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Students Union: राजनीतिक पार्टियों के छात्र संगठनों से मिल रहा डंडे, झंडे और एजेंडे का हुनर

छात्र संगठन सक्रिय रूप से चुनावी महासमर में उतर चुके हैं. इनके पास अपनी रणनीति और अपने एजेंडे हैं जिनके बल पर युवा मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कवायद जारी है. सबकी नजर युवा वोटरों पर है. खासतौर पर ऐसे युवाओं पर जो पहली बार इस लोकसभा चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे.

आम चुनाव के शुरू होते ही बड़ी और क्षेत्रीय पार्टियों के छात्र संगठन सक्रिय रूप से चुनावी महासमर में उतर चुके हैं. इनके पास अपनी रणनीति और अपने एजेंडे हैं, जिनके बल पर युवा मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कवायद कर रहे हैं. खासतौर पर ऐसे युवाओं पर इनकी नजर है, जो पहली बार इस लोकसभा चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. दरअसल, सियासत की नर्सरी में भी लोकसभा चुनाव की हलचल है. संसदीय सफर के ककहरे का पूरा क्लास लग रहा है. नेता बनने के तरीके जानने के लिए विद्यार्थियों में बेचैनी है. इन उफान मारती तमन्नाओं को अपने पक्ष में करने के लिए राजनीतिक दलों के छात्र संगठन प्लेटफॉर्म बन रहे हैं. इतना ही नहीं, आगे बढ़ने के तरीके बताने का पूरा पैकेज उपलब्ध करा रहे हैं. विद्यार्थियों को भी लगता है कि जो नेता उन्हें टीवी पर दूर से नजर आते हैं या मंच के नीचे से जिन्हें देखना पड़ता है, वे साथ में बैठाकर चुनाव प्रचार के बहाने राजनीति का गुर सिखा रहे हैं. विश्वविद्यालयों में प्रवेश,परीक्षा और परिणाम सही करने के लिए आंदोलन करने वाले छात्र संगठनों की यह चुनावी भूमिका आम विद्यार्थियों के बड़े हिस्से को भी आकर्षित कर रही है. कई तो पहली बार विचारधारा का पाठ भी पढ़ रहे हैं.

छात्र संगठन के मुद्दे

चुनावी जनसंपर्कों के पारंपरिक तरीकों के साथ ही छात्र संगठनों के द्वारा सोशल मीडिया का भी प्रयोग जमकर किया जा रहा है. युवाओं से संपर्क साधने में सभी छात्र संगठनों के कार्यकर्ता जुटे हुए हैं. एबीवीपी जहां सरकार की उपलब्धियां से युवाओं को रूबरू करा रही है तो वहीं विपक्षी दलों के छात्र संगठन सरकार की नाकामियों और शिक्षा व्यवस्था की कमियों को युवाओं के बीच रख रही है. इस चुनाव में खासतौर पर झारखंड के छात्र-छात्राओं के स्थानीय मुद्दे भी चर्चा में हैं. पेपर लीक कांड के अलावा केरल व अन्य राज्यों में छात्रों के साथ हिंसा भी एक प्रमुख मुद्दे के तौर पर इस चुनाव में सरगर्म है.

राष्ट्रीय मुद्दों पर छात्रों को गोलबंद कर रही विद्यार्थी परिषद

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद मोदी सरकार की उपलब्धियों के प्रचार के साथ चुनावी मैदान में है. महानगर मंत्री ऋतुराज शाहदेव ने कहा कि स्वयं हित से परे होकर समाज व राष्ट्र हित के लिए कार्य करने वालों के साथ हम सभी विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता खड़े रहेंगे. चाहे वह धारा 370 की बात हो चाहे राम जन्मभूमि का विषय हो. ये जो वर्षों से समस्यायें चल रही थी इन सभी का बिना किसी हिंसा के सफ़लतापूर्वक हल किया गया. वहीं झारखंड की सभी परीक्षाओं का प्रश्न लीक होना भी इनके लिए बड़ा मुद्दा है. इस चुनाव में सभी युवा इस विषय को ध्यान में रखते हुए अपने मत का प्रयोग करेंगे. शाहदेव ने कहा कि इस बार विद्यार्थी परिषद की भूमिका पहली बार मतदाता बने युवाओं की लोकतंत्र के इस महापर्व में अधिक से अधिक सहभागिता सुनिश्चित कराना है. इसके लिए नव मतदाता सम्मेलन, नुक्कड़ नाटक, हर-घर संपर्क जैसे कार्यक्रमों को भी हम सभी परिषद के कार्यकर्ता करेंगे.

प्रत्य़ाशियों के प्रचार का प्लान बी

अखिल झारखंड छात्र संघ (आजसू का स्टूडेंट विंग) लोकसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी और गठबंधन के पक्ष में युवाओं से संवाद करने, जनसंपर्क चलाने, पार्टी की रणनीति के अनुरूप साथ मिलकर प्रत्याशी के पक्ष में कार्यक्रमों की तैयारी सुनिश्चित करने, सोशल मीडिया कैंपेन चलाने का कार्य कर रहा है. इसके अलावा नौजवानों को मतदान करने के प्रति जागरूक किया जा रहा है. इस संगठन की तरफ से छोटी-बड़ी सभाओं, समाज के प्रबुद्ध लोगों, महिलाओं के समूह और युवाओं की टोली के साथ बैठक और डोर टू डोर कैंपेन के साथ ही मीडिया और सोशल मीडिया, रील और स्टोरीज के माध्यम से प्रचार को गति दी जा रही है.

एनएसयूआई: बेरोजगारी के मुद्दे पर मोदी सरकार पर हमलावर

एनएसयूआई के युवा कार्यकर्ता मोदी सरकार पर बेरोजगारी के मुद्दे पर हमलावर हैं. एनएसयूआई के छात्र नेताओं का कहना है कि आज देश में छात्रों, युवाओं के लिए सबसे बड़ा मुद्दा रोजगार का है. एनएसयूआई के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष अमीर हाशमी ने कहा कि जिस तरह से भाजपा ने पिछले 10 सालों में देश से रोजगार खत्म किया है, इससे छात्रों में काफी आक्रोश है. यह आक्रोश भाजपा के खिलाफ वोट के रूप में तब्दील होगा.

एनएसयूआई कांग्रेस की ओर से विद्यार्थियों को दे रहा गारंटी

कांग्रेस का छात्र संगठन एनएसयूआई पार्टी के मुद्दों को विद्यार्थियों के बीच प्रचारित कर रहा है. खासकर केंद्र सरकार के विभागों में खाली 30 लाख सरकारी पदों पर तत्काल स्थाई नियुक्ति दिलाने का वादा पार्टी की ओर से कर रहा है. इसी तरह हर ग्रेजुएट एवं डिप्लोमाधारी युवाओं को 1 लाख प्रतिवर्ष स्टाइपेंड के साथ सरकारी प्राइवेट कंपनियों में अप्रेंटिसशिप (नौकरी) की गारंटी की बात भी कही जा रही है. इसके अलावा 5000 करोड़ के राष्ट्रीय कोष से जिला स्तर पर युवाओं को स्टार्टअप फंड देकर उद्यमी बनाने की गारंटी से भी युवा भावनाओं को कांग्रेस के पक्ष में भुनाने की कोशिश कर रहे हैं. एनएसयूआई अग्निपथ योजना के खिलाफ भी विद्यार्थियों की पंचायत लगा रहा है.

कैसा चल रहा राजनीति का पाठ

डोरण्डा महाविद्यालय,रांची के सहायक प्राध्यापक डॉ. ब्रजेश कुमार कहते हैं कि विद्यार्थिय़ों की अपने समूह में लोकप्रिय होने और आगे बढ़कर नेतृत्व करने की प्रबल इच्छा होती है. अगर उन्हें सही तरीके से प्रशिक्षित कर सकारात्मक दिशा दी जाय तो बड़े परिवर्तन हो सकते हैं. जेपी आंदोलन इसका गवाह है. उस छात्र आंदोलन से निकले लोग लगभग हर राज्य में सत्ता या विपक्ष की नेतृत्वकारी भूमिका में हैं. लोकसभा चुनाव विद्यार्थिय़ों को संसदीय राजनीति के प्रशिक्षण का महत्वपूर्ण अवसर उपलब्ध कराता है. पढ़ाई के साथ संतुलन रखते हुए विद्यार्थी इस प्रक्रिया में काफी कुछ सीख सकते हैं. जो राजनीति के अलावा भी उनके जीवन में काफी फलदायक साबित हो सकता है.

1848 में दादा भाई नौरोजी ने पहली बार स्टूडेंट लिटरेरी एंड साइंटिफिक सोसायटी की स्थापना की थी. इसे भारत में छात्र आंदोलन की शुरुआत माना जाता है. 1905 में स्वदेशी आंदोलन में भी छात्र राजनीति की महती भूमिका थी. 1920 में पहली बार अखिल भारतीय छात्र सम्मेलन का आयोजन नागपुर में किया गया था. आजादी के बाद भी छात्र राजनीति ने भारतीय लोकतंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है. वर्ष 1973 में गुजरात के नवनिर्माण छात्र आंदोलन और 1974 के बिहार छात्र आंदोलन ने आजादी के बाद भारत की राजनीति में अमिट छाप छोड़ी है. राजनीति के ककहरा की पाठशाला छात्र राजनीति के खिलाफ अपनी सिफ़ारिश सरकार को दी है. जबकि छात्र राजनीति को बढ़ावा देने के लिए फिर से विचार करने की नितांत आवश्यकता है.- प्रियदर्शी रंजन, राजनीतिक विश्लेषक

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