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हॉस्टल लाइफ को जी लिया : रनबीर कपूर

उर्मिला कोरी रनबीर कपूर लंबे समय से अनुराग बासु की फिल्म जग्गा जासूस को लेकर खबरों में रहे हैं. आखिरकार अब यह फिल्म रिलीज को तैयार है. रनबीर इसके सह-निर्माता भी हैं, जो इसे फैमिली के लिए फुल इंटरटेनिंग बताते हैं. फिल्म के अलावा कुछ निजी सवालों पर भी उन्होंने खुल कर बातें कीं. – […]

उर्मिला कोरी
रनबीर कपूर लंबे समय से अनुराग बासु की फिल्म जग्गा जासूस को लेकर खबरों में रहे हैं. आखिरकार अब यह फिल्म रिलीज को तैयार है. रनबीर इसके सह-निर्माता भी हैं, जो इसे फैमिली के लिए फुल इंटरटेनिंग बताते हैं. फिल्म के अलावा कुछ निजी सवालों पर भी उन्होंने खुल कर बातें कीं.
– इसे बनने में साढ़े तीन साल का वक्त लग गया. आपको लगता नहीं कि कुछ ज़्यादा समय लग गया?
हां, देर तो हो गयी. निर्माता भी हम ही हैं. इन तीन वर्षों में बहुत कुछ झेलना पड़ा, लेकिन अच्छी बात थी कि हम अपने मकसद में कामयाब हुए. हम सभी चाहते थे कि फ़िल्म अच्छी बने. दर्शक जब फ़िल्म देखते हैं, तो यह बात मायने नहीं रखती. वे बस अच्छी फिल्म देखना चाहते हैं.
– यह इंतज़ार सबसे ज़्यादा किसके लिए लंबा था
निश्चित तौर पर हमारे निर्देशक अनुराग बासु को लंबा इंतज़ार करना पड़ा, क्योंकि कैटरीना, प्रीतम दा और हम सभी इस दौरान दूसरी फिल्मों का भी हिस्सा रहें, लेकिन अनुराग बासु ने इसी फिल्म को जिया. वह बहुत कूल डायरेक्टर हैं. हम सब एक फैमिली की तरह हम काम करते थे, जैसे हम पिकनिक पर आये हों. कई बार शूटिंग के दौरान अनुराग कोने में बैठ कर नली निहारी और बिरयानी पूरी यूनिट के लिए बना रहे होते थे. मगर जब आप एंड में रिजल्ट देखते हो, तो आपको समझ आ जाता है कि अनुराग को अपने काम में कितना महारत हासिल है.
– ट्रेलर में आप स्कूली बच्चे के तौर पर नजर आ रहे हैं. उस उम्र को परदे पर जीने का अनुभव कैसा था?
मैंने कॉलेज लाइफ को नहीं जिया है. हॉस्टल में भी नहीं रहा हूं, तो उस उम्र के बच्चों के साथ रहना, उनसे बातें करना बहुत मजेदार रहा. उस लाइफ को मैंने फिल्म में जी लिया.
– आप अपने स्कूल के दिनों में कैसे थे?
मैं भी बहुत शरारती बच्चा था. पढ़ाई में औसत था, लेकिन कभी फेल नहीं हुआ और न ही अपने शिक्षकों का मजाक बनाया. मैंने हमेशा इस बात का ख्याल रखा है. वैसे बचपन में मैं ज़्यादा एक्सप्रेसिव नहीं था. मेरे मम्मी-पापा बताते हैं कि मैं ब्लैंक टाइप का था. मेरे सामने से सांप भी चला जाये, तो रिएक्ट नहीं करता था, बस अपने दिल पर हाथ रख कर धड़कन को सुनता था.
– आपने कहा कि इस फिल्म को देख कर आपके दादा राज कपूर को भी आप पर गर्व होता! ऐसा क्या है इसमें?
वजह फिल्म का ट्रीटमेंट है. इसमें न कोई किसिंग सीन है, न ही धूम्रपान और शराबवाले दृश्य. यह एक फुल इंटरटेनिंग फैमिली फिल्म है, जिसे परिवार का हर सदस्य साथ में देख सकता है.
– आप घर में सबसे ज़्यादा किसके क्लोज हैं?
मैं अपनी दादी कृष्णा राज कपूर के बहुत ज़्यादा क्लोज हूं. उनके साथ हाल ही में मैंने काफी समय बिताया. दादा-दादी, नाना-नानी के साथ समय बिताने से हमें ज़िंदगी के प्रति एक अलग ही नजरिया मिलता है. दादी अपने पति और बच्चों के साथ अपने रिश्तों के बारे में कई अलग-अलग घटनाएं और कहानियां बताती हैं, जिनसे मुझे कुछ सीखने को मिलता है. यही इनसान में नैतिक मूल्य जोड़ जाते हैं. घर के सबसे पुराने सदस्य ही उस मूल्य को हमारी ज़िंदगी में जोड़ सकते हैं, तो उनसे मिलते रहना चाहिए.
– आपकी दादी आपकी फिल्में देखती हैं?
हां, वह मेरी हर फिल्म थिएटर में जाकर देखती हैं. गुरुवार को उस फिल्म के लिए प्रार्थना भी करती हैं. फिल्मों को लेकर उनकी सोच बहुत मॉडर्न है. दादाजी (राज कपूर), दादी को रात को आरके स्टूडियो ले जाते थे, अपनी फिल्मों के रशेज दिखाते थे. उनकी राय जानते थे. बॉबी में पहले स्क्रिप्ट के मुताबिक नायक और नायिका की आखिरी में मौत हो जाती है, लेकिन मेरी दादी को यह अंत पसंद नहीं आया. उनके ओपिनियन को सुनकर ही दादाजी ने फ़िल्म का अंत बदल दिया. दादी को मेरी अब तक की सबसे पसंदीदा फ़िल्म ‘ये जवानी है दीवानी’ पसंद आयी. उन्हें ज़्यादा रोने-धोनेवाली फिल्में पसंद नहीं हैं.
– दादा राज कपूर की खास चीजें वे शेयर करती हैं?
हां, दादाजी ने अपनी शादी में जो शेरवानी पहनी थी, उन्होंने वह शेरवानी मुझे गिफ्ट की है. उनका पहला खत, चेक रिपब्लिक से मिला मेडल और सिगार की पाइप बहुत कुछ चीजें मेरे पास हैं. बचपन से ही दादी मेरे क्लोज रही हैं. दादी के घर में एक चोर कमरा हुआ करता था, जिसमें महंगे चॉकलेट-बिस्किट वे रखती थीं. कभी वो मुझे चोरी से खिलाती थीं, कभी मैं चोरी से खा लेता था.
– इन दिनों हर स्टार सोशल मीडिया पर है, पर आप व्हाट्सएप्प पर भी नहीं हैं?
मैं परिवार और खास दोस्तों से बीबीएम के जरिये अब भी जुड़ा हूं. जहां तक बात सोशल मीडिया की है तो यह मेरी पर्सनालिटी से मेल नहीं खाता. मैं बहुत ही शर्मिला इनसान हूं. मैं क्या खा रहा हूं, कहां हूं, मेरी बॉडी ऐसी दिखती है, ये सब बातें मैं नहीं जाहिर कर पाता. मैं हर वक्त सबको एंटरटेन नहीं कर सकता. वह वक़्त सोने में या अपने डॉगी के साथ खेलने में बिताता हूं.

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