागू होने के बाद कांग्रेस ही केंद्र की सरकार में आई थी. 10 साल तक लगातार केंद्र की मनमोहन सिंह नीत कांग्रेस सरकार के दौरान कांग्रेसी कभी ईवीएम के खिलाफ मुखर नहीं हुए.

2004 का लोकसभा चुनाव पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के माध्यम से कराया गया था. उसके बाद से अपने देश में लोकसभा तथा विधानसभा का चुनाव वोटिंग मशीन से कराया जाता है. 1982 में सबसे पहली बार हुआ था ईवीएम का प्रयोग, 2004 में पूरी तरह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से कराया गया लोकसभा चुनाव

ईवीएम कैसे आई अस्तित्व में

ईवीएम का अविष्कार 1980 में एम बी हनीफा के द्वारा किया गया था. हनीफा ने 15 अक्टूबर 1980 को इस मशीन को रजिस्टर्ड कराया था. सबसे पहले तमिलनाडु के छह शहरों में एग्जीबिशन लगाकर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन लोगों के लिए रखी गई. यह वह दौर था जब लोग चुनाव कराने वाली इस मशीन से परिचित हुए. इसके बाद इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया ने इस मशीन में अपनी रुचि दिखाई और सहमति व्यक्त की कि इस मशीन से चुनाव संपन्न कराया जा सकता है. इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड की मदद से इसे बनाने की प्रक्रिया शुरू की गई. इसे डेवलप करने में औद्योगिक डिजाइन सेंटर, आईआईटी बॉम्बे ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

EVM का सफर: 1982 से आज तक

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का प्रयोग सबसे पहले 1982 में केरल के नॉर्थ पारावूर विधानसभा क्षेत्र के लिए होने वाले उपचुनाव के 50 मतदान केंद्रों पर किया गया. लेकिन उस समय इस मशीन के इस्तेमाल को लेकर कोई कानून नहीं था. इस वजह से सुप्रीम कोर्ट ने उस चुनाव को खारिज कर दिया. 1989 में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन किया गया जिसके बाद चुनाव में ईवीएम का प्रयोग शुरू हुआ.

कैसे बढ़ा ईवीएम का दायरा

1992 में विधि और न्याय मंत्रालय ने कानून संशोधन की अधिसूचना जारी की. ईवीएम के चुनाव में इस्तेमाल की आम सहमति 1998 में पूरी तरह से हो पाई. 1998 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली की 25 विधानसभा सीटों पर चुनाव कराए गए. उसके बाद अगले ही साल 1999 में 45 सीटों पर हुए चुनाव में ईवीएम इस्तेमाल की गई. 2000 के बाद लोकसभा, विधानसभा उपचुनाव में ईवीएम के इस्तेमाल में धीरे-धीरे बढ़ोतरी करनी शुरू की गई. पूरी तरह से प्रयोग की बात करें तो 2001 में तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी की सभी सीटों पर ईवीएम से ही चुनाव कराया गया. 2001 के बाद 3 लोकसभा और 110 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर ईवीएम का इस्तेमाल किया गया. 2004 का लोकसभा चुनाव ऐसा चुनाव था, जब इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल पूरी तरह से सभी सीटों पर किया गया. इसके बाद इसका चलन शुरू हो गया.

समझें EVM कैसे करती है काम

ईवीएम के दो हिस्से होते हैं. एक कंट्रोल यूनिट कहलाता है और यह मतदान अधिकारी के पास रहता है. ईवीएम का दूसरा हिस्सा वोटिंग यूनिट कहलाता है इसे वोटिंग रूम में रखा जाता है, जहां वोटर जाकर इसका बटन दबाता है. मतदान अधिकारी सबसे पहले मतदान बटन को दबाता है. इसके बाद मतदाता मतदान कक्ष में स्थित वोटिंग यूनिट पर अपने प्रत्याशी के नाम और चुनाव चिन्ह के सामने स्थित बटन को दबाता है और वोट डालने की प्रक्रिया पूरी हो जाती है. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की दोनों यूनिट आपस में वायर के माध्यम से जुड़ी रहती हैं.

लगते रहे हैं आरोप

  • -2009 के लोकसभा चुनाव में पहली बार ईवीएम मशीन पर सवाल खड़े किए गए. भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी व अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाया था.
  • 2010 में भारतीय जनता पार्टी के ही एक नेता जीवीएल नरसिम्हा राव ने मशीन पर सवाल खड़े किए थे. तब यह मामला कोर्ट तक भी ले जाया गया था.
  • मार्च 2017 में 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव संपन्न हुए थे. उस समय 13 राजनीतिक दल एकजुट हुए थे और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के नतीजे पर सवाल उठाया गया था. इन्होंने इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया से भी आपत्ति दर्ज कराई थी.

क्यों नहीं है छेड़छाड़ संभव

  • विशेषज्ञ बताते हैं कि इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन में छेड़छाड़ संभव नहीं है. क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को नियंत्रित करने के लिए सिलिकॉन से बने ऑपरेटिंग प्रोग्राम का इस्तेमाल किया जाता है. एक बार इसका निर्माण होने के बाद इसे बनाने वाला भी इसमें कोई बदलाव नहीं कर सकता है.
  • कोई वोटर चाहे तो एक बार में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से एक के बाद दूसरा वोट नहीं दे सकता. क्योंकि एक बार वोट देने के बाद यह मशीन लॉक हो जाती है या कहा जाता है कि यह बंद हो जाती है. दोबारा दूसरे वोटर के आने के बाद जब मतदान अधिकारी ग्रीन सिग्नल देंगे तो ही दूसरा वोटर अपना वोट दे सकता है.
  • यह कम्प्यूटर नियंत्रित नहीं हैं, बल्कि स्वतंत्र मशीन है. यह इंटरनेट या किसी अन्य नेटवर्क के साथ कनेक्ट नहीं होती. अतः किसी रिमोट डिवाइस के ज़रिये इन्हें हैक करने की कोशिश नहीं की जा सकती.
  • यह वायरलेस या किसी बाहरी हार्डवेयर पोर्ट के लिये किसी अन्य गैर-ईवीएम एक्सेसरी के साथ कनेक्शन के जरिये कोई फ्रीक्वेंसी रिसीवर या डेटा के लिये डीकोडर नहीं है. हार्डवेयर पोर्ट या वायरलेस या वाईफाई या ब्लूटूथ डिवाइस के ज़रिये किसी प्रकार की टैम्परिंग संभव नहीं है.
  • प्रत्येक ईवीएम का एक सीरियल नम्बर होता है. निर्वाचन आयोग ईवीएम-ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके अपने डेटाबेस से यह पता लगा सकता है कि कौन सी मशीन कहां पर है. अतः हेराफेरी की कोई गुंजाइश नहीं है.

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के कुछ फैक्ट्स

  • एक ईवीएम में अधिकतम 16 उम्मीदवारों के नाम दर्ज हो सकते हैं. अर्थात 16 से ज्यादा उम्मीदवार होने की स्थिति में मतदान केंद्र पर डबल इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का प्रयोग करना पड़ता है.
  • एक मशीन में अधिकतम 3840 वोट दर्ज किए जा सकते हैं. इसके बाद इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के स्थान पर दूसरी मशीन को बदला जाता है.
  • भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बंगलुरू और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद ईवीएम की बैटरी का निर्माण करते हैं. यह 6 वोल्ट की बैटरी होती है.

सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम को दी क्लीन चिट

ईवीएम की विश्वसनीयता का मामला कई बार कोर्ट पहुंचा. देश के कई राज्यों के हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक ने ईवीएम की विश्वसनीयता को क्लीन चिट दी है और कहा है कि इसमें छेड़छाड़ संभव नहीं है. फिर भी सवाल उठाने का सिलसिला अभी तक जारी है. जो पार्टी हारती है वह ईवीएम के खिलाफ जाती है. सत्ताधारी दल पर अक्सर आरोप लगाते रहे हैं. चुनाव आयोग ने कहा है कि देश के कई हाई कोर्ट ने भी ईवीएम को भरोसेमंद ही माना है. ईवीएम के पक्ष में हाई कोर्टों द्वारा दिए गए कुछ फैसलों को जब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, तब सुप्रीम कोर्ट ने उन अपीलों को खारिज कर दिया गया. वीवीपैट मशीन ईवीएम से डाले जाने वाले प्रत्येक मत का प्रिंटआउट देती है. यह एक बॉक्स में एकत्र होती रहती है. इनका उपयोग चुनावों से संबंधित किसी भी विवाद का निराकरण करने के लिये किया जा सकता है. इसे भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा डिज़ाइन किया गया है. वीवीपैट का पहला प्रयोग 2013 में नगालैंड के चुनाव में किया गया.

दुनिया के 24 देश में EVM का सिस्टम

  • विश्व में 24 देश ऐसे हैं जहां इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है.
  • एस्टोनिया जैसे छोटे देशों से लेकर सबसे पुराना लोकतंत्र अमेरिका तक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम का इस्तेमाल करता है.
  • जर्मनी जैसे कुछ देशों ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग प्रणाली अपनाई थी और बाद में मतपत्र प्रणाली पर लौट गए.
  • किसी-न-किसी प्रकार की इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग प्रणाली अपनाने वाले देशों में ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, ब्राज़ील, कनाडा, एस्टोनिया, फिनलैंड, फ्राँस, जर्मनी, भारत, आयरलैंड, इटली, कज़ाखस्तान, लिथुआनिया, नीदरलैंड, नॉर्वे, फिलिपींस, रोमानिया, दक्षिण कोरिया, स्पेन, स्विट्ज़रलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, ब्रिटेन, स्कॉटलैंड और वेनेज़ुएला शामिल हैं.
  • अमेरिका 241 साल पुराना लोकतंत्र है, लेकिन वहां अब भी कोई एक समान मतदान प्रणाली नहीं है. कई राज्य मतपत्रों का इस्तेमाल करते हैं तो कुछ वोटिंग मशीनों से चुनाव कराते हैं.

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