लोकसभा चुनाव: आरा में भाजपा और भाकपा माले के बीच सीधी टक्कर, जातीय समीकरण की होगी मुख्य भूमिका
आरा लोकसभा सीट पर इस बार भाजपा और भाकपा मामले की आमने आमने की टक्कर में जातीय समीकरण अहम भूमिका निभाएगी. यहां भाजपा से केंद्रीय मंत्री आरके सिंह तो माले से सुदामा प्रसाद चुनावी मैदान में हैं.
लोकसभा चुनाव में एक बार फिर आरा सीट पर भाजपा और भाकपा माले आमने सामने है. भाजपा ने केंद्रीय मंत्री आरके सिंह को फिर चुनाव मैदान में उतारा है. दूसरी ओर भाकपा माले ने पिछली दफा राजू यादव की जगह नये उम्मीदवार को मौका दिया है. भाकपा माले के उम्मीदवार सुदामा प्रसाद जिले के तरारी विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. पिछली बार भाकपा माले करीब एक लाख 47 हजार से अधिक मतों से पीछे रह गयी थी.
जातीय समीकरण की होगी मुख्य भूमिका
इस लोकसभा चुनाव में पूरे प्रदेश में सामाजिक समीकरण भी बदले हुए हैं. एनडीए के भीतर पूर्व सीएम जीतन राम मांझी की पार्टी हम और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोरचा शामिल है. दूसरी ओर महागठबंधन में कांग्रेस और तीनों वामदल प्रमुख भूमिका में हैं. आमने-सामने की टक्कर में जातीय समीकरण की प्रमूख भूमिका होगी.
आरा के चुनावी जानकार बताते हैं कि शुरुआत में बात विकास की हो रही है, लेकिन अंतिम समय में जिस गठबंधन के पक्ष में जितनी अधिक जातियों की गोलबंदी होगी, जीत का सेहरा उसी के सिर पर सजने वाला है.
1989 में आइपीएफ के टिकट पर जीते थे रामेश्वर प्रसाद
आरा में 1989 में इंडियन पीपुल्स फ्रंट के रामेश्वर प्रसाद चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे थे. बाद में इंडियन पीपुल्स फ्रंट का राजनीतिक रूप भाकपा माले के रूप में आया. तब से पार्टी यहां लगातार संघर्ष कर रही है. 2019 के चुनाव में भाकपा माले के राजू यादव को चार लाख 19 हजार से अधिक वोट मिले थे, जबकि जीत हासिल करने वाले आरके सिंह को पांच लाख 66 हजार से वोट आये.
आरा लोकसभा क्षेत्र में सात विधानसभा सीटें हैं. इनमें बड़हरा और में भाजपा का कब्जा है, जबकि संदेश, जगदीशपुर और शाहपुर में राजद के विधायक हैं. वहीं तरारी और अगियांव भाकपा माले के कब्जे में था. अगियांव के माले विधायक मनोज मंजिल को आपराधिक मामले में सजा होने केे बाद यह सीट खाली है. यहां भी उप चुनाव कराये जा रहे हैं.
कभी नक्सलवाद को लेकर देश-दुनिया में चर्चा में रहे आरा का इलाका धान की खेती के लिए भी प्रसिद्ध है. इस जिले के बड़ी संख्या में लोग सेना में कार्यरत हैं.
सांसद-साल -दल
- सीपी वर्मा-1977-लोकदल
- सीपी वर्मा-1980-जनतापार्टी
- बलिराम भगत-1984-कांग्रेस
- रामेश्वर प्रसाद-1989-आइपीएफ
- रामलखन सिंह यादव-1991- जनता दल
- सीपी वर्मा-1996-जनता दल
- हरिद्वार सिंह-1998-समता पार्टी
- राम प्रसाद सिंह-1999-राजद
- कांति सिंह-2004-राजद
- मीना सिंह-2009-जदयू
- आरके सिंह-2014-भाजपा
- आरके सिंह-2019-भाजपा
Also Read : मधेपुरा लोकसभा सीट फिर बनेगा यादवी संघर्ष का गवाह, यहां कोई भी समाजवादी नेता नहीं लगा सका हैट्रिक