नई दिल्ली : भारत के पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों की सरगर्मियां अपने चरम पर हैं. राजनीतिक पार्टियां जीत हासिल करने के लिए चुनाव प्रचार में पानी की तरह पैसा बहा रही हैं. ऐसे में, सवाल यह पैदा होता है कि राजनेता और राजनीतिक पार्टियों की आमदनी का कोई फिक्स जरिया नहीं है, तो उनके पास इतना अधिक पैसा आता कहां से है?
सवाल यह भी पैदा होता है कि सरकार ने राजनीतिक पार्टियों के लिए चंदे के तौर पर नकदी लेने पर रोक लगा रखी है, तो आखिर ये पैसे आ कहां से रहे हैं? इन सभी सवालों का एक ही जवाब है और वह यह कि राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए देश-विदेश से चंदा दिया जाता है और चंदे के तौर पर इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वालों को टैक्स से छूट भी मिलती है. आइए, जानते हैं कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक पार्टियों के कैसे चंदा मिलता है…?
राजनीतिक चंदे में नकदी पर रोक और उसमें पारदर्शिता लाने के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने वर्ष 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत की थी. इसके पीछे सरकार का मकसद यह था कि राजनीतिक पार्टियों के पास पारदर्शी तरीके से साफ-सुथरा धन आएगा. राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के लिए व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदते हैं, जिसे इलेक्टोरल बॉन्ड कहा जाता है. राजनीतिक पार्टियां इस इलेक्टोरल बॉन्ड को बैंकों में भुनाकर रकम हासिल करती हैं.
देश में चुनावी चंदे की व्यवस्था में सुधार के लिए मोदी सरकार ने 2 जनवरी 2018 को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की अधिसूचना जारी की थी. इलेक्टोरल बॉन्ड फाइनेंस एक्ट 2017 के द्वारा लाए गए थे. यह बॉन्ड साल में चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते हैं. इसके लिए राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने वाले लोग, कंपनियां और संस्थाएं बैंक की शाखा में जाकर या उसकी वेबसाइट पर ऑनलाइन जाकर इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदते हैं. यही इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक पार्टियों के फंड में डाला जाता है. हालांकि, केंद्र सरकार ने दावा किया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से चुनावी चंदे में पारदर्शिता आएगी. तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जनवरी 2018 में लिखा था, ‘इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना राजनीतिक फंडिंग की व्यवस्था में ‘साफ-सुथरा’ धन लाने और ‘पारदर्शिता’ बढ़ाने के लिए लाई गई है.’
राजनीतिक पार्टियों को चुनावी चंदा के रूप में भेंट किया जाने वाला इलेक्टोरल बॉन्ड एसबीआई 29 शाखाओं द्वारा जारी किया जाता है. इन शाखाओं में नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गांधीनगर, चंडीगढ़, पटना, रांची, गुवाहाटी, भोपाल, जयपुर और बेंगलुरु की शाखाएं शामिल हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 तक इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री के 12 चरण पूरे हो चुके थे. इस दौरान तक इलेक्टोरल बॉन्ड का सबसे ज्यादा 30.67 फीसदी हिस्सा मुंबई में बेचा गया था और इसका सबसे ज्यादा 80.50 फीसदी हिस्सा दिल्ली में भुनाया गया था.
चुनावों में राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने वाला कोई भी दानदाता अपनी पहचान छुपाते हुए एसबीआई की किसी भी शाखा से एक करोड़ रुपये मूल्य तक के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद कर अपनी पसंद के राजनीतिक दल को चंदे के रूप में दे सकता है. ये व्यवस्था दानकर्ताओं की पहचान छुपाती है और इससे टैक्स में भी छूट मिलती है. आम चुनाव में कम से कम 1 फीसदी वोट हासिल करने वाले राजनीतिक दल को ही इस बॉन्ड से चंदा हासिल हो सकता है.
एक व्यक्ति, लोगों का समूह या एक कॉर्पोरेट बॉन्ड जारी करने वाले महीने के 10 दिनों के भीतर एसबीआई की निर्धारित शाखाओं से चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है. जारी होने की तिथि से 15 दिनों की वैधता वाले बॉन्ड 1000 रुपये, 10000 रुपये, एक लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये के गुणकों में जारी किए जाते हैं. ये बॉन्ड नकद में नहीं खरीदे जा सकते और खरीदार को बैंक में केवाईसी (अपने ग्राहक को जानो) फॉर्म जमा करना होता है. राजनीतिक पार्टियां एसबीआई में अपने खातों के जरिए बॉन्ड को भुना सकते हैं. यानी ग्राहक जिस पार्टी को यह बॉन्ड चंदे के रूप में देता है वह इसे अपने एसबीआई के अपने निर्धारित एकाउंट में जमा कर भुना सकता है. पार्टी को नकद भुगतान किसी भी दशा में नहीं किया जाता और पैसा उसके निर्धारित खाते में ही जाता है.
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इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत करते समय इसे सही ठहराते हुए तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जनवरी 2018 में लिखा था, ‘इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना राजनीतिक फंडिंग की व्यवस्था में ‘साफ-सुथरा’ धन लाने और ‘पारदर्शिता’ बढ़ाने के लिए लाई गई है.’ इलेक्टोरल बॉन्ड फाइनेंस एक्ट 2017 में बदलाव के द्वारा लाए गए थे. वास्तव में इनसे पारदर्शिता पर जोखिम और बढ़ा है.
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