मुजफ्फरपुर से ललितांशु
Interesting facts : …एक मतदाता के लिए पोलिंग टीम को 300 मील जाना पड़ा था, तब जाकर एक महिला मतदाता मताधिकार का प्रयोग कर सकी. कुछ ऐसी ही सच्ची कहानियों के जरिये लोकसभा चुनाव में मतदान के महत्व को लेकर युवाओं और लोगों को इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया की ओर से जागरूक किया जा रहा है. मतदान में भागीदारी को बढ़ाने के लिए इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया ने अपने सोशल मीडिया हैंडल को एक्टिव कर दिया है, जिसमें सच्ची स्टोरी के साथ फिल्मों के डायलॉग और 100 साल से ऊपर के बुजुर्ग मतदाता कैसे मतदान के प्रति उत्साहित रहते हैं, को एक्स पेज पर शेयर किया जा रहा है. बताया गया कि साल 2020 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में 111 वर्षीय बचन सिंह (सबसे उम्रदराज बुजुर्ग) ने मतदान किया था.
अकेली महिला मतदाता की चर्चित स्टोरी
चुनाव आयोग के एक्स हैंडल पर पोस्ट स्टोरी में बताया गया है कि वर्ष 2019 के आम चुनाव के दौरान गैमर बाम और उनकी टीम ने उत्तर-पूर्व भारत के सुदूर गांव मालोगम में एक मतदान केंद्र स्थापित करने का प्रयास शुरू किया. इसके लिए सुरक्षा कर्मियों के साथ पोलिंग टीम को 300 मील यानी करीब 482.8 किमी का सफर पूरा करना पड़ा. लॉजिस्टिक चुनौतियों का सामना करने के बावजूद मतदान को सुविधाजनक बनाने के लिए टीम अपने मिशन के लिए प्रतिबद्ध रही, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अकेली महिला मतदाता सोकेला तायांग अपना वोट डाल सकें. सोशल मीडिया पर यह स्टोरी काफी चर्चित है और लोग इससे प्रभावित हो रहे हैं.
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एक वोट की कीमत तुम क्या जानो
वर्ष 2004 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में एक उम्मीदवार ने अपने प्रतिद्वंद्वी को मात्र एक वोट से हरा दिया. ऐसा ही राजस्थान में 2008 के विधानसभा चुनाव के दौरान देखने को मिला. यहां भी दो उम्मीदवारों के बीच जीत का फासला महज एक वोट का रहा. इसमें जिला स्तर पर भागीदारी बढ़ाने के प्रयास को भी शेयर किया जा रहा है, जिसमें देहरादून प्रशासन का डायलॉग चर्चित हो रहा है-‘ तुम्हारे पास क्या है, मेरे पास वोट करने का अधिकार है, खूब पसंद किया जा रहा है.’
28 लाख मतदाता का हट गया था नाम
इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया की ओर से भारतीय चुनावों से जुड़े कई रोचक किस्से भी शेयर किए जा रहे हैं. एक किस्से में बताया गया है कि पहले आम चुनाव के दौरान जब चुनाव आयोग के प्रतिनिधियों ने चुनावी डेटा इकठ्ठा करने के लिए गांवों का दौरा किया तो बड़ी संख्या में महिलाओं ने अजनबियों के साथ अपना नाम साझा करने से इनकार कर दिया. इसके बजाय पूछे जाने पर अधिकतर गलत नाम की जानकारी दी गयी. नतीजा यह हुआ कि प्रथम चुनाव के दौरान मतदाता सूची से 28 लाख नाम हटा दिया गया था.