Lok Sabha Election Result 2024: मोदी की गारंटी पर ममता की रणनीति पड़ी भारी, 29 सीटों के साथ बंगाल में तृणमूल शीर्ष पर

Lok Sabha Election Result 2024: Lok Sabha Election Result 2024: तृणमूल कांग्रेस को संभवत: भाजपा द्वारा उसके उम्मीदवारों की सीटें बदले जाने का भी लाभ मिल गया. भाजपा जिन महत्वपूर्ण उम्मीदवारों की सीटें बदलीं, वे सभी सीटें वह हार गयी है.

By Vikash Kumar Upadhyay | June 4, 2024 9:42 PM
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Lok Sabha Election Result 2024: पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों के लिए मतगणना के बाद का दृश्य अब लगभग स्पष्ट ही है. जनता का निर्णय कमोबेश ठोस रूप में सामने आ ही गया है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस 29 सीटों पर आगे है. कुछ सीटें उसके खाते में आ भी चुकी हैं. उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा ने पिछली बार की तुलना में करीब छह सीटें खोकर 12 के इर्द-गिर्द है. कांग्रेस ने भी कुछ अच्छा किया नहीं. पिछली बार की दो की तुलना में उसे भी एक सीट का नुकसान हो ही रहा है. कुल मिला कर इस चुनाव में तृणमूल का ही बल्ले-बल्ले रहा है. बंगाल की चुनावी राजनीति की समझ रखने वाले लोगों की राय में कई महत्वपूर्ण फैक्टर्स तृणमूल के पक्ष में गये हैं और वोटों के रूप में उसका खामियाजा मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा काे उठाना पड़ा है. इनके मुताबिक, मोदी की गारंटी का जादू बंगाल के मतदाताओं पर काम नहीं कर सका और ममता बनर्जी की चुनावी रणनीति तृणमूल के काम आयी है.

अभी सारे फाइनल रिजल्ट नहीं आ सके हैं. पर, कमोबेश स्पष्ट है कि लोकसभा चुनवा में मोदी के चेहरो को सामने रखनेवाली भाजपा पर बंगाल में तृणमूल भारी पड़ी है. उत्तर बंगाल में, जहां भाजपा खुद को बहुत मजबूत मानती रही है, इस बार उसे झटके लगे हैं. वहां उसे एक सीट का नुकसान हुआ है. वह कूचबिहार इस बार हार गयी है. हालांकि बाकी सभी पांचों सीटें उसके कब्जे में बरकरार रही हैं. कहा जा सकता है कि उत्तर ने भाजपा की लाज रख ली है. दूसरी तरफ माना जा रहा था कि दक्षिण बंगाल में भाजपा इस बार पिछली बार की तुलना में कुछ अच्छा कर सकती है, तो वह भी नहीं हो सका. बंगाल का पश्चिमी हिस्सा, जो पश्चिमी राढ़ बंगाल है, वहां भी तृणमूल ने अपनी ताकत बढ़ायी है. बांकुड़ा सीट भाजपा के हाथ से निकल गयी है. यही हाल झाड़ग्राम में भी दिख रहा है. इस प्रकार राढ़ बंगाल की दो जीती हुई उसकी सीटें तृणमूल के पक्ष में चली गयी हैं.

दक्षिण बंगाल में मेदिनीपुर, बर्दवान दुर्गापुर तथा आसनसोल की सीटें, जो पिछली बार भाजपा के पास थीं, इस बार तृणमूल के खाते में चली गयी हैं. इन तीनों ही सीटों पर भाजपा ने नये उम्मीदवार उतारे थे. कहा जा सकता है कि पार्टी के नये उम्मीदवारों की जगह यहां के वोटरों ने तृणमूल के उम्मीदवारों को पसंद किया हैं. पिछली बार हुगली की जीती हुई भाजपा की सीट पर इस बार तृणमूल काबिज हो गयी है. वहां अभिनेत्री लॉकेट चटर्जी का जादू इस बार नहीं चल सका है.

बंगाल की सामाजिक समझ रखने वाले लोगों के मुताबिक, जय श्री राम के नारे की तुलना में बंगाल के समाज को जय बांग्ला ज्यादा पसंद है. वे जय श्रीराम से दुखी-चिंतित नहीं होते, पर जय बांग्ला उन्हें उत्साहित करता है, प्रेरित करता है. तृणमूल कांग्रेस ने जय श्रीराम की जगह जय बांग्ला को ही अपने इलेक्शन कैंपेन में प्रमोट किया. इनके अनुसार, यह बंगाल के आम लोगों को प्रभावित करता है. पत्रकार और कोलकाता प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष राज मिठौलिया के मुताबिक, बंगाल के लोगों के लिए बंगाली अस्मिता बड़ी चीज हैं. उनके लिए यह बहुत ही संवेदनशील मामला होता है. स्मरणीय है कि 2021 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान तृणमूल ने ‘बांग्ला निजेर मेयेकेई चाय’ का नारा दिया था, जिसे बंगाली अस्मिता से जुड़ा बताया गया था और तब भी चुनाव विश्लेषकों ने माना था कि यह नारा तृणमूल के हित में काम कर गया था. भाजपा उसके काट के तौर पर ऐसा ही कोई और नारा पेश नहीं कर सकी थी.

श्री मिठौलिया इस राय के भी हैं कि तृणमूल कांग्रेस को महिलाओं का भी पूरा सपोर्ट मिला है. लक्खी भंडार योजना महिलाओं को सीधे प्रभावित कर रही है और चुनाव प्रचार में तृणमूल ने इसे जम कर उठाया था. इसके अतिरिक्त यहां की तृणमूल सरकार की और भी कई योजनाएं महिलाओं के हित में गयी हैं और इसका लाभ उसे वोटों में मिला है. वरिष्ठ पत्रकार तपन दास भी इस बात से सहमत हैं कि लक्खी भंडार ने जादू किया है. उनकी राय में बंगाल के मुस्लिमों ने भाजपा को वोट नहीं दिया. वे देते भी नहीं. सीएए और एनआरसी जैसी बातें उन्हें परेशान कर रही थीं.

कुछ चुनाव विश्लेषकों की राय में तृणमूल कांग्रेस ने चुनाव के दौरान अपने कैंपेन में मनरेगा के मद में केंद्र से मिलने वाले पैसे रोके जाने के मुद्दे को भी मोदी सरकार के खिलाफ प्रभावी तरीके से उठाया. यहां की गरीब जनता, जो इससे प्रभावित होती है, उसने इसे अपने लिए गंभीर मसला माना और उसने इस मुद्दे को उठाने वाली पार्टी को अपना हितैषी समझा तथा वोट भी दिया.

तृणमूल कांग्रेस को संभवत: भाजपा द्वारा उसके उम्मीदवारों की सीटें बदले जाने का भी लाभ मिल गया. भाजपा जिन महत्वपूर्ण उम्मीदवारों की सीटें बदलीं, वे सभी सीटें वह हार गयी है. मेदिनीपुर, बर्दवान-दुर्गापुर और आसनसोल ऐसी ही सीटें थी, जो 2019 में भाजपा के पास थीं और 2024 में अब तृणमूल के कब्जे में चली गयी हैं.

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