बॉलीवुड में दुनिया मालिक है आपकी जिंदगी की : अर्जुन कपूर

अपने पांच साल के फ़िल्मी करियर में अभिनेता अर्जुन कपूर आज रिलीज हुई फिल्म मुबारकां में एक बार फिर दोहरी भूमिका में दिखेंगे. अर्जुन की मानें तो दोहरा किरदार निभाना आसान नहीं होता है लेकिन यही चुनौतियां अभिनय के प्रोफेशन को खास बना देती है. यह फिल्म अर्जुन के लिए इसलिए भी खास है क्योंकि […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 28, 2017 3:14 PM

अपने पांच साल के फ़िल्मी करियर में अभिनेता अर्जुन कपूर आज रिलीज हुई फिल्म मुबारकां में एक बार फिर दोहरी भूमिका में दिखेंगे. अर्जुन की मानें तो दोहरा किरदार निभाना आसान नहीं होता है लेकिन यही चुनौतियां अभिनय के प्रोफेशन को खास बना देती है. यह फिल्म अर्जुन के लिए इसलिए भी खास है क्योंकि इस फिल्म में उनके साथ चाचा अनिल कपूर भी हैं. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश :-

चाचा अनिल कपूर के साथ पहली बार किसी फिल्म का हिस्सा बने हैं कोई खास पल जो शेयर करना चाहते हैं?
शूटिंग में क्या होता है कि हर रोज एक मोमेंट होता है. एकाध मूवमेंट चुनना तो मुश्किल होगा लेकिन हां जब मैंने उनके साथ अपना पहला शॉट दिया था तो मैं बहुत खुश था. वैसे मैं काफी समय से चाहता था कि मैं अपने चाचा के साथ स्क्रीन शेयर करूं लेकिन अपनी काबिलियत के दम पर उनके भतीजे होने की वजह से नहीं ताकि जब मैं उनके साथ स्क्रीन शेयर करूं तो सिर्फ मुझे ही नहीं बल्कि उनको भी मुझ पर गर्व हो. मुबारकां सही समय पर आयी. जब पांच साल तक इंडस्ट्री में एक्टिंग करने के बाद इंडस्ट्री में एक दर्जा हासिल करने बाद मिली. जब उनके सामने खड़ा हुआ तो लगा कि अनिल कपूर के साथ काम करने को यह मौका मैंने कमाया है.

अनिल कपूर बहुत उम्दा एक्टर माने जाते हैं क्या आप शूटिंग को लेकर नर्वस थे?
मेरे लिए अच्छी बात है. मेरे आसपास तो अच्छे एक्टर है जिससे मेरा काम भी अच्छा होगा. मेरा मानना है कि अगर आप ग्लास को आधा खाली देखेंगे तो वह आपको आधा खाली दिखेगा और अगर भरा देखेंगे तो आधा भरा होगा.जरूरी है कि आप अच्छा सोचें. आप अनिल कपूर के साथ सीन करने जा रहे हैं तो यह सोचकर जायें कि वह अच्छा उभरकर सामने आयें . साथ में अनीस बज्मी निर्देशन कर रहे हैं. चाचा के अलावा रत्ना पाठक शाह और पवन मल्होत्रा जैसे उम्दा कलाकार भी हैं. इससे आपका एक्टिंग क्राफ्ट अच्छा होता था. नर्वसनेस होती थी, तो फिल्म नहीं करता था. नर्वसनेस अच्छा काम करने की होती है. अनिल कपूर के सामने खड़ा होने की नहीं. अगर मैं अच्छा नहीं कर पाता तो वह खुद हां नहीं बोलते मेरे साथ काम करने को लेकर. एक कलाकार को दूसरे कलाकार की परख होती है. अगर उनको लगता नहीं तो वह फिल्म ही नहीं करते. इतने लंबे समय तक इंडस्ट्री में काम करने के बाद उन्हें ऐसे ही कोई फिल्म करने की ज़रूरत नहीं जिसमें उन्हें ना लगे कि उन्हें सह कलाकारों में क्षमता ना लगे और वह लंदन की कड़कड़ाती ठंड में शूटिंग करें .
शूटिंग के दौरान एक्टर के तौर पर अनिल कपूर को कितना जाना ?
घर पर मैं उनसे सालों से मिल रहा हूं लेकिन जब आप काम करते हैं तो आपको सामने वाले इंसान का एक अलग ही पहलू देखने को मिलता है. मैंने पाया कि चाचू एक बच्चे की तरह सेट पर होते हैं. 10 बार रिहर्सल करते थे. 500 बार सीन डिस्कस करते थे. लगे रहते थे. उनकी आंखों में जब आप देखते हैं तो आपको एक एनर्जी देखने को मिलती है, बहुत यंग लगते हैं लेकिन असल में वह एक बच्चे की तरह हैं. वह अपनी फिटनेस के लिए जाने जाते हैं लेकिन असल में वह एक नंबर के चटोरे हैं. सेट पर जो भी खाना आता था उन्हें चखना है. लोगों से सेट पर पूरी तरह से घुलमिल जाते हैं. अकेले अपने वैनिटी वैन में बैठने वाले स्टार नहीं है. घर पर तो मैं ऐसा नहीं देख पाता क्योंकि सेट पर जैसा इंसान होता है. वह और कहीं नहीं होता है क्योंकि असल में एक एक्टर के लिए सेट ही घर बन जाता है. वह सबसे ज़्यादा समय वहीं बिताता है. उनके व्यक्तित्व के इन पहलुओं को जानने को मिला.
क्या बचपन में आप अपने चाचा अनिल कपूर के साथ छुट्टियों पर जाते थे?
बचपन में जब भी वर्ल्ड टूर पर चाचा जाते थे तो पापा मम्मी के साथ मैं भी उनके साथ होता था क्योंकि पापा ही टूर की प्लानिंग करते थे. मैं तो जॉइंट फॅमिली में पला बढ़ा हूं. इतने कजिन भाई बहन होते थे कि दोस्त बनाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी. हमने साथ में बहुत सारी फॅमिली ट्रिप्स की है.

अनिल कपूर के स्टारडम को आपने कितना करीब से देखा है
उनकी स्टारडम हमेशा मैंने बढ़ती हुई देखी है. घर के बाहर लोग उनको देखने आते हैं. हम टूर पर जाते थे तो लोग उनके साथ फोटो खिंचवाते ऑटोग्राफ लेते हैं. मैं खुद भी उनका फैन रहा हूं क्या होता है जब टीवी देख रहे हैं और टीवी पर नज़र आ रहा इंसान आपके बगल में बैठकर राजमा चावल खा रहा है, तो उसकी ख़ुशी ही कुछ और होती है. इतने उम्दा कलाकार मेरा चाचा हैं. यह ख़ुशी ही अलग थी.
आपका पूरा परिवार लंबे समय से इंडस्ट्री में रहा है आपने उनसे क्या सीख ली?
मेरे परिवार में लोग अपने दम पर अपना मुकाम हासिल करते हैं. सभी ने अपना मुकाम खुद बनाया है. मैं भी ऐसा ही कुछ करना चाहता था और मैं इस में कामयाब हो रहा हूं. एक्टर बनना आसान नहीं होता है. यह दुनिया का सबसे टफ प्रोफेशन होता है कि लोग आपको स्वीकार करें. टैग्स लगना आसान होता है. मेरे लिए अच्छी बात यह रही कि पांच सालों तक मैं अपने दम पर काम कर रहा हूं. एक नाम बनाया है. इंडस्ट्री में ये प्रोफेशन बहुत ही थैंकलेस होता है अगर आप अपने परिवार के नाम पर राज करने की कोशिश करेंगे तो दर्शक आपको टाटा- बॉय- बॉय कर देगी. आपको पर्दे पर कुछ ऐसा करना होगा जिससे दर्शक आपसे कनेक्ट करें. खास बात है कि सिर्फ दिल्ली या मुम्बई के दर्शक नहीं बल्कि पूरे भारत के दर्शक से आपको कनेक्शन जोड़ना होता है.
तो क्या नेपोटिज्म जैसी बातें आपको परेशान करती हूं क्योंकि यह शब्द कहीं न कहीं आपकी कड़ी मेहनत को कम कर देता है?
मुझे परेशान नहीं करती है. जो लोग नेपोटिज्म बोलते हैं वो बोलते हुए सोचते नहीं कि जब एक दुकानदार अपने बेटे को दुकान संभालने बोलता है तो वो भी नेपोटिज्म है. ऐसे ही जब एक कॉर्पोरेट ऑफिस में एक इंसान अपने बेटे को डिग्री लेने को कहता है ताकि वह बिजनेस को संभाल सके तो वह भी एक प्रकार का नेपोटिज्म हुआ. हमारे प्रोफेशन में तो दर्शक हमें डिग्री देता है. यहां दुनिया मालिक है आपकी ज़िन्दगी की.

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