क्या है आदर्श आचार संहिता?
देशभर में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग ने कुछ नियम बनाए हैं. आयोग के इसी नियमों को आदर्श आचार संहिता कहा जाता है. आदर्श आचार संहिता चुनावों के दौरान सभी हितधारकों द्वारा स्वीकार्य नियम है. इसका उद्देश्य प्रचार, मतदान और मतगणना को व्यवस्थित, स्वच्छ और शांतिपूर्ण रखना और सत्तारूढ़ दलों द्वारा राज्य मशीनरी और वित्त के किसी भी दुरुपयोग को रोकना है. परंतु, इसे कोई वैधानिक मान्यता प्राप्त नहीं है.
कब तक लागू रहेगी आचार संहिता
निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा किए जाने के साथ ही यह संहिता लागू हो जाती है और निर्वाचन प्रक्रिया समाप्त होने तक लागू रहती है.
चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों की भूमिका और जिम्मेदारियां
चुनाव प्रचार और अभियान के दौरान न्यूनतम आचार संहिता के पालन के लिए राजनीतिक दलों से एक अपील, मानक राजनीतिक व्यवहार का निर्धारण करने वाला एक दस्तावेज है और 1968 और 1969 के मध्यावधि चुनाव के दौरान आयोग ने तैयार किया था.
आदर्श आचार संहिता का इतिहास
आदर्श आचार संहिता की उत्पत्ति 1960 में केरल विधानसभा चुनाव के दौरान हुई थी, तब प्रशासन ने राजनीतिक दलों के लिए एक आचार संहिता बनाने की कोशिश की थी. निर्वाचन आयोग के मुताबिक आचार संहिता के मौजूदा स्वरूप पिछले 60 साल के प्रयासों और विकास का नतीजा है. सुप्रीम कोर्ट ने कई मौकों पर इसकी सुचिता को बरकरार रखा है. चुनाव आयोग आचार संहिता के किसी भी उल्लंघन की जांच करने और सजा सुनाने के लिए पूरी तरह से अधिकृत है.
चुनाव आयोग ने दस्तावेजीकरण के लिए ‘लीप ऑफ फेथ’ किताब प्रकाशित की थी
भारत में चुनावों की यात्रा का दस्तावेजीकरण करने के लिए निर्वाचन आयोग ने ‘लीप ऑफ फेथ’ पुस्तक प्रकाशित की थी. किताब में लिखा गया, आदर्श आचार संहिता पहली बार भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा ‘न्यूनतम आचार संहिता’ के शीर्षक के तहत 26 सितंबर, 1968 को मध्यावधि चुनाव 1968-69 के दौरान जारी की गई थी. इस संहिता को 1979, 1982, 1991 में 2013 में और संशोधित किया गया.
इन कार्यों पर रहेगी पाबंदी
- आचार संहिता लागू होने के साथ सरकार कोई नई योजना और नई घोषणाएं नहीं कर सकती.
- चुनाव प्रचार में सरकारी संसाधनों का प्रयोग नहीं किया जा सकता.
- चुनावी पार्टियों को रैली और आम सभा के लिए अनुमति लेनी होगी.
- धार्मिक स्थलों और चिह्नों का चुनाव प्रचार में उपयोग नहीं किया जा सकता
- मतदाताओं को नकद या उपहार देने पर रोक
- चुनाव कार्यों से जुड़े अधिकारियों को नेता और मंत्रियों से मिलने पर रोक.