अभिनय मेरे लिए साधना है : सुमन झा

न्यूकमर एक्टर बातचीत : गौरव कहते हैं कला की साधना ही इस क्षेत्र में पारंगत होने की पहली शर्त होती है, यहां कोई शॉर्ट कट नहीं चलता. शार्ट कट के जरिये आप शायद इस फील्ड में इंट्री तो ले लें पर सफलता कठिन परिश्रम और लगन के बगैर कतई मुमकिन नहीं. कुछ ऐसी ही सोच […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 17, 2017 11:13 PM

न्यूकमर एक्टर

बातचीत : गौरव

कहते हैं कला की साधना ही इस क्षेत्र में पारंगत होने की पहली शर्त होती है, यहां कोई शॉर्ट कट नहीं चलता. शार्ट कट के जरिये आप शायद इस फील्ड में इंट्री तो ले लें पर सफलता कठिन परिश्रम और लगन के बगैर कतई मुमकिन नहीं. कुछ ऐसी ही सोच मधुबनी बिहार के रहने वाले चौबीस वर्षीय युवा अभिनेता सुमन झा की है.बनारस से बैचलर डिग्री हासिल करने के बाद सुमन ने चंडीगढ़ से थियेटर आर्ट्स में मास्टर डिग्री हासिल की. पढ़ाई के दौरान ही दीपा मेहता के साथ काम करने का मौका मिला. प्रभात खबर के गौरव से बातचीत के दौरान सुमन ने अपने इसी यात्रा और अभिनय के प्रति जिजीविषा को शब्दों की शक्ल में साझा किया.

हाइस्कूल के दौरान ही मन में उमड़ते-घूमड़ते विचार और कहानियों ने अभिनय के क्षेत्र में आने की दस्तक दे दी थी. कॉलेज तक आते-आते उस विचार ने मन-मस्तिस्क में जड़ें भी जमा ली थी. पर ग्रेजुएशन तक घरवालों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी थी. जब दीपा मेहता की फिल्म में काम करने का मौका मिला तब जाकर उन्हें इस बारे में पता चला.

मधुबनी और बनारस में हासिल की शिक्षा

सातवीं तक की पढ़ाई मधुबनी के ही प्राइमरी स्कूल में की. फिर 2003 में बनारस चला गया. वहां सेंट जोंस हाइस्कूल से आगे की पढ़ाई की. बारहवीं में कॉमर्स से पढ़ाई के दौरान ही कहानियों और नये-नये विचारों से दोस्ती होनी शुरू हो गयी. जिसे मैंने डायरी में संजोना शुरू कर दिया. बारहवीं मैंने अच्छे अंक से पास की. तबतक अभिनय का आवरण मेरे व्यक्तित्व पर चढ़ने लगा था. अभिनय में आगे की पढ़ाई के लिए ग्रेजुएट होना जरूरी था. इसलिए बैचलर डिग्री पूरी की. इस दौरान एक-डेढ़ महीने बनारस में ही एक्टिंग वर्कशॉप ज्वाइन करने का भी मौका मिला जहां एनएसडी के पांच प्रोफेसर्स से काफी कुछ सीखने को मिला. फिर मुङो जानकारी मिली कि एक्टिंग इंस्टीट्यूट्स में एडमिशन के लिए आठ से दस नाटकों का अनुभव जरूरी है. तब नाटक और थियेटर करना शुरू किया.

पहली फिल्म मिलने तक घरवालों को नहीं था पता

बनारस से बैचलर डिग्री हासिल करने के बाद अभिनय में मास्टर डिग्री हासिल करने के लिए चंडीगढ़ चला गया. तबतक घरवालों को यही पता था कि मैं वहां लिट्रेचर की पढ़ाई करने जा रहा हूं. न बताने का भी अपना कारण था. सब जानते हैं हमारी सोसायटी के लोगों की आंखों में अपने बेटे-बेटियों को आइएएस-आइपीएस और डॉक्टर-इंजीनियर बनाने का ही ख्वाब पलता है. ऐसे में बिना खुद को साबित किये मैं अपने पैरेंट्स को किसी तरह का उम्मीद नहीं दिलाना चाहता था. उसी दौरान दीपा मेहता जी की फिल्म एनाटॉमी ऑफ वॉयलेंस का ऑफर आया. निर्भया कांड के रेफरेंस पर बनी इस फिल्म के लिए सेलेक्शन वर्कशॉप ओरियेंटेड प्रोग्राम के जरिये होना था. इतनी बड़ी हस्ती के साथ काम करने के रोमांच के साथ-साथ मन में एक डर भी था. तब मैंने दो महीने रिसर्च वर्क किया.

मेहनत की बदौलत पहली ही फिल्म से मिली सराहना

वर्कशॉप के दौरान दीपा मैम ने जब मेरा काम देखा तो काफी तारीफ की. मेरी मेहनत और काम को देखकर ही उन्होंने फिल्म में मुङो लीड कैरेक्टर के तौर पर चुना. दीपा मैम के साथ काम करने का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि काम के साथ-साथ मुङो अभिनय की काफी बारीकियां सीखने को मिली. उसके बाद टोरोंटो, कनाडा में फिल्म फेस्टिवल में इस फिल्म की स्क्रीनिंग के दौरान जब मुङो रेड कारपेट पर चलने का मौका मिला वो दिन मेरी लाइफ का सबसे खुशगवार दिन था.

मेरे लिए एक्टिंग और डायरेक्शन एक ही सिक्के के दो पहलु हैं

कई लोग पुछते हैं, अभिनय की दिशा में जाना है या निर्देशन की. मुझे ताज्जुब होता है ये सुनकर. हमारी फिल्म इंडस्ट्री में सबसे बड़ी दुविधा है अभिनेता को हमेशा निर्देशक के खींचे दायरे के अंदर ही काम करना पड़ता है. मेरे लिए एक अभिनेता को खुद के चरित्र का निर्देशक होना सबसे जरूरी है. कैरेक्टर के इम्प्रोवाइजेशन के लिए निर्देशक की सोच के साथ-साथ खुद की सोच का विस्तार भी जरूरी है. तभी एक कलाकार पूर्ण हो सकता है.

रियलिटी बेस्ड डॉक्यूमेंट्रीज बनाना चाहता हूं

एनाटॉमी ऑफ वॉयलेंस के बाद कई फिल्म समारोहों में शिरकत करने और कई लोगों से मिलने का मौका मिला. उस दौरान लगा कि हमारी फिल्में आज भी सोच के स्तर पर काफी पीछे हैं. यहां के फिल्ममेकर्स बाकी दुनिया की अपेक्षा कम अध्ययनशील हैं. हमारे यहां की डॉक्यूमेंट्री फिल्में भी उस स्तर की नहीं बनती जिनमें अभिनय की बारीकियों के साथ रियल लोकेशन का मिश्रण हो. तब मुझे लगा मुझे इस दिशा में कुछ करना चाहिए. अभिनय के एक-दो ऑफर्स भी हैं मेरे पास, पर समाज को लेकर अपनी सोच को डॉक्यूमेंट्री की शक्ल देने की दिशा में भी काम करना चाहता हूं.

कोशी और मिथिला की आंचलिक परिवेश पर भी काम करने की इच्छा है. नॉवेल पढ़ना और घुमना मेरा प्रिय शगल रहा है. अभी कुछ दिनों पहले कोशी की सामाजिक परिवेश से जुड़ा एक नॉवेल पढ़ने का मौका मिला. उस नॉवेल ने मुझे एक अलग तरह का अनुभव दिया. कोशी की जीवनशैली को और करीब से जानने और इसपर काम करने की इच्छा जाग उठी. इस विषय पर अभी कुछ विस्तार से नहीं बता सकता पर इतना जरूर है कि निकट भविष्य में यह विषय मेरी नजर से आपको देखने को मिलेगा.

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